भारत की राष्ट्रीय भाषा क्या है? स्पेन में पूछे गए सवाल पर ऐसा क्या बोलीं DMK नेता, वायरल हो गया बयान
स्पेन के मैड्रिड में एक सवाल ने भारतीय राजनीति की सबसे गर्म बहस को अंतरराष्ट्रीय मंच पर ला खड़ा किया। जब एक भारतीय प्रवासी ने डीएमके सांसद कनिमोझी करुणानिधि से पूछा कि "भारत की राष्ट्रीय भाषा क्या है?" तो उनका जवाब न सिर्फ वहां मौजूद लोगों को हैरान कर गया, बल्कि भारत की उस सांस्कृतिक विरासत को भी रेखांकित कर गया जो दुनिया भर में मिसाल बन चुकी है। कनिमोझी ने कहा कि"भारत की राष्ट्रीय भाषा 'अनेकता में एकता' है।" यह वही जवाब था जिसने हाल ही में तमिलनाडु से लेकर दिल्ली तक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया था।
तमिलनाडु से स्पेन तक कैसे पहुंच गई भाषा की लड़ाई?
कनिमोझी करुणानिधि का यह बयान कोई साधारण जवाब नहीं था, बल्कि उस ज्वलंत विवाद का विस्तार था जो केंद्र सरकार की तीन-भाषा फॉर्मूले वाली नई शिक्षा नीति (एनईपी 2020) को लेकर छिड़ा हुआ है। डीएमके लंबे समय से हिंदी को थोपे जाने के खिलाफ मुखर रही है, और अब उसने इस संदेश को वैश्विक मंच पर पहुंचा दिया है। स्पेन में दिए गए इस जवाब के पीछे वही भावना थी जो तमिलनाडु में "हिंदी विरोधी आंदोलनों" की रीढ़ रही है कि भारत की भाषाई विविधता को किसी एक भाषा के दबदबे में न बदलने देना।
#WATCH | Madrid, Spain: While addressing the Indian diaspora, DMK MP Kanimozhi said, "The national language of India is unity and diversity. That is the message this delegation brings to the world, and that is the most important thing today..." pic.twitter.com/cVBrA99WK3
— ANI (@ANI) June 2, 2025
आतंकवाद पर DMK नेता ने क्या कहा?
प्रतिनिधिमंडल के दौरे का मुख्य उद्देश्य ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान के आतंकवाद को वैश्विक स्तर पर बेनकाब करना था, लेकिन कनिमोझी ने इस मौके पर केंद्र सरकार पर भी निशाना साधा। उन्होंने कहा कि हमें आतंकवाद और युद्ध जैसी गैर-जरूरी चीजों से भटकाया जा रहा है।" यह बयान उस बहस को फिर से हवा दे सकता है जिसमें विपक्ष, सरकार पर आतंकवाद से लड़ने के नाम पर विकास के मुद्दों को नजरअंदाज करने का आरोप लगाता रहा है। हालांकि, उन्होंने यह भी साफ किया कि भारत (और खासकर कश्मीर) पूरी तरह सुरक्षित है, और दुनिया को यही संदेश देना इस दौरे का मकसद है।
क्या DMK का यह स्टैंड भारतीय राजनीति में छेड़ेगा नई बहस?
कनिमोझी करुणानिधि का यह बयान सिर्फ एक सवाल का जवाब भर नहीं है, बल्कि भारत की उस जटिल राजनीतिक पहेली को फिर से उजागर करता है जहां भाषा, संस्कृति और राष्ट्रीय पहचान का सवाल हमेशा से विवादों के केंद्र में रहा है। जब एक तमिल नेता अंतरराष्ट्रीय मंच पर कहती है कि "भारत की कोई एक भाषा नहीं, बल्कि उसकी एकता ही उसकी पहचान है", तो यह देश के भीतर चल रही उस बहस को नया आयाम देता है जहां हिंदी vs क्षेत्रीय भाषाओं का मुद्दा अब तक हल नहीं हो पाया है। क्या यह वक्त है जब भारत आधिकारिक तौर पर अपनी "राष्ट्रीय भाषा" की परिभाषा को बदल दे? या फिर यह सिर्फ राजनीतिक दांव-पेच का एक और हथियार है? स्पेन से उठा यह सवाल अब दिल्ली की सत्ता गलियारों में गूंजने वाला है।
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