नेशनलराजनीतिमनोरंजनखेलहेल्थ & लाइफ स्टाइलधर्म भक्तिटेक्नोलॉजीइंटरनेशनलबिजनेसआईपीएल 2025चुनाव

क्यों शिवसेना महाराष्ट्र से बाहर नहीं बना पाई अपनी पहचान? जानें इसके पीछे की वजहें

बाल ठाकरे की शिवसेना ने महाराष्ट्र के बाहर विस्तार की कोशिश की, लेकिन कभी भी राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान नहीं बना सकी। जानें क्यों शिवसेना महाराष्ट्र से बाहर एक क्षेत्रीय पार्टी बनकर रह गई।
11:20 AM Nov 18, 2024 IST | Vibhav Shukla

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव अब अपने आखिरी दौर में हैं। 20 नवंबर को वोट डाले जाएंगे, और उससे पहले 18 नवंबर की शाम तक चुनावी प्रचार थम जाएगा। इस बार चुनावी जंग दो बड़े गठबंधनों के बीच है – सत्ताधारी महायुति और विपक्षी महाविकास अघाड़ी। दोनों ही गठबंधन अपने-अपने उम्मीदवारों को जीत दिलाने के लिए हर संभव कोशिश कर रहे हैं। लेकिन इस बार का सबसे बड़ा सवाल मुख्यमंत्री पद की रेस को लेकर है। महायुति में तीन बड़े नेता सीएम पद के दावेदार हैं, जबकि महाविकास अघाड़ी में उद्धव ठाकरे खुद को सीएम की रेस में सबसे आगे मान रहे हैं। लेकिन, इस चुनावी घमासान के बीच एक पुराना सवाल फिर से उठ रहा है – "शिवसेना का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार क्यों नहीं हो पाया?

महाराष्ट्र से बाहर क्यों नहीं फैल पाई शिवसेना?

ये समझने के लिए सबसे जरूरी है बाल ठाकरे को समझाना। बाल ठाकरे का नाम सुनते ही हमारे दिमाग में एक शख्सियत की तस्वीर उभरती है, जो न सिर्फ राजनीति के मैदान में आग उगलते थे, बल्कि एक पूरी विचारधारा को जन्म देते थे। 'शिवसेना' का नाम जब जुड़ता है, तो किसी भी मराठी के दिल में जोश भर जाता है। बाल ठाकरे, जिनके लिए महाराष्ट्र और मराठा अस्मिता ही सबसे बड़ा मुद्दा था, ने एक ऐसी पार्टी की नींव डाली, जिसने ना सिर्फ महाराष्ट्र की सियासत को हिलाकर रख दिया, बल्कि हिंदुत्व के कट्टर चेहरों में खुद को एक महत्वपूर्ण नाम बना लिया। उनके दौर में शिवसेना एक ताकत बन गई, जिसने अपने विरोधियों से लेकर समर्थकों तक को खौफ और सम्मान दोनों दिया। लेकिन जब बात आई दूसरे राज्यों में अपनी पकड़ बनाने की, तो शिवसेना वहां नाकाम रही।

ये भी पढ़ें- मोदी की रैली से अजित पवार ने क्यों बनाई दूरी? नाराजगी है या कोई रणनीति?

1966 में शिवसेना की स्थापना करने वाले ठाकरे का सपना था कि उनकी पार्टी महाराष्ट्र से बाहर भी अपनी पकड़ बनाए लेकिन आखिरकार शिवसेना एक क्षेत्रीय पार्टी बनकर ही रह गई। हालांकि बाल ठाकरे का प्रभाव देश भर में था, उनके नेतृत्व में शिवसेना ने कई राज्यों में चुनाव लड़ा, लेकिन कभी भी राष्ट्रीय स्तर पर स्थिरता हासिल नहीं कर पाई। तो आखिर क्यों शिवसेना, जो एक समय तक भारतीय राजनीति का महत्वपूर्ण हिस्सा बनकर उभरी, दूसरे राज्यों में अपनी धाक नहीं जमा पाई? क्या कारण रहे कि महाराष्ट्र से बाहर पार्टी का विस्तार सीमित ही रहा? आइए, समझने की कोशिश करते हैं।

बाल ठाकरे का राष्ट्रीय प्रभाव था, फिर क्यों नहीं बनी पार्टी राष्ट्रीय?

बाल ठाकरे का जन्म 23 जनवरी 1926 को हुआ था और वे हमेशा से मराठा अस्मिता और हिंदुत्व के प्रमुख चेहरे रहे। उनकी पार्टी, शिवसेना, ने महाराष्ट्र में तो अपना दबदबा बनाए रखा ही, साथ ही उनका प्रभाव उत्तर भारत और अन्य राज्यों में भी था। उनका लक्ष्य था कि शिवसेना सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित न रहे, बल्कि देशभर में अपनी छाप छोड़े। इसके लिए उन्होंने यूपी, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटका जैसे राज्यों में पार्टी के उम्मीदवार भी खड़े किए।

लेकिन क्या इन प्रयासों का कोई असर पड़ा? सच कहें तो नहीं। महाराष्ट्र के बाहर शिवसेना को जो सफलता मिली, वह कभी स्थायी नहीं रही। कहीं-कहीं लोकसभा या विधानसभा में एक-दो सीटें जरूर मिलीं, लेकिन पार्टी का कोई मजबूत संगठन खड़ा नहीं हो सका।

कुछ मामूली सफलता जरूर मिली

महाराष्ट्र के बाहर शिवसेना को कुछ इक्का-दुक्का सफलता जरूर मिली थी, लेकिन वह भी स्थायी नहीं थी। उदाहरण के लिए, दादरा-नगर हवेली से कलाबाई देलकर ने शिवसेना के टिकट पर लोकसभा चुनाव जीतकर एक नई उम्मीद जगी थी। वह शिवसेना की महाराष्ट्र के बाहर पहली निर्वाचित सांसद बनी थीं। इसके अलावा, 1991 में यूपी से पवन पांडे ने शिवसेना के टिकट पर विधानसभा चुनाव जीते थे। उस समय राम जन्मभूमि आंदोलन का बड़ा असर था, और शिवसेना ने हिंदुत्व के मुद्दे पर अपनी आवाज बुलंद की थी। इस जीत के बाद पार्टी ने उत्तर प्रदेश में विस्तार की योजना बनाई, लेकिन यह सिलसिला ज्यादा समय तक नहीं चल सका। पवन पांडे अगला चुनाव हार गए, और फिर शिवसेना का यूपी में आगे बढ़ने का सपना अधूरा रह गया।

अयोध्या आंदोलन ने दी पहचान, लेकिन क्या मिला?

90 के दशक में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण को लेकर देशभर में आंदोलन छिड़ गया था। इस समय शिवसेना ने अपने हिंदुत्व के एजेंडे को और मजबूती से पेश किया। बाल ठाकरे उस समय हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरों में से एक बन गए थे। पाकिस्तान में भी लोग "ठाकरे ठाकरे" का नाम लेने लगे थे। इस दौरान पार्टी ने राष्ट्रीय स्तर पर अपना विस्तार करने की कोशिश की थी। लेकिन एक बड़ा सवाल यह था कि क्या शिवसेना की नीतियां सिर्फ महाराष्ट्र तक ही सीमित थीं? दरअसल, शिवसेना की राजनीति हमेशा मराठा अस्मिता और महाराष्ट्र के मुद्दों के इर्द-गिर्द घूमती रही थी। जब पार्टी को महाराष्ट्र में सफलता मिली, तो उसने बाकी राज्यों की बजाय वहां ज्यादा ध्यान केंद्रित किया। ऐसे में पार्टी के राष्ट्रीय विस्तार के प्रयास ज्यादा दिनों तक सफल नहीं हो पाए।

और क्या कारण रहे विस्तार में फेल होने के?

शिवसेना के विस्तार में सबसे बड़ी बाधा यह थी कि पार्टी के पास दूसरे राज्यों में कोई स्थानीय चेहरा नहीं था। बाल ठाकरे के नेतृत्व में पार्टी ने महाराष्ट्र में तो जबरदस्त पैठ बनाई, लेकिन दूसरे राज्यों में कोई ऐसा चेहरा नहीं था, जिसे लोग पहचानते या स्वीकार करते। दूसरे राज्यों में कोई मजबूत संगठन न होने के कारण पार्टी कभी भी स्थिर स्थिति में नहीं पहुंच पाई।

ये भी पढ़ें- पत्नी अमृता को लेकर कन्हैया कुमार द्वारा की गई रील वाली टिप्पणी पर भड़के देवेंद्र फडणवीस

इसके अलावा, शिवसेना की नीतियां हमेशा मराठियों के हक की बात करती थीं। अन्य राज्यों में पार्टी को अपनी बात रखने के लिए स्थानीय मुद्दों और चेहरे की जरूरत थी, जो कभी नहीं मिल पाए। यही कारण था कि पार्टी ने कोशिशों के बावजूद कभी कोई ठोस सफलता हासिल नहीं की।

चुनावी नीतियां और संगठन की कमी

अधिकांश समय तक शिवसेना की सारी नीतियां महाराष्ट्र पर ही केंद्रित रहीं। पार्टी के नेताओं ने खुद को महाराष्ट्र के असली बेटों के रूप में पेश किया और दूसरे राज्यों में पार्टी की साख बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। दूसरी बड़ी वजह यह थी कि पार्टी के पास एक ऐसा स्थिर संगठन नहीं था, जो हर राज्य में फैला हो। हर राजनीतिक दल के लिए यह जरूरी होता है कि वह केवल चुनाव लड़ने के लिए उम्मीदवार न उतारे, बल्कि चुनावी सफलता के लिए संगठन और मजबूत आधार भी तैयार करे। शिवसेना इस मोर्चे पर कमजोर साबित हुई।

बाल ठाकरे के बाद क्या हुआ?

बाल ठाकरे के निधन के बाद पार्टी में ऐसा कोई बड़ा चेहरा सामने नहीं आया, जो राष्ट्रीय राजनीति में उनका स्थान ले सके। ठाकरे के बाद के नेताओं में वो करिश्मा और नेतृत्व की शक्ति नहीं थी, जिससे शिवसेना की राष्ट्रीय राजनीति में एक मजबूत भूमिका बनती। इसके अलावा, पार्टी की नीतियां भी ज्यादा महाराष्ट्र केंद्रित रही और उसका ध्यान महाराष्ट्र की सत्ता पर ही रहा। जब तक शिवसेना का ध्यान सिर्फ राज्य की राजनीति पर था, तब तक पार्टी ने राष्ट्रीय राजनीति में ज्यादा असरदार भूमिका नहीं निभाई।

क्या शिवसेना राष्ट्रीय पार्टी बन सकती थी?

बाल ठाकरे का नेतृत्व बेहद मजबूत था और शिवसेना के लिए उनका योगदान अतुलनीय था। लेकिन पार्टी का राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार कई कारणों से नहीं हो सका। एक तो पार्टी के पास दूसरे राज्यों में कोई स्थानीय चेहरा नहीं था, दूसरा महाराष्ट्र की राजनीति पर ही पार्टी का ज्यादा ध्यान था और तीसरा संगठन की कमी। इसके बावजूद, अगर शिवसेना ने अन्य राज्यों में भी मजबूत संगठन खड़ा किया होता और स्थानीय नेताओं को बढ़ावा दिया होता, तो पार्टी राष्ट्रीय राजनीति में एक प्रमुख ताकत बन सकती थी। लेकिन, इसका सपना अंतत: अधूरा रह गया।

Tags :
Bal ThackerayHindutvaMaharashtraNATIONAL POLITICSPolitical ChallengesPolitical ExpansionRegional Politicsshiv senashiv sena national expansion why failedअयोध्या आंदोलनबाल ठाकरेबाल ठाकरे का प्रभावमहाराष्ट्र की राजनीतिमहाराष्ट्र से बाहर शिवसेनायूपी में शिवसेनाशिवसेनाशिवसेना की असफलताशिवसेना की नीतियांशिवसेना राष्ट्रीय राजनीति

ट्रेंडिंग खबरें

Next Article