Jitiya Nahay Khay 2025: आज नहाय खाय से शुरू हो गया 36 घंटे का जितिया व्रत
Jitiya Nahay Khay 2025: आज शनिवार, 13 सितंबर को नहाय खाय के साथ ही 36 घंटे का निर्जला जीवित्पुत्रिका व्रत की शुरुआत हो गयी है। जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जितिया (Jitiya Nahay Khay 2025) भी कहा जाता है, बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में माताओं द्वारा अपनी संतानों की दीर्घायु और समृद्धि के लिए रखा जाने वाला एक पवित्र व्रत है।
आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाला यह व्रत तीन दिनों तक चलता है—नहाय-खाय, निर्जला उपवास और पारण।
व्रत के दूसरे दिन महिलाएँ बिना अन्न-जल ग्रहण किए कठोर उपवास रखती हैं और त्याग और सुरक्षा के प्रतीक भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। व्रत का समापन ठेकुआ, जिमीकंद, ककड़ी, नोनी साग और दही-चिउड़ा जैसे विशेष भोग के साथ होता है। जीवित्पुत्रिका व्रत (Jitiya Nahay Khay 2025) एक माँ की भक्ति, सहनशक्ति और अपनी संतान की भलाई के लिए आशीर्वाद को दर्शाता है।
आज है नहाय-खाय?
जितिया व्रत हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। इससे एक दिन पूर्व यानी आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि पर नहाय-खाय मनाया जाता है। नहाय-खाय (Nahay Khay 2025) जीवित्पुत्रिका व्रत का पहला दिन है, जो तीन दिनों के इस व्रत के लिए आध्यात्मिक वातावरण तैयार करता है। इस दिन, महिलाएँ सुबह-सुबह पवित्र स्नान करती हैं और शुद्धि से तैयार सादा, सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं। नहाय-खाय के दिन मडुआ की रोटी और नोनी की साग खाई जाती है।
नहाय-खाय शब्द का शाब्दिक अर्थ है "स्नान करना और खाना", जो आगे आने वाले कठोर उपवास से पहले शरीर और आत्मा की शुद्धि का प्रतीक है। इस भोजन के बाद, महिलाएँ कुछ भी अपवित्र खाने से परहेज करती हैं और अगले दिन के निर्जला उपवास के लिए मानसिक रूप से तैयार होती हैं। यह अनुष्ठान अनुशासन, स्वच्छता और बच्चों की दीर्घायु के प्रति समर्पण का प्रतीक है।
जीवित्पुत्रिका व्रत का मुख्य दिन
जीवित्पुत्रिका व्रत का दूसरा दिन, जिसे खुर जितिया या निर्जला उपवास भी कहा जाता है, व्रत का सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण भाग है। यह कल यानी रविवार, 14 सितंबर को रखा जाएगा। इस दिन, माताएँ 24 घंटे तक बिना अन्न या जल ग्रहण किए कठोर उपवास रखती हैं और अपनी असीम आस्था और भक्ति का प्रदर्शन करती हैं। वे अनुष्ठान करके, जीवित्पुत्रिका व्रत कथा सुनकर या पढ़कर, जीवन के रक्षक भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं और अपनी संतानों की दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं।
शारीरिक कष्टों के बावजूद, महिलाएँ सकारात्मकता, भक्ति और धैर्य बनाए रखती हैं, यह विश्वास करते हुए कि उनका त्याग उनके बच्चों को सभी कष्टों और खतरों से बचाएगा।
पारण का दिन
जीवित्पुत्रिका व्रत के तीसरे दिन माताएं पारण कर व्रत को समाप्त करती हैं। इस वर्ष जीवित्पुत्रिका व्रत का पारण सोमवार, 15 सितंबर को सुबह 07:22 बजे के बाद कभी भी किया जा सकता है। सूर्योदय और निर्धारित समय के बाद, माताएँ भगवान जीमूतवाहन से अपने बच्चों की दीर्घायु और कल्याण के लिए प्रार्थना और अनुष्ठान करती हैं। इसके बाद वे ठेकुआ, जिमीकंद, ककड़ी की सब्जी, नोनी साग और दही चिउड़ा जैसे पारंपरिक भोगों के साथ व्रत तोड़ती हैं, जिनका प्रतीकात्मक और सांस्कृतिक महत्व है।
परिवार अक्सर इस पवित्र भोजन को एक साथ शेयर करते हैं, जिससे यह अवसर प्रेम और एकजुटता के उत्सव में बदल जाता है। पारणा, बच्चों की सुरक्षा और समृद्धि के लिए भक्ति, त्याग और आशीर्वाद की पूर्णता का प्रतीक है।
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