पुण्य तिथि: युगों तक याद किए जाएंगे भारतीय संस्कृति, कला, पुरातत्वविद और शब्दों के महान जादूगर स्व. रविन्द्र डी. पंड्या
Ravindra D Pandya Death Anniversary: भारतीय संस्कृति, कला और पुरातत्व के महान संरक्षक, स्वर्गीय डॉ. रविन्द्र डी. पण्ड्या की आज (शुक्रवार, 23 मई 2025 को) तृतीय पुण्यतिथि है। डॉ. पण्ड्या का जीवन भारतीय ज्ञान परंपरा, कला और अध्यात्म के संरक्षण और संवर्धन के लिए समर्पित रहा। उन्होंने न केवल अपने विचारों (Ravindra D Pandya Death Anniversary)और लेखनी से समाज को एक नई और बेहतर दिशा दी, बल्कि एक संवेदनशील शिक्षक और गहन अध्येता के रूप में भी लोगों के हृदयों में स्थायी स्थान बनाया।
शोध और लेखन की विलक्षण यात्रा
2 फरवरी 1946 को राजस्थान के डुंगरपुर के खड़गदा में जन्मे स्व. श्री रविन्द्र डी. पंड्या सहित्य, कला एवं संस्कृति के एक ऐसे पुरोधा थे, साहित्याकाश और समाज में कभी-कभी देखने को मिलते हैं। डॉ. पण्ड्या ने अपने जीवनकाल में 12 से अधिक पुस्तकों का लेखन और संपादन किया। जिनमें से भारतीय इतिहास, पुरातत्व और संस्कृति से जुड़े विविध विषयों को विश्लेषणात्मक दृष्टि से प्रस्तुत किया गया।
उनके ग्रंथों में शोध की गहराई, तथ्यात्मक सटीकता के अलावा ऐतिहासिक संवेदना का अद्भुत समन्वय देखने को मिलता है। उनके द्वारा प्रस्तुत ऐतिहासिक शोध आज भी विश्वविद्यालयों और शोध संस्थानों में संदर्भ सामग्री के रूप में प्रयुक्त हो रहे हैं। यही वजह है कि उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनका योगदान न केवल स्थानीय या राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि वैश्विक स्तर पर भी महत्वपूर्ण एवं सराहनीय था।
जीवन में अध्यात्म और सादगी का समावेश
डॉ. रविंद्र डी. पण्ड्या की पहचान केवल एक विद्वान लेखक के रूप में नहीं थी, बल्कि वे एक आध्यात्मिक विचारक और अत्यंत विनम्र एवं सरल स्वभाव के व्यक्ति भी थे। उनकी भाषा में सहजता और उनके विचारों में गंभीरता थी। वे मानते थे कि शिक्षा केवल ज्ञान का संचय नहीं, बल्कि आत्मा का परिष्कार भी है। उनकी शिक्षण शैली काफी प्रेरणादायक थी। इसके साथ ही उन्होंने हमेशा विद्यार्थियों को सोचने और अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित किया।
सांस्कृतिक विरासत का संवाहक परिवार
स्व. डॉ. रविन्द्र डी. पण्ड्या की विरासत को उनके परिवार ने बखूबी आगे बढ़ाया। उनके पुत्र, भूपेश कुमार, ने भी अपने पिता की सांस्कृतिक धरोहर को आगे बढ़ाया। उन्होंने रंगमंच और सिनेमा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया और अपनी एक अलग पहचान बनाई। वे संवेदनशील अभिनेता और नाटककार थे, जिनका काम जनमानस को गहराई से छूता था। परंतु यह अत्यंत दुखद है कि भूपेश कुमार पण्ड्या का देहांत हो गया था, उसके बाद डॉ. रविन्द्र डी. पण्ड्या पुत्र शोक को सह नहीं पाए जिससे उनका भी देहांत हो गया। यह दोहरी क्षति साहित्य, रंगमंच और समाज के लिए अत्यंत पीड़ादायक रही।
एक प्रेरणादायी विरासत
डॉ. रविन्द्र डी. पण्ड्या का जीवन और कार्य आज भी समाज के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। वे ऐसे युगद्रष्टा थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति की जड़ों को आधुनिक चेतना से जोड़ा। उन्होंने हड़प्पा सभ्यता संस्कृति एवं मोहनजोदड़ो सभ्यता पर भी काफी शोध किया। कहते हैं कि अगर उस समय उनको सही अवसर मिला होता तो वे भारत सरकार के बहुत बड़े सलाहकार होते।
उन्होंने उस समय ही देश के साहित्य और कला के क्षेत्र में बहुत बड़ी क्रांति छेड़ दी होती। उनके विचार, लेखन और शिक्षण आज भी आने वाली पीढ़ियों को दिशा देते हैं। उनकी स्मृति में आयोजित होने वाले व्याख्यान, संगोष्ठियां और शोधकार्य उनकी स्थायी विरासत को आज भी जीवित रखे हुए हैं। उनके द्वारा छोड़ी गई यह अमूल्य धरोहर सदैव भारतीय संस्कृति को आलोकित करती रहेगी।
"रेडियो से रॉक आर्ट तक योगदान..
स्व.डॉ. रविन्द्र डी. पण्ड्या का जीवन भारतीय संस्कृति, कला और पुरातत्व के संरक्षण की मिसाल है। उन्होंने आकाशवाणी व अंतरराष्ट्रीय मंचों पर 26 से अधिक वार्ताएं दीं और 60 से अधिक शोध-पत्रों के माध्यम से सांस्कृतिक चेतना को व्यापक स्वरूप दिया। उनकी लेखनी 'धर्मयुग' से लेकर 'जनसत्ता' तक पहुंची, और उनकी खोजों ने प्रागैतिहासिक शैलचित्रों को समाज के सम्मुख लाया। वे न केवल एक लेखक थे, बल्कि धरोहरों के जीवंत संवाहक भी थे।
"डॉ. रविन्द्र पण्ड्या का जीवन स्वयं एक ज्ञानदीप था"
वहीं, कला, सहित्य और समाज में स्व. डॉ. रविंद्र पंड्या की भूमिका को लेकर संपादक एवं हिंद फर्स्ट, गुजरात फर्स्ट चैनल प्रमुख विवेक कुमार भट्ट कहते हैं, "गुरुजी डॉ. रविन्द्र पण्ड्या जी पद्म श्री और पद्म विभूषण से भी ज्यादा हकदार थे और रहेंगे। उन्होंने हमेशा कला और साहित्य की तन, मन और धन से सेवा की है। वे बहुत बड़े पर्यावरण के रक्षक थे "
शब्दों के संत थे डॉ. रविंद्र पंड्या
संपादक एवं हिंद फर्स्ट, गुजरात फर्स्ट चैनल प्रमुख विवेक कुमार भट्ट कहते हैं "वे न केवल एक विद्वान लेखक थे, बल्कि वे भारतीय संस्कृति के जीवंत संवाहक भी थे। उनकी लेखनी ने अतीत को वर्तमान से जोड़ते हुए नई पीढ़ियों को अपनी जड़ों से जोड़े रखने का मार्ग दिखाया। वे शब्दों के संत थे, जिनकी मौन उपस्थिति भी ज्ञान का संचार करती थी। डॉ. पण्ड्या जी का जीवन एक ऐसा दीप था, जो न केवल अपने समय को प्रकाशित कर गया, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी रास्ता रोशन करता रहेगा। वे हमेशा से वंदनीय थे, हैं और रहेंगे। उनके चरणों मे कोटि-कोटि प्रणाम। उनके आदर्शों पर चलना एक गौरव की बात है। वे मेरे आदर्श थे, हैं और हमेशा रहेंगे। उनका स्थान ईश्वर तुल्य है।"