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LIC : क्या वॉशिंगटन पोस्ट अब पत्रकारिता नहीं, राजनीति कर रहा है? भारत की नीतियों पर बिना सबूत के हमले

भारत की नीतियों पर बिना सबूत के हमले : क्या वॉशिंगटन पोस्ट अब एजेंडा चला रहा है?
08:45 PM Oct 28, 2025 IST | srkauthor
भारत की नीतियों पर बिना सबूत के हमले : क्या वॉशिंगटन पोस्ट अब एजेंडा चला रहा है?
  1. भारत की नीतियों पर बिना सबूत के हमले : क्या वॉशिंगटन पोस्ट अब एजेंडा चला रहा है?
  2. वॉशिंगटन पोस्ट की विश्वसनीयता पर सवाल : भारत को निशाना बनाने वाली रिपोर्टें या पत्रकारिता का पतन?

कभी दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित अख़बारों में गिना जाने वाला वॉशिंगटन पोस्ट (Washington Post) आज भारत में अपनी विश्वसनीयता को लेकर गंभीर सवालों का सामना कर रहा है। जिस अख़बार ने वॉटरगेट स्कैंडल जैसे मामलों में सत्ताधारी ताक़तों को बेनक़ाब किया था, वही अब भारत के बढ़ते आत्मविश्वास और आर्थिक उदय को लेकर लगातार संदिग्ध रिपोर्टें प्रकाशित करने के कारण आलोचना झेल रहा है।

साथ ही वॉशिंगटन पोस्ट जैसे विदेशी मीडिया द्वारा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले ऐसी अटकलों पर आधारित रिपोर्ट प्रकाशित करना उन पत्रकारों की हताश राजनीतिक चाल लगती है, जिनके नेता पिछले दस वर्षों से चुनावी मैदान में सिर्फ़ हार ही देख रहे हैं।

अक्टूबर 2025 में प्रकाशित रिपोर्ट “India’s $3.9 billion plan to help Modi’s mogul ally after U.S. charges” इसका ताज़ा उदाहरण है। रिपोर्ट में दावा किया गया कि भारत सरकार (Indian Government), वित्त मंत्रालय और LIC ने मिलकर अडाणी ग्रुप (Adani Group) को ₹ 33,000 करोड़ की मदद पहुँचाई। रिपोर्ट में कई अज्ञात सूत्रों का हवाला दिया गया, लेकिन किसी ठोस दस्तावेज़ या स्वतंत्र सत्यापन का ज़िक्र नहीं था।

भारत सरकार, एलआईसी और अडाणी ग्रुप— तीनों ने तुरंत इसे “भ्रामक और मनगढ़ंत” बताया। LIC ने स्पष्ट किया कि उसका अडाणी कंपनियों में निवेश कुल पोर्टफोलियो का एक प्रतिशत भी नहीं है, और उस निवेश पर उसे 120% से अधिक का लाभ मिला। भारतीय मीडिया ने भी इस रिपोर्ट को “हिट जॉब” कहा— वैसे ही जैसे 2023 में हिंडनबर्ग रिपोर्ट (Hindenburg Report) ने भारत की कंपनियों और बाज़ार को निशाना बनाया था। सोशल मीडिया पर #FakeNewsWaPo और #StopTargetingIndia जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे।

दरअसल, यह पहली बार नहीं है जब वॉशिंगटन पोस्ट (Washington Post) पर पक्षपात या तथ्यात्मक ग़लतियों का आरोप लगा है।

- जून 2025 में अख़बार ने ग़ाज़ा पर एक रिपोर्ट का हिस्सा वापस लिया, जिसमें इसराइली सेना पर नागरिकों की मौत का गलत आरोप लगाया गया था। बाद में अख़बार ने माना कि हेडलाइन और रिपोर्ट “तथ्यों का निष्पक्ष प्रतिनिधित्व नहीं कर रही थी।”
- जुलाई 2025 में उसे भारत के चैनल टीवी9 भारतवर्ष से माफ़ी मांगनी पड़ी, क्योंकि उसने पाकिस्तान को लेकर एक रिपोर्ट में व्हाट्सऐप संदेशों की ग़लत व्याख्या और भारतीय मीडिया की गलत प्रस्तुति की थी।
- 2019 में एक लेख, जो अमेरिका (America) के दक्षिणी राज्यों में अश्वेत परिवारों की ज़मीन से जुड़ा था, में 15 बड़ी त्रुटियाँ पाई गईं — नाम, तारीख़, और घटनाओं तक ग़लत थे। अख़बार ने खुद इसे “शर्मनाक” कहा।
- 2021 में उसने डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) पर प्रकाशित एक रिपोर्ट सुधारी, जिसमें कथित तौर पर उन्होंने “Find the fraud” कहा था — लेकिन बाद में जारी ऑडियो में यह बात झूठी साबित हुई।
- उसी वर्ष नवंबर में, स्टील डॉसियर से जुड़ी दो रिपोर्टें हटाई गईं क्योंकि उनके स्रोत “कम विश्वसनीय” पाए गए

ऐसे उदाहरणों के बाद जब वॉशिंगटन पोस्ट भारत की सरकारी संस्थाओं पर आरोप लगाता है, तो पाठकों में शक पैदा होना स्वाभाविक है। भारतीयों को लगता है कि यह अख़बार अब निष्पक्ष पत्रकारिता से ज़्यादा राजनीतिक एजेंडे का मंच बन गया है।

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भारत में स्वतंत्र मीडिया (Indian Media) और सोशल मीडिया के ज़रिए लोग आज खुद तथ्यों की जांच करने लगे हैं। विदेशी अख़बारों का प्रभाव वैसा नहीं रहा जैसा कभी था। इसलिए जब वॉशिंगटन पोस्ट जैसी संस्थाएँ भारत की नीतियों पर हमला करती हैं, तो लोग पहले सबूत मांगते हैं— और जब सबूत नहीं मिलते, तो अख़बार पर ही उंगली उठाते हैं।

- आज वॉशिंगटन पोस्ट के लिए यह चुनौती का समय है, या तो वह निष्पक्षता की राह पर लौटे, या भारतीय पाठकों के लिए एक और अविश्वसनीय विदेशी आवाज़ बन जाए।
- भारत में अगर किसी संस्था पर सबसे गहरा भरोसा है, तो वह है एलआईसी- यानी भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC)। यह सिर्फ़ एक बीमा कंपनी नहीं, बल्कि करोड़ों भारतीयों के सपनों और सुरक्षा का प्रतीक है।
- छोटे शहर के शिक्षक से लेकर महानगर के पेशेवर तक, हर कोई अपने भविष्य की गारंटी के रूप में एलआईसी को देखता है। किसी की बेटी की शादी हो, किसी का मकान बनाना हो या सेवानिवृत्ति का सहारा— हर जगह एलआईसी मौजूद है।

जैसे महाराष्ट्र (Maharashtra) के सतारा के रमेश पाटिल। उन्होंने 25 साल पहले एलआईसी की पॉलिसी ली थी। जब 2025 में उनकी बेटी की शादी का समय आया, तो वही पॉलिसी उनके लिए वरदान साबित हुई। “कंपनियाँ आती जाती हैं, पर एलआईसी हमेशा साथ देती है,” रमेश मुस्कुराते हुए कहते हैं।

इसी भरोसे की जड़ें बहुत गहरी हैं। आज़ादी के बाद जब देश का वित्तीय ढांचा बन रहा था, तब 1956 में LIC की स्थापना हुई। उसने तब से लेकर अब तक हर आर्थिक संकट, हर सरकार और हर बदलते दौर में लोगों का पैसा सुरक्षित रखा है। 1991 के आर्थिक सुधार हों या कोविड-19 महामारी (COVID-19 Pandemic), एलआईसी ने हमेशा अपनी साख बनाए रखी। एलआईसी सिर्फ़ बीमा नहीं बेचती, वह भरोसा बेचती है। हर गाँव में उसका एजेंट परिवार का सदस्य जैसा बन जाता है। शायद इसी वजह से आज भी भारत में 30 करोड़ से ज़्यादा पॉलिसियाँ सक्रिय हैं। यह किसी निजी कंपनी के लिए असंभव आँकड़ा है।

भारतीय जनता ने विदेशी रिपोर्टों को “भारत-विरोधी एजेंडा” कहा।

जब वॉशिंगटन पोस्ट जैसी विदेशी मीडिया ने अक्टूबर 2025 में एलआईसी पर अडाणी समूह (Adani Group) को मदद पहुँचाने का आरोप लगाया, तो लोगों ने इस ख़बर पर हँसी में प्रतिक्रिया दी। उन्हें पता था कि एलआईसी का निवेश नीति के दायरे में, पूरी जाँच-पड़ताल के बाद होता है। और जब एलआईसी ने बताया कि अडाणी निवेश उसके कुल पोर्टफोलियो का 1% से भी कम है — और उस पर उसे 120% का मुनाफ़ा हुआ है — तो लोगों का भरोसा और मजबूत हो गया। भारतीय जनता ने सोशल मीडिया पर विदेशी रिपोर्टों को “भारत-विरोधी एजेंडा” कहा। लोगों को लगा कि जो संस्था दशकों से ईमानदारी और पारदर्शिता का प्रतीक रही है, उस पर सवाल उठाना खुद रिपोर्ट की मंशा पर सवाल उठाता है।

“एलआईसी सिर्फ़ कंपनी नहीं, एक वादा है।”

दरअसल, एलआईसी की सफलता का राज केवल उसकी वित्तीय मजबूती नहीं, बल्कि उसके सामाजिक चरित्र में है। यह कंपनी हर वर्ग के भारतीय को सुरक्षा की भावना देती है। एक किसान जब हर महीने छोटी-सी किश्त जमा करता है, तो उसे पता होता है कि यह उसका भविष्य सुरक्षित कर रही है। LIC का इतिहास, उसकी पारदर्शी नीतियाँ और उसका निरंतर प्रदर्शन यह साबित करते हैं कि भारतीय जनता ने सही भरोसा किया है। जब विदेशी मीडिया अपने तथ्यों में उलझती है, तब भारतीयों का भरोसा अनुभव पर टिका रहता है और वह कहता है: “एलआईसी सिर्फ़ कंपनी नहीं, एक वादा है।”

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