जस्टिस वर्मा के खिलाफ़ सरकार ला सकती है महाभियोग प्रस्ताव, जानिए सुप्रीम कोर्ट की जांच समिति में क्या खुलासे हुए?
देश की न्यायपालिका में एक बड़ा भूचाल आने वाला है। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय जांच समिति ने दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज यशवंत वर्मा के आवास से बड़ी मात्रा में नकदी मिलने के आरोपों को सही पाया है। पूर्व CJI संजीव खन्ना ने राष्ट्रपति और PM मोदी को भेजी रिपोर्ट में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश की है। अब सरकार मॉनसून सत्र में इस ऐतिहासिक प्रस्ताव को लाने की तैयारी में है। यह भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक दुर्लभ घटना होगी जब किसी जज को संसद के माध्यम से हटाया जा सकता है!
क्या है जस्टिस वर्मा कैश स्कैन्डल केस?
पूरा मामला 14 मार्च को तब शुरू हुआ जब जस्टिस वर्मा के आवास पर रहस्यमय आग लग गई। आग बुझाने पहुंची टीम ने वहां से बड़ी मात्रा में नकदी होने की बात कही। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 3 मई को एक उच्चस्तरीय समिति गठित की।
जांच में पुष्टि हुई कि जस्टिस के आवास पर वास्तव में अत्यधिक नकदी थी, जिसके स्रोत पर गंभीर सवाल उठे। रिपोर्ट में कहा गया कि यह राशि जस्टिस की ज्ञात आय से कहीं अधिक थी। जस्टिस वर्मा को इस्तीफा देने के अनुरोध को ठुकराने के बाद उन्हें इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर कर दिया गया, जहां उन्हें अभी तक कोई केस नहीं सौंपा गया है।
कैसे काम करता है जजों के खिलाफ महाभियोग का तंत्र?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) के तहत किसी जज को केवल "सिद्ध कदाचार या अक्षमता" के आधार पर ही हटाया जा सकता है। प्रक्रिया शुरू करने के लिए संसद के किसी भी सदन में कम से कम 100 सदस्यों (लोकसभा) या 50 सदस्यों (राज्यसभा) का समर्थन चाहिए। प्रस्ताव पारित होने के लिए दोनों सदनों में अलग-अलग दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होती है। इतिहास में केवल एक बार 1993 में जस्टिस वी. रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाया गया था, जो राज्यसभा में बहुमत नहीं मिलने से खारिज हो गया था। इस बार सरकार विपक्ष से भी समर्थन लेने की कोशिश कर रही है।
क्या सरकार और विपक्ष एक मंच पर आएंगे?
सूत्रों के मुताबिक सरकार मॉनसून सत्र (जुलाई के तीसरे सप्ताह) में इस प्रस्ताव को लाने की योजना बना रही है। राष्ट्रपति ने पहले ही रिपोर्ट राज्यसभा सभापति और लोकसभा अध्यक्ष को भेज दी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला सरकार और विपक्ष के बीच एक दुर्लभ सहमति का क्षण ला सकता है, क्योंकि न्यायपालिका की स्वच्छ छवि सभी की प्राथमिकता है। हालांकि, कांग्रेस ने अभी तक अपना रुख स्पष्ट नहीं किया है। यदि प्रस्ताव पारित होता है, तो यह भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होगा और भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त संदेश जाएगा।
क्या यह मामला बनेगा जजों के लिए चेतावनी?
जस्टिस वर्मा मामले का न्यायपालिका पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकता है। यदि महाभियोग प्रक्रिया सफल होती है, तो यह भविष्य में किसी भी न्यायाधीश के लिए एक स्पष्ट चेतावनी होगी। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी। हालांकि, कुछ विधि विशेषज्ञ चिंता जता रहे हैं कि यह प्रक्रिया राजनीतिक हस्तक्षेप का द्वार भी खोल सकती है। फिलहाल, सभी की नजरें संसद के मॉनसून सत्र पर टिकी हैं, जहां देश की न्यायिक व्यवस्था का भविष्य तय हो सकता है!
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