भारत-रूस के इस प्लान से होगी दुश्मन देशों की नींद हराम, पढ़ें पूरी न्यूज
New Delhi: नई दिल्ली। भारत और रूस मिलकर ब्रह्मोस मिसाइल का नया और बेहतर वर्जन बनाने पर बात कर रहे हैं। यह बातचीत इसलिए हो रही है क्योंकि ब्रह्मोस मिसाइल ने ऑपरेशन सिंदूर में अच्छा काम किया था। साथ ही, इसने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में आतंकी ठिकानों को भी निशाना बनाया था। इकोनॉमिक टाइम्स ने रविवार को यह खबर दी। रूस इस प्रोजेक्ट में भारत को पूरी मदद कर रहा है। नई दिल्ली और मॉस्को के बीच शुरुआती बातचीत हो चुकी है।
उत्तर प्रदेश में 300 करोड़ रुपये की लागत से बना ब्रह्मोस का नया कारखाना इस मिसाइल के नए वर्जन को बड़ी संख्या में बनाएगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 11 मई को लखनऊ में ब्रह्मोस एयरोस्पेस यूनिट का उद्घाटन किया था। 80 हेक्टेयर में फैला यह कारखाना उत्तर प्रदेश डिफेंस इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के तहत बना है। इसमें एक एंकर यूनिट PTC और सात सहायक सुविधाएं हैं। इसका टारगेट भारत की मिसाइल बनाने की क्षमता को बढ़ाना है।
नई योजना पर कार्य
ब्रह्मोस मिसाइल भारत और रूस का संयुक्त प्रोजेक्ट है। 300 करोड़ का नया कारखाना भारत को रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' जैसी योजनाओं को आगे बढ़ाने में मदद करेगा। ब्रह्मोस के उत्पादन बढ़ने में कई आर्थिक पहलू हैं। जैसे-जैसे भारत में ब्रह्मोस का उत्पादन बढ़ता है, उत्पादन की प्रति इकाई लागत कम होने की संभावना है।
खासकर नए और अधिक स्वदेशीकृत उत्पादन इकाइयों के साथ इन्हें बनाना कम खर्चीला होगा। यह 'मेक इन इंडिया' पहल के तहत स्वदेशीकरण को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता कम करने से संभव होगा। उदाहरण के लिए पहले कुछ महत्वपूर्ण कम्पोनेंट रूस से आयात किए जाते थे। लेकिन, अब भारत में ही बनने से लागत कम होगी।
रोजगार के अवसर बढेंगे
ब्रह्मोस के उत्पादन के लिए नए कारखाने स्थापित होने से स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर पैदा होंगे। यह अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक है। भारत अब ब्रह्मोस मिसाइलों का निर्यात भी कर रहा है। उत्पादन बढ़ने से भारत अधिक मिसाइलें निर्यात कर सकेगा। इससे देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। वह एक प्रमुख रक्षा निर्यातक के रूप में उभरेगा।
ब्रह्मोस के उत्पादन से जुड़े सहायक उद्योगों का भी विकास होता है, जैसे कि एयरोस्पेस-ग्रेड सामग्री और अन्य आवश्यक घटकों के निर्माताओं का इससे फायदा होगा। इससे समग्र औद्योगिक विकास को रफ्तार मिलेगी। वर्तमान में एक ब्रह्मोस मिसाइल की अनुमानित लागत लगभग 34 करोड़ रुपये है। बड़े पैमाने पर उत्पादन और स्वदेशीकरण से भविष्य में इस लागत को और कम करने में मदद मिल सकती है।
पाकिस्तान और चीन के पास नहीं है जवाब
10 मई को भारत ने SU-30 MKI लड़ाकू विमानों से ब्रह्मोस मिसाइलें दागकर पाकिस्तान के रावलपिंडी के पास स्थित नूर खान एयरबेस पर हमला किया था। यह एयरबेस पाकिस्तान के उत्तरी हवाई अभियानों के लिए महत्वपूर्ण कमांड-एंड-कंट्रोल सेंटर है। यह पाकिस्तान के स्ट्रैटेजिक प्लान्स डिवीजन के करीब है, जो उसके परमाणु हथियारों की निगरानी करता है। खबर है कि ब्रह्मोस मिसाइलों का इस्तेमाल बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय को निशाना बनाने के लिए भी किया गया था।
अधिकारियों के अनुसार, इस मिसाइल की रेंज 290-400 किलोमीटर है। इसकी टॉप स्पीड Mach 2.8 है। इसे पाकिस्तान या चीन के किसी भी ज्ञात एयर डिफेंस सिस्टम से रोका नहीं जा सकता है। भारत के पास इस मिसाइल के जमीन से जमीन, जहाज से जमीन और हवा से लॉन्च किए जाने वाले वर्जन हैं, जो अभी इस्तेमाल में हैं। Mach 2.8 का मतलब है कि यह मिसाइल आवाज की रफ्तार से लगभग तीन गुना तेज उड़ सकती है।
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