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दुनियाभर में तुर्की की घेराबंदी! भारत के दोस्त रूस से कैसे हैं रिश्ते? यहां समझिए A टू Z विश्लेषण

तुर्की की घेराबंदी के बीच भारत-रूस के रिश्ते बन सकते हैं निर्णायक ताकत, जानिए कैसे बदल सकती है दुनिया की दिशा
11:05 AM May 15, 2025 IST | Avdesh
तुर्की की घेराबंदी के बीच भारत-रूस के रिश्ते बन सकते हैं निर्णायक ताकत, जानिए कैसे बदल सकती है दुनिया की दिशा

India Turkey Relation: तुर्की ने पाकिस्तान का साथ देकर भारत के खिलाफ मोर्चा खोला, लेकिन 140 करोड़ भारतीयों ने तुर्की को करारा जवाब दिया। भारतीयों ने तुर्की का बहिष्कार शुरू कर दिया, क्योंकि 7 से 10 मई के तनाव के दौरान तुर्की का रुख भारत को स्वीकार नहीं हुआ। (India Turkey Relation) इस दौरान तुर्की ने पाकिस्तान का समर्थन किया और अपने ड्रोन्स के जरिए पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ नापाक हरकतें कीं। हालांकि, भारत ने रूस से मिले S-400 हथियारों की ताकत से अपने दुश्मनों को मात दी। अब सवाल यह है कि भारत के खिलाफ खड़े तुर्की के रूस के साथ रिश्ते कैसे हैं? आइए विस्तार से समझते हैं.

तुर्की ने कई बार दिया पाकिस्तान का साथ!

तुर्की के भारत के प्रति रवैये को समझने से पहले हमें यह देखना होगा कि यह पहली बार नहीं है जब तुर्की ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया। पहले भी कई बार वह कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करता रहा, लेकिन हर बार भारत ने उसे अपने जवाब से चुप कराया। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन खुद को मुस्लिम देशों का नेता बनाना चाहते हैं।

उन्हें लगता है कि कश्मीर का मुद्दा उठाकर वे पाकिस्तान और अन्य मुस्लिम देशों का समर्थन हासिल कर लेंगे लेकिन ये बहुत दूर की कौड़ी लगती है. सऊदी अरब और UAE जैसे बड़े मुस्लिम देश भारत के साथ मजबूती से खड़े हैं। खासकर नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद भारत के इन देशों के साथ रिश्ते और गहरे हुए हैं। ऐसे में एर्दोगन कूटनीति में नाकाम होने के बाद युद्ध के मैदान में पाकिस्तान का साथ देने उतरे, लेकिन वहां भी उनकी हार हुई।

तुर्की और रूस के कैसे हैं रिश्ते?

दोनों देशों में ऐसे नेता हैं जो अपनी नीतियों को अचानक बदल सकते हैं। तुर्की के एर्दोगन और रूस के पुतिन एक-दूसरे को अहम साझेदार मानते हैं। दोनों यह भी सुनिश्चित करते हैं कि उनके बीच ज्यादा दूरी न आए।

यानी उनका रिश्ता न बहुत करीबी है, न बहुत दूर का। इसे रूस-यूक्रेन युद्ध में तुर्की के रवैये से समझा जा सकता है। यूक्रेन-रूस युद्ध में तुर्की ने यूक्रेन को ड्रोन दिए, लेकिन साथ ही पुतिन को खुश करने की कोशिश भी की। यह संतुलन केवल एर्दोगन के दौर में ही नहीं रहा। 1920 के दशक में इस्तांबुल रूसी प्रवासियों के लिए शरणस्थली था।

तुर्की 1917 में यूक्रेनी पीपुल्स रिपब्लिक और 1991 में यूक्रेन की स्वतंत्रता को मान्यता देने वाले पहले देशों में शामिल था। सांस्कृतिक आदान-प्रदान और अंतर-विवाह ने दोनों देशों के लोगों को करीब लाया। तुर्की में न रूसियों की छवि नकारात्मक रही, न यूक्रेनियों की। जब पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए, तब तुर्की ने रूस के साथ व्यापार जारी रखा। उसने पश्चिमी देशों के साथ भी अपने व्यापारिक रिश्ते बनाए रखे।

व्यापार का नाजुक रिश्ता!

2023 में तुर्की और रूस का व्यापार और बढ़ा। तुर्की ने 2022 की तुलना में 2023 में रूसी ईंधन उत्पादों की खरीद में 105% की बढ़ोतरी की। हालांकि, अमेरिका ने तुर्की को चेतावनी दी है कि अगर वह रूस के साथ व्यापार जारी रखता है, तो उसे प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।

कुल मिलाकर, रूस का तुर्की पर कोई नियंत्रण नहीं है। दोनों देशों के रिश्ते उनकी जरूरतों के आधार पर तय होते हैं। मौजूदा स्थिति में रूस को तुर्की की व्यापारिक और कूटनीतिक जरूरत ज्यादा है। वहीं, तुर्की रूस को एक महत्वपूर्ण पड़ोसी मानता है। रूस के अलावा तुर्की के अन्य पड़ोसी, जैसे यूरोपीय संघ और खाड़ी देश, भी प्रभावशाली हैं।

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