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युद्ध के वक्त क्या खत्म हो जाते हैं आपके संवैधानिक मौलिक अधिकार? समझिए अनुच्छेद 358 और 359 का असली मतलब...

ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाक तनाव के बीच अहम सवाल—क्या युद्ध में मौलिक अधिकार खत्म हो जाते हैं? जानिए अनुच्छेद 358 और 359 का सच।
06:36 PM May 09, 2025 IST | Rohit Agrawal
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाक तनाव के बीच अहम सवाल—क्या युद्ध में मौलिक अधिकार खत्म हो जाते हैं? जानिए अनुच्छेद 358 और 359 का सच।

ऑपरेशन सिंदूर के जवाब में पाकिस्तान की विफल हमले की कोशिशों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि भारत अब कमजोर नहीं बल्कि घुसकर वार करना जानता है। अब इस तनाव के इस दौर में यह सवाल और भी गंभीर हो गया है कि देश में युद्ध छिड़ने पर क्या संविधान अपने नागरिकों का साथ छोड़ देता है। संविधान के अनुच्छेद 358 और 359 इस सवाल का जवाब देते हैं, जो सरकार को आपातकाल में कुछ अधिकारों को सीमित करने की ताकत देते हैं। पर क्या जीने का हक भी छिन सकता है? आइए समझते हैं पूरा सच...

युद्धकाल में कौन से अधिकार हो जाते हैं प्रतिबंधित?

जब देश युद्ध या बाहरी हमले की स्थिति से जूझ रहा होता है, तो अनुच्छेद 358 के तहत अनुच्छेद 19 द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार स्वतः ही निलंबित हो जाते हैं। इसका मतलब है कि सरकार बिना किसी अलग आदेश के भाषण की आजादी, शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार, संगठन बनाने की स्वतंत्रता, देश में कहीं भी आने-जाने और रहने का हक, और व्यापार करने की आजादी पर रोक लगा सकती है। यह प्रावधान सरकार को राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कड़े फैसले लेने की छूट देता है, लेकिन यह निलंबन स्थायी नहीं होता। जैसे ही आपातकाल हटता है, ये अधिकार फिर से लागू हो जाते हैं।

क्या जीवन का अधिकार भी छीन सकती है सरकार?

नहीं, अनुच्छेद 20 और 21 द्वारा प्रदत्त अधिकार किसी भी हालत में निलंबित नहीं किए जा सकते। संविधान की यह खासियत है कि यह नागरिकों को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है, चाहे देश युद्ध ही क्यों न लड़ रहा हो।

इसका मतलब है कि किसी को भी बिना कानूनी प्रक्रिया के जेल में नहीं ठूंसा जा सकता और न ही किसी को पूर्वव्यापी कानून के तहत सजा दी जा सकती है। 1975 के आपातकाल के दौरान भी सर्वोच्च न्यायालय ने साफ किया था कि अनुच्छेद 21 को पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सकता।

राष्ट्रपति के पास कितनी शक्ति होती है आपातकाल में?

अनुच्छेद 359 राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह कुछ विशेष मौलिक अधिकारों के न्यायिक प्रवर्तन को निलंबित करने का आदेश जारी कर सकें। यह अनुच्छेद 358 से अलग है, क्योंकि इसमें अधिकारों का निलंबन स्वतः नहीं होता, बल्कि सरकार को एक आदेश पारित करना पड़ता है। इसके तहत अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 22 (गिरफ्तारी से सुरक्षा) जैसे प्रावधानों को अस्थायी रूप से रोका जा सकता है, लेकिन अनुच्छेद 20 और 21 को नहीं। 1975 के आपातकाल में इंदिरा गांधी सरकार ने इसी प्रावधान का इस्तेमाल करते हुए नागरिकों के अधिकारों को सीमित कर दिया था, जिसे बाद में विवादास्पद माना गया।

क्या युद्ध के समय लोकतंत्र खत्म हो जाता है?

बिल्कुल नहीं। भारतीय संविधान राष्ट्रीय सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रता के बीच एक संतुलन बनाता है। युद्ध या आपातकाल के दौरान सरकार को कुछ अधिकार सीमित करने की छूट जरूर मिलती है, लेकिन जीवन का अधिकार, निष्पक्ष सुनवाई का हक और कानूनी सुरक्षा जैसे मूलभूत सिद्धांत कभी नहीं छीने जा सकते। यही वजह है कि भारत का लोकतंत्र किसी भी संकट में टिका रहता है।

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