नेशनलराजनीतिमनोरंजनखेलहेल्थ & लाइफ स्टाइलधर्म भक्तिटेक्नोलॉजीइंटरनेशनलबिजनेसआईपीएल 2025चुनाव

“राज्य ‘एक और भाषा युद्ध’ के लिए तैयार”, हिंदी भाषा पर स्टालिन की केंद्र सरकार को दो टूक

Three Language Formula: दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव भले ही 2026 में होने वाले हों, लेकिन उससे पहले एक मुद्दा इतना गरमा गया है कि केंद्र और राज्य की DMK सरकार आमने-सामने आ गई है. ये मुद्दा...
04:19 PM Feb 26, 2025 IST | Rohit Agrawal
Three Language Formula: दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव भले ही 2026 में होने वाले हों, लेकिन उससे पहले एक मुद्दा इतना गरमा गया है कि केंद्र और राज्य की DMK सरकार आमने-सामने आ गई है. ये मुद्दा...

Three Language Formula: दक्षिण भारत के राज्य तमिलनाडु में विधानसभा चुनाव भले ही 2026 में होने वाले हों, लेकिन उससे पहले एक मुद्दा इतना गरमा गया है कि केंद्र और राज्य की DMK सरकार आमने-सामने आ गई है. ये मुद्दा है हिंदी भाषा...जिसे केंद्र सरकार दक्षिण में हिंदी भाषी राज्यों के लोगों की सहूलियत के तौर पर दर्शा रही है, तो वहीं राज्य के मुख्यमंत्री एम.के स्टालिन इसे दक्षिण के लोगों पर जबरदस्ती थोपना बता रहे हैं.

भाषा युद्ध के लिए तैयार है राज्य

यही नहीं, बात इतनी आगे बढ़ गई है कि सीएम एम.के. स्टालिन ने केंद्र सरकार से दो टूक कह दिया है कि राज्य ‘एक और भाषा युद्ध’ के लिए तैयार है. उन्होंने कहा कि, “केंद्र सरकार कहती है कि अगर तमिलनाडु नई शिक्षा नीति लागू करता है तो केंद्र 2000 करोड़ रुपए देगा.”  स्टालिन ने कहा कि, “2000 करोड़ नहीं अगर 10,000 करोड़ रुपए भी दिए जाएं तमिलनाडु फिर भी नई शिक्षा नीति लागू नहीं करेगा.”

शिक्षा मंत्री के बयान से पकड़ा तूल

बता दें कि, केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा था कि, तमिलनाडु को समग्र शिक्षा मिशन के लिए करीब 2400 करोड़ रुपए मिलने हैं. यह राशि तमिलनाडु को तब तक नहीं दी जाएगी, जब तक वह नई शिक्षा नीति को पूरी तरह अपना नहीं लेता है.

अभिनेता कमल हासन ने भी लगाया आरोप

हिंदी को लेकर जारी इस लड़ाई में मुख्यमंत्री एम.के स्टालिन के बाद अभिनेता कमल हासन भी कूद पड़े हैं. उन्होंने ने तमिलनाडु पर हिंदी थोपने की कोशिश करने का आरोप लगाया है. हालांकि उन्होंने खुद को बहुभाषी होने का पक्षधर बताया है, लेकिन राज्य में हिंदी को अनिवार्य करना स्वीकार्य नहीं करने की बात भी कही है.

उत्तर भारतीय यात्री होते हैं प्रभावित

इस मामले में कुछ बीजेपी नेताओं का कहना है कि रेलवे स्टेशनों पर हिंदी नामों पर कालिख पोतने से राज्य में आने वाले उत्तर भारतीय यात्री प्रभावित होंगे.

DMK का पीएम मोदी से सवाल

वहीं, DMK का कहना है कि, "पीएम मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान से यह सवाल पूछना है कि क्या उत्तर प्रदेश में इस तरह के बोर्ड पर तमिल और अन्य दक्षिण भारतीय भाषाएं (Three Language Formula) लिखी होती हैं, जिससे कि काशी संगम और प्रयागराज में कुंभ मेले में जाने वाले क्षेत्र के यात्रियों को लाभ मिल सके?’’

केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने पत्र भी लिखा

इसे लेकर केंद्रीय शिक्षा मंत्री ने तमिलनाडु के सीएम को एक पत्र भी लिखा है. जिसमें लिखा है कि, "किसी भाषा को थोपने का कोई सवाल नहीं है. हालांकि, विदेशी भाषाओं पर जरूरत से ज्यादा निर्भरता अपनी भाषा को सीमित करती है." प्रधान ने आगे लिखा, "नेशनल एजुकेशन पॉलिसी इसको ठीक करने का प्रयास कर रही है. यह नीति भाषाई आजादी को कायम रखती है. इसके साथ ही यह नीति सुनिश्चित करती है कि छात्र-छात्राएं अपनी पसंद की भाषा सीख सकें."

कस्तूरीरंगन कमेटी भी कर चुकी है सिफारिश

इस मामले पर कस्तूरीरंगन कमेटी पहले ही सिफारिश कर चुकी है कि, तमिलनाडु समेत सभी गैर-हिंदी भाषी (Three Language Formula) राज्यों के सेकेंडरी स्कूलों में एक क्षेत्रीय भाषा और अंग्रेजी के अलावा हिंदी पढ़ाई जानी चाहिए.

हिंदी विरोध का इतिहास पुराना है

वैसे तो तमिलनाडु में हिंदी विरोध का इतिहास काफी पुराना रहा है. बात उस समय की है जब स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान साल 1918 में महात्मा गांधी ने दक्षिण भारत में हिंदी प्रचार सभा की स्थापना की थी. क्योंकि वो हिंदी को भारतीयों को एकजुट करने वाली भाषा मानते थे. उसी समय तमिलनाडु में हिंदी का विरोध शुरू हो गया था. यही वजह है कि ब्रिटिश औपनिवेशिक काल में तमिलनाडु को मद्रास प्रेसिडेंसी कहा जाता था.

तीन साल तक चला था आंदोलन

वहीं, साल 1937 में सी. राजगोपालाचारी की सरकार ने स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य किया तो तमिलनाडु में इसके खिलाफ लगभग तीन साल तक आंदोलन चला. हालांकि, फैसला वापस लेने पर आंदोलन तो खत्म हो गया, लेकिन इसने राज्य में हिंदी विरोध के जो बीज बोए थे, वो आए दिन अंकुरित होने लगते हैं. यही वजह है कि क्षेत्रीय दल अपने सियासी फायदे के लिए इन्हें खाद-पानी मुहैया कराते रहते हैं.

यह भी पढ़ें: भारत में हाइपरलूप का पहला टेस्ट ट्रैक हुआ तैयार, अब 30 मिनट में पहुंचे दिल्ली से जयपुर

साल 1967 से तमिलनाडु के स्कूलों में दो-भाषा फॉर्मूले (तमिल और अंग्रेजी) का पालन किया जा रहा है. वहीं अब त्रिभाषा फॉर्मूले (Three Language Formula) के तहत हिंदी वहां क्षेत्रीय पार्टियों के लिए आंख की किरकिरी बनी हुई है. शिक्षा प्रणाली को आधुनिक बनाने की इस नीति के मकसद के बावजूद ये सियासी दल पुराना राग नहीं छोडऩा चाहते.

यह भी देखें: Maha Shivratri 2025: Sambhal में 46 साल बाद महादेव के जयकारों से गूंजा कार्तिकेश्वर मंदिर |

DMK की मौजूदा सरकार पर केंद्र की वो चेतावनी भी बेअसर रही जिसमें ये कहा गया था कि जब तक तमिलनाडु नई शिक्षा नीति को पूरी तरह लागू नहीं करेगा उसे समग्र शिक्षा निधि की राशि जारी नहीं की जाएगी. ऐसे में तमिलनाडु की स्टालिन सरकार हिंदी के लिए दरवाजे खोलती है तो उसे ये डर सता रहा है कि अगर हिंदी की एंट्री हो गई तो सियासत का रंग-रोगन बदल जाएगा.

 

Tags :
Dharmendra PradhanMK StalinTamilNaduThree Language Formula

ट्रेंडिंग खबरें

Next Article