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दिवाली पर ही क्यों दिया जाता है बोनस? जानिए कैसे हुई शुरुआत

दिवाली के मौसम में मिलने वाला बोनस सिर्फ खुशी का त्योहार नहीं है, बल्कि एक ऐतिहासिक परंपरा है। जानिए कैसे ब्रिटिश शासन के दौरान 13वें महीने के वेतन से शुरू हुई यह परंपरा आज कानून के रूप में स्थापित हुई।
10:28 AM Oct 28, 2024 IST | Vibhav Shukla

दिवाली का त्योहार भारत में सिर्फ रोशनी और उत्सव का पर्व नहीं है, बल्कि यह नौकरीपेशा लोगों के लिए एक विशेष आर्थिक अवसर भी है। इस समय के आसपास कंपनियां अपने कर्मचारियों को बोनस देती हैं, जिसका इंतजार सभी बड़े उत्साह के साथ करते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि दिवाली पर बोनस देने की परंपरा क्यों है? इसके पीछे एक लंबा इतिहास है।

कानूनी रूप से अनिवार्य हुआ बोनस

भारत में बोनस का कानूनी ढांचा आजादी के बाद बना। साल 1965 में 'पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट' पारित हुआ, जिसके तहत कंपनियों को अपने कर्मचारियों को दिवाली पर बोनस देना अनिवार्य कर दिया गया। हालांकि, बोनस देने की परंपरा इससे पहले भी मौजूद थी।

अंग्रेजों के शासन से पहले, भारत में सभी कर्मचारियों को साप्ताहिक भुगतान किया जाता था। इसका मतलब था कि एक साल में कर्मचारियों को 52 हफ्ते का वेतन मिलता था, यानी 13 महीने के बराबर वेतन। लेकिन जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने मासिक वेतन प्रणाली लागू की, तो कर्मचारियों को साल में केवल 48 हफ्ते का वेतन मिलने लगा। इससे कर्मचारियों को आर्थिक नुकसान हुआ, क्योंकि वेतन की यह नई व्यवस्था उनके लिए असुविधाजनक थी।

13वें महीने का वेतन और दिवाली बोनस

जब कर्मचारियों ने नई व्यवस्था के खिलाफ विरोध किया, तो 1940 में ब्रिटिश सरकार ने निर्णय लिया कि 13वें महीने का वेतन दिवाली पर दिया जाएगा। दिवाली, जो भारत का सबसे बड़ा त्योहार है, इस दिन बोनस देने का निर्णय लिया गया। इसने लोगों को मानसिक और आर्थिक दोनों तरह से राहत प्रदान की।

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जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो यह 13वें महीने का वेतन दिवाली बोनस के रूप में जाना जाने लगा। लेकिन स्वतंत्रता के बाद कई कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को इस बोनस के रूप में 13वें महीने का वेतन देना बंद कर दिया। इसके लिए सरकार को 1965 में नया कानून बनाना पड़ा। इस कानून के अनुसार, कंपनियों को अपने कर्मचारियों को कम से कम 8.33 प्रतिशत बोनस देना अनिवार्य किया गया। यह प्रावधान आज भी लागू है और इससे कर्मचारियों को वित्तीय सुरक्षा मिलती है।

कंपनियों की चालाकी

हालांकि, आजकल कई कंपनियां इस कानून का पालन नहीं करती हैं। कुछ कंपनियां बोनस को अपने 'कॉस्ट टू कंपनी' (सीटीसी) का हिस्सा बना देती हैं। साथ ही, बोनस को कर्मचारियों की परफॉर्मेंस से जोड़ देती हैं। जब बोनस देने की बारी आती है, तो कर्मचारियों का प्रदर्शन कमजोर बताकर उन्हें कम बोनस दिया जाता है, जो 8.33 प्रतिशत से भी कम हो सकता है या कभी-कभी तो बोनस देने से ही इनकार कर दिया जाता है।

 

 

 

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