सोवियत संघ का टूटना: कैसे और क्यों बिखर गया दुनिया का सुपरपावर?
सोवियत संघ, यानी USSR, एक ज़माने में दुनिया का सबसे बड़ा देश था| 1922 से 1991 तक ये यूरेशिया में छाया रहा| इसे 15 गणतंत्रों का संघ बनाया गया था, लेकिन असल में सारी पावर मॉस्को की केंद्रीय सरकार के हाथ में थी| सबसे बड़ा गणतंत्र था रूस, और बाकी 14 भी इसके साथ जुड़े थे| 1991 में ये महाशक्ति टूटकर 15 अलग-अलग देशों में बंट गई| आइए, बताते हैं कि आखिर ये सब हुआ कैसे और क्यों|
क्यों गया सोवियत संघ टूट?
सोवियत संघ उस दौर में अमेरिका को टक्कर देने वाला इकलौता देश था| लेकिन इसके पतन की कहानी कई वजहों से बनी| सबसे पहले, इसकी अर्थव्यवस्था डगमगा रही थी| योजनाबद्ध इकोनॉमी और हद से ज़्यादा सैन्य खर्च ने देश को खोखला कर दिया था| ऊपर से राजनीतिक अस्थिरता ने हालात और बिगाड़े| कम्युनिस्ट पार्टी का दबदबा कम हो रहा था, और भ्रष्टाचार चरम पर था| साथ ही, बाल्टिक देशों (एस्तोनिया, लातविया, लिथुआनिया) और बाकी गणतंत्रों में आज़ादी की भावना जोर पकड़ रही थी|
राष्ट्रवाद का उफान और तख्तापलट की नाकामी
1980 के दशक के आखिर में सोवियत गणतंत्रों में आज़ादी की लहर दौड़ने लगी| लोग अपनी अलग पहचान और स्वतंत्रता चाहते थे| 1991 में हालात तब और गंभीर हो गए, जब कट्टर कम्युनिस्टों ने राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव के खिलाफ तख्तापलट की कोशिश की| ये कोशिश नाकाम रही, लेकिन इसने सोवियत संघ के ताबूत में आखिरी कील ठोक दी| रूस, यूक्रेन और बेलारूस ने सबसे पहले अलग होने का ऐलान किया, और फिर बाकी गणतंत्र भी इस राह पर चल पड़े|
बेलवेजा समझौता: आखिरी चोट
8 दिसंबर 1991 को रूस, यूक्रेन और बेलारूस के नेताओं ने बेलवेजा समझौते पर दस्तखत किए| इसमें साफ कहा गया कि सोवियत संघ खत्म, और अब स्वतंत्र देशों का राष्ट्रमंडल (CIS) बनेगा| इस समझौते ने USSR को औपचारिक रूप से इतिहास की किताबों में दफन कर दिया| आर्थिक बदहाली, सुधारों की नाकामी, बढ़ता राष्ट्रवाद, राजनीतिक भ्रष्टाचार और पश्चिमी देशों का दबाव—ये सारी चीजें मिलकर सोवियत संघ को ले डूबीं|
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