घर बेचकर पाल रहे आतंकी, पाकिस्तान में मिलती है ट्रेनिंग, जानें कैसे काम करता है TRF?
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर द रेजिस्टेंट फ्रंट (TRF) को सुर्खियों में ला दिया है। इस कायराना हमले की जिम्मेदारी TRF ने ही ली है। संगठन का दावा है कि कश्मीर घाटी में ऐसे हमले आगे भी होते रहेंगे। 2019 में बना ये आतंकी संगठन पहले भी कई खौफनाक वारदातों को अंजाम दे चुका है। चलिए जानते हैं कि आखिर ये TRF है क्या और कैसे काम करता है।
TRF का जन्म कैसे हुआ?
जब 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया, तो आतंकी संगठनों में हड़कंप मच गया। सीमा पार से आतंकियों का भारत में घुसना मुश्किल हो गया। ऐसे में लश्कर-ए-तैयबा और इंडियन मुजाहिद्दीन ने मिलकर TRF को जन्म दिया। 2021 में ORF मैगजीन की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस संगठन को खड़ा करने में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI का बड़ा हाथ था। ISI ने ही इस संगठन का नाम सुझाया।
खास बात ये है कि TRF पहला ऐसा आतंकी संगठन है, जिसका नाम अंग्रेजी में रखा गया। आमतौर पर आतंकी संगठनों के नाम उर्दू या फारसी में होते हैं। जानकार बताते हैं कि दुनिया की नजरों से बचने के लिए ISI ने अंग्रेजी नाम का सहारा लिया।
कैसे काम करता है TRF?
TRF के सारे आतंकी जम्मू-कश्मीर के लोकल लोग हैं। संगठन में शामिल होने के बाद इन आतंकियों को पहले पाकिस्तान ले जाकर ट्रेनिंग दी जाती है। फिर इन्हें वापस कश्मीर भेज दिया जाता है। हमले से पहले ये आतंकी अपने घरों में ही रहते हैं।
जब संगठन से ऑर्डर मिलता है, तो ये आतंकी गैंग बनाकर हमला करते हैं और फिर किसी दूर-दराज इलाके में छिप जाते हैं। इस संगठन की शुरुआत शेख सज्जाद गुल ने की थी, लेकिन इसका कोई एक बॉस नहीं है। TRF में कमांडर सिस्टम है, जो जोन के हिसाब से काम करते हैं। इन कमांडरों को सीधे पाकिस्तान से निर्देश मिलते हैं।
घर बेचकर चला रहे संगठन
2022 के बाद भारत सरकार ने जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की फंडिंग पर सख्ती कर दी। इसका असर TRF पर भी पड़ा। ग्रेटर कश्मीर अखबार ने 2023 में NIA के हवाले से एक रिपोर्ट छापी थी। इसके मुताबिक, जब पाकिस्तान से पैसे आने बंद हुए, तो TRF के आला कमांडरों ने अपनी जमीन-जायदाद बेचना शुरू कर दिया। 2023 और 2024 में संगठन के कमांडरों ने अपनी पैतृक संपत्ति बेचकर आतंकियों को सैलरी दी।
TRF में दो तरह से पैसे बांटे जाते हैं। जो आतंकी संगठन के लिए सीधे काम करते हैं, उन्हें हर महीने सैलरी मिलती है। वहीं, जासूसी करने वालों को काम के हिसाब से पेमेंट होता है।
हिंदुओं और पर्यटकों पर क्यों निशाना?
TRF के आतंकी ज्यादातर हिंदुओं, पर्यटकों और बड़े अफसरों को निशाना बनाते हैं। जानकारों का कहना है कि जल्दी बदनामी कमाने के लिए TRF ये रणनीति अपनाता है। घाटी में डर का माहौल बनाए रखने के लिए ये संगठन ऐसी वारदातों को अंजाम देता है।
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