पैसे के लिए देशद्रोह! भारत के अंदर पाक के जासूसी एजेंडों का ऐसे हुआ खात्मा, एजेंसियों ने क्यों कीं धड़ाधड़ गिरफ्तारियां?
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारतीय खुफिया एजेंसियों ने एक ऐसा ऑपरेशन अंजाम दिया है जिसने पाकिस्तानी आईएसआई के सपनों को चकनाचूर कर दिया। देशभर में फैले एक बड़े जासूसी नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ है, जो पैसे के लालच में भारत के खिलाफ जासूसी कर रहा था। एन्क्रिप्टेड ऐप्स, फर्जी सिम कार्ड और डार्क वेब की मदद से चल रहे इस नेटवर्क को ध्वस्त करते हुए एजेंसियों ने पंजाब से लेकर असम तक कई लोगों को गिरफ्तार किया है। सवाल यह है कि आखिर कौन से ऐसे पैसे थे जिनके लिए ये लोग देश के साथ गद्दारी करने को तैयार हो गए?
ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाक एजेंटों की हलचल तेज
खुफिया एजेंसियों को जब पता चला कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान से कुछ नंबर अचानक सक्रिय हो गए हैं, तो उनकी नींद उड़ गई। हैरानी की बात यह थी कि ये सभी नंबर भारतीय सिम कार्ड के थे, लेकिन इनका इस्तेमाल पाकिस्तानी एजेंट कर रहे थे।
ये नंबर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, यूपी, राजस्थान और असम में एक्टिव थे। इन पर कॉल्स और मैसेज के जरिए संवेदनशील जानकारियां ली-दी जा रही थीं। सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि इन एजेंटों को पेमेंट गेटवे के जरिए पैसे भेजे जा रहे थे, जिसके बाद इस पूरे नेटवर्क का खुलासा हुआ।
हरियाणा से लेकर असम तक गिरफ्तार हुए जाजूस
गिरफ्तार किए गए आरोपियों की सूची देखें तो यह साफ हो जाता है कि पाकिस्तानी आईएसआई ने किस तरह से भारत के अंदर अपना जाल बिछाया हुआ था। हरियाणा के हिसार से ज्योति मल्होत्रा, कैथल से देवेंद्र सिंह ढिल्लों और पानीपत से नोमान इलाही जैसे नाम सामने आए हैं। पंजाब के गुरदासपुर से सुखप्रीत सिंह और मालीर कोटला से गजाला को भी गिरफ्तार किया गया। यूपी के रामपुर और वाराणसी से भी कई लोग पकड़े गए, जबकि असम से सात लोगों को इस जासूसी नेटवर्क से जोड़कर हिरासत में लिया गया। इनमें से कई आरोपी लंबे समय से पाकिस्तानी एजेंटों के संपर्क में थे और संवेदनशील जानकारियां लीक कर रहे थे।
फर्जी सिम और डार्क वेब का क्या है खेल?
इस पूरे मामले में सबसे डरावना पहलू यह है कि पाकिस्तानी एजेंटों ने जासूसी के लिए तकनीक का भरपूर इस्तेमाल किया। उन्होंने फर्जी सिम कार्ड के जरिए भारतीय नंबरों का इस्तेमाल किया, ताकि उन पर नजर न रखी जा सके। इसके अलावा, सिग्नल और टेलीग्राम जैसे एन्क्रिप्टेड ऐप्स का इस्तेमाल कर संदेशों का आदान-प्रदान किया जाता था। पैसे भेजने के लिए क्रिप्टो करेंसी और डार्क वेब का सहारा लिया गया, ताकि लेन-देन का पता न चल सके। हालांकि, भारतीय खुफिया एजेंसियों ने अपनी तकनीकी क्षमता का परिचय देते हुए इस पूरे नेटवर्क को उजागर कर दिया।
क्या जासूस देशद्रोहियों को मिलेगी सख्त सजा?
अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या इन गिरफ्तार किए गए आरोपियों को सख्त सजा मिल पाएगी? पिछले कई मामलों में देखा गया है कि जासूसी के आरोपियों को कानूनी प्रक्रिया के चलते बचने का मौका मिल जाता है। क्या इस बार सरकार और न्यायपालिका ऐसे लोगों के लिए कोई कड़ी मिसाल कायम करेगी? दूसरी ओर, यह मामला एक बार फिर देश की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है। आखिर कैसे पाकिस्तानी एजेंट इतनी आसानी से भारत के अंदर अपना नेटवर्क बना लेते हैं? क्या हमारी सुरक्षा एजेंसियों को और अधिक सतर्क होने की जरूरत है? ये वे सवाल हैं जिनका जवाब अब तलाशा जाना बाकी है।
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