Pahalgam: 'पहलगाम में मसूद अजहर का हाथ...' फारुख अब्दुल्ला क्या बोले? महबूबा मुफ्ती को क्या आपत्ति?
Pahalgam Terror Attack: कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमले के बाद पूरा देश आक्रोशित है। आतंक के खिलाफ कड़े एक्शन की मांग उठ रही है। भारत सरकार भी साफ कह चुकी है कि इस बार आतंक के खिलाफ बड़ा एक्शन लिया जाएगा। (Pahalgam Terror Attack) इस बीच आतंकी हमले को लेकर सियासी बयानबाजी का दौर भी चल रहा है। अब इस मामले में जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला का बयान आया है। फारुख अब्दुल्ला के इस बयान पर महबूबा मुफ्ती आपत्ति जता रही हैं। क्या है फारुख अब्दुल्ला का बयान? क्यों है महबूबा मुफ्ती को आपत्ति? जानते हैं...
'लोकल सपोर्ट के बिना संभव नहीं'
जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला ने पहलगाम आतंकी हमले को लेकर बयान दिया है। उनका कहना है कि पहलगाम आतंकी हमला सुरक्षा में चूक का मामला है। इसके साथ ही फारुख अब्दुल्ला ने लोकल सपोर्ट के सवाल पर कहा कि मैं नहीं समझता कि ये चीजें हो सकती हैं, जब तक कोई इनका साथ ना दे। वो वहां से आए, किस तरह आए? यह भी पता लगना चाहिए। फारूक अब्दुल्ला पहलगाम हमले में मारे गए सैयद आदिल हुसैन शाह के घर श्रद्धांजलि देने पहुंचे। जहां उन्होंने मीडिया से बात करते हुए यह बात कही।
'क्या पता मसूद अजहर का हाथ हो?'
फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि जब भारत ने मौलाना मसूद अजहर को छोड़ा था। तब भी मैंने कहा था- मत छोड़िए, मगर किसी ने मेरी बात नहीं मानी। अजहर कश्मीर को जानता है। उसने अपने रास्ते बना रखे हैं और क्या पता पहलगाम हमले में उसका हाथ भी होगा? इसके अलावा फारुख अब्दुल्ला ने सिंधु जल समझौते की समीक्षा की मांग भी रखी। फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि जम्मू में पानी की कमी को देखते हुए चिनाब से पानी लाने की योजना बनाई थी। मगर उस वक्त इस पर सहयोग नहीं मिला। फारुख अब्दुल्ला का कहना है कि पानी हमारा है तो इस्तेमाल का हक भी हमारा होना चाहिए।
महबूबा मुफ्ती को क्या आपत्ति?
पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने फारुख अब्दुल्ला के लोकल सपोर्ट वाले बयान पर आपत्ति जताई है। महबूबा मुफ्ती ने सोशल मीडिया हैंडल पर एक पोस्ट करते हुए अब्दुल्ला के बयान पर आपत्ति व्यक्त की। महबूबा मुफ्ती ने सोशल मीडिया हैंडल पर लिखा कि फारूक अब्दुल्ला जैसे वरिष्ठ कश्मीरी नेता का ऐसा बयान देश के बाकी हिस्सों में रह रहे कश्मीरी छात्र, व्यापारी और मजदूरों के लिए खतरा बन सकता है। कुछ मीडिया चैनलों को कश्मीरियों और मुस्लिमों को बदनाम करने का मौका मिल जाएगा।
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