औरंगजेब और राणा सांगा से लेकर सोफिया-व्योमिका तक...अखिलेश की टीम के 'बयानवीरों' की जुबान बार-बार क्यों फिसल रही?
यूपी की सियासत में एक नया ट्रेंड चल निकला है कि उल्टा सीधा बोलो और बवाल मचाओ। पहले अबू आजमी ने औरंगजेब को "महान शासक" बताया, फिर रामजीलाल सुमन ने राणा सांगा पर विवादित टिप्पणी की, और अब राम गोपाल यादव ने सोफिया कुरैशी और व्योमिका सिंह को लेकर ऐसा बयान दिया कि पूरा यूपी सियासी आग में झुलस गया। सवाल यह है कि क्या ये सब "जुबान फिसलने" के मामले हैं या फिर यह सपा की "डिवाइड एंड रूल" की नई रणनीति है? जब एक के बाद एक नेता विवादों में घिरते हैं, तो क्या यह संयोग है या सोची-समझी प्लानिंग?
औरंगजेब से शुरू हुआ सियासी तूफान
महाराष्ट्र में सपा विधायक अबू आजमी ने जब औरंगजेब को "विकृत छवि का शिकार" बताया, तो पूरा देश भड़क उठा। उनका कहना था कि मुगल बादशाह को जानबूझकर बदनाम किया जा रहा है। नतीजा? विधानसभा से निलंबन और दो एफआईआर। बाद में आजमी ने माफी मांगी, लेकिन तब तक सपा का एक वोट बैंक खुश हो चुका था। क्या यह "मुस्लिम तुष्टीकरण" का खेल था?
राणा सांगा पर पर उगला राज्यसभा सांसद ने जहर
इसके बाद राज्यसभा सांसद रामजीलाल सुमन ने राणा सांगा को लेकर ऐसा बोल दिया कि क्षत्रिय संगठन सड़कों पर उतर आए। आगरा में करणी सेना ने सुमन के घर पर हमला बोल दिया। अखिलेश यादव ने इसे "योगी सरकार की साजिश" बताया, लेकिन सवाल यह है कि क्या सपा के नेता जानबूझकर "जातिगत भावनाएं भड़काने" का काम कर रहे हैं?
अब सोफिया और व्योमिका पर रामगोपाल का जातिसूचक प्रहार
मुरादाबाद में राम गोपाल यादव ने कहा कि "अगर लोगों को पता चलता कि व्योमिका सिंह जाटव हैं और एयर मार्शल भारती यादव हैं, तो उन्हें भी गालियां मिलतीं।" यह बयान इतना विस्फोटक था कि योगी आदित्यनाथ तक ने ट्वीट करके सपा को घेर लिया। राम गोपाल ने बाद में सफाई दी कि उनके शब्दों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, लेकिन तब तक बीजेपी ने इसे "सपा की जातिवादी मानसिकता" का प्रमाण बना दिया।
क्या यह सपा की "पीडीए पॉलिटिक्स" है?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा जानबूझकर PDA (परस्पर विरोधी समूहों) को टारगेट" कर रही है। मुस्लिम नेता औरंगजेब पर बयान देता है, दलित नेता राणा सांगा पर, और ओबीसी नेता सैन्य अधिकारियों की जाति पर। इस तरह, हर वर्ग को लगता है कि सपा उसके साथ है। क्या यह "वोट बैंक पॉलिटिक्स" का नया अंदाज है?
क्या हैं सपा नेताओं की ऐसी जुबान के मायने?
सपा के नेताओं के बयान अब "संयोग" नहीं, "रणनीति" लगते हैं। अगर जुबान फिसलती है, तो सिर्फ एक बार। लेकिन जब बार-बार विवाद होते हैं, तो समझना चाहिए कि यह "सियासी कैलकुलेशन" है। सवाल यह है कि क्या यूपी की जनता इस खेल को समझ पाएगी? या फिर यह "बयानों का जंगल" आगामी चुनावों में सपा को फायदा पहुंचाएगा? जवाब वक्त देगा, लेकिन इतना तय है कि यूपी की राजनीति अब "बोलो और बवाल मचाओ" के नए दौर में प्रवेश कर चुकी है।
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