PM मोदी की सैन्य नीति पर चिदंबरम ने की खुलकर तारीफ, बताया– ‘संतुलित, बुद्धिमत्तापूर्ण और रणनीतिक जवाब’
राजनीति में विचारों का टकराव आम बात है, लेकिन जब राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमाओं की बात आती है, तो कभी-कभी विपक्ष भी सरकार के फैसलों की सराहना करता है। कुछ ऐसा ही नज़ारा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व गृह मंत्री पी. चिदंबरम के हालिया बयान में देखने को मिला, जहां उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पाकिस्तान को दी गई सैन्य प्रतिक्रिया को “बुद्धिमत्तापूर्ण और संतुलित” करार दिया।
'युद्ध का टालना ही सबसे बड़ी जीत थी'
इंडियन एक्सप्रेस में लिखे अपने कॉलम में चिदंबरम ने साफ कहा कि 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद देश में बदला लेने की भावना उफान पर थी। इसके बावजूद सरकार ने संयम बरतते हुए सीमित सैन्य कार्रवाई का रास्ता चुना, जो न केवल समझदारी भरा था बल्कि एक पूर्ण युद्ध की संभावना को भी रोक गया। उनके मुताबिक, भारत की यह कार्रवाई न सिर्फ सटीक थी बल्कि उसका लक्ष्य भी स्पष्ट था – आतंक के अड्डों को खत्म करना, न कि युद्ध भड़काना।
मोदी की 'No War' नीति की तारीफ
चिदंबरम ने पीएम मोदी के 2022 में व्लादिमीर पुतिन से कहे गए शब्दों – "यह युद्ध का युग नहीं है" – को याद दिलाया और कहा कि आज की दुनिया में यही भावना सबसे अधिक प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि कई देशों ने भारत को निजी तौर पर यही सलाह दी थी कि युद्ध की बजाय जवाब सोच-समझकर दिया जाए। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि भारत और पाकिस्तान जैसे परमाणु संपन्न देशों के बीच युद्ध, केवल सीमा तक सीमित नहीं रहेगा बल्कि वैश्विक स्तर पर भी खतरे की घंटी बजा सकता है। रूस-यूक्रेन और गाज़ा-इज़राइल संघर्षों का उदाहरण देकर उन्होंने समझाया कि अब दुनिया युद्ध से थक चुकी है।
7 मई की कार्रवाई को बताया वैध और सटीक
चिदंबरम ने 7 मई को हुई भारत की सैन्य कार्रवाई को "वैध और लक्ष्य केंद्रित" बताया, जिसमें PoK और पाकिस्तान के नौ ठिकानों को ड्रोन और मिसाइल हमलों से निशाना बनाया गया। उन्होंने विशेष तौर पर सराहना की कि नागरिक इलाकों और पाकिस्तानी सेना पर कोई हमला नहीं किया गया, जिससे यह संदेश गया कि भारत केवल आतंकवाद को जवाब दे रहा है, देश को नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि पाकिस्तान के मंत्री सिर्फ दावे करते रहे, पर कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर पाए।
चेतावनी देते हुए कहा, आतंक का खतरा अभी टला नहीं
हालांकि चिदंबरम ने इस संतुलित एक्शन की तारीफ की, लेकिन साथ ही यह चेतावनी भी दी कि लश्कर, जैश और TRF जैसे आतंकी संगठन अब भी पूरी तरह खत्म नहीं हुए हैं। उनके पास फिर से उभरने की क्षमता है और जब तक ISI का समर्थन बना हुआ है, खतरा बना रहेगा। जहां एक ओर चिदंबरम ने सरकार की कार्रवाई को समझदारी भरा बताया, वहीं प्रधानमंत्री मोदी की पीड़ित परिवारों से दूरी और ऑल पार्टी मीटिंग से अनुपस्थिति पर सवाल खड़े किए। उन्होंने इसे मणिपुर संकट में दिखी चुप्पी से जोड़ते हुए कहा कि ऐसे समय में एकजुटता का प्रदर्शन जरूरी होता है।
महिला सैन्य अधिकारियों को सामने लाना – एक स्मार्ट कदम
सरकार की मीडिया रणनीति की भी चिदंबरम ने तारीफ की। उन्होंने कहा कि प्रेस ब्रीफिंग में महिला सैन्य अधिकारियों को आगे लाना एक स्मार्ट और प्रेरणादायक निर्णय था। यह बदलाव भारत की सैन्य सोच और सामाजिक प्रगति दोनों को दर्शाता है। चिदंबरम ने अपने लेख का अंत इस विचार के साथ किया कि भारत ने जवाब दे दिया है – अब यह पाकिस्तान पर निर्भर करता है कि वह शांति चाहता है या फिर अस्थिरता। पाकिस्तान की राजनीति, जहां असली ताकत सेना और ISI के पास है, वहां क्या कोई लोकतांत्रिक फैसला संभव है?
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