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ओखला में बुलडोजर कार्रवाई पर हाईकोर्ट ने लगाई रोक, क्या यूपी सरकार ने असंवैधानिक तरीके से लिया एक्शन?

दिल्ली के ओखला में 115 घरों पर बुलडोज़र की चेतावनी पर हाईकोर्ट की रोक। क्या यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या है या सरकारी मनमानी?
05:53 PM May 30, 2025 IST | Rohit Agrawal
दिल्ली के ओखला में 115 घरों पर बुलडोज़र की चेतावनी पर हाईकोर्ट की रोक। क्या यह सुप्रीम कोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या है या सरकारी मनमानी?

दिल्ली के ओखला इलाके में यूपी सिंचाई विभाग द्वारा 115 घरों को गिराने की धमकी ने जबरदस्त राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है। हाईकोर्ट ने शुक्रवार को इस कार्रवाई पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाते हुए सवाल किया कि क्या सरकारी विभाग नागरिकों के मौलिक अधिकारों का इस तरह हनन कर सकता है? जबकि यूपी सरकार का दावा है कि यह जमीन अतिक्रमण मुक्त कराने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश है, वहीं प्रभावित परिवारों का कहना है कि वे दशकों से यहां रह रहे हैं और उन्हें कभी नोटिस नहीं दिया गया।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश का गलत इस्तेमाल?

यूपी सिंचाई विभाग ने 8 मई को सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देकर ओखला में अतिक्रमण हटाने का नोटिस जारी किया था। लेकिन हाईकोर्ट में दायर याचिका में दावा किया गया है कि विभाग ने शीर्ष अदालत के आदेश को गलत तरीके से पेश किया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में सिंचाई विभाग से जवाब तलब किया है कि क्या वास्तव में यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हिस्सा थी या फिर यह सरकार की मनमानी है? विशेषज्ञों का मानना है कि यदि विभाग सुप्रीम कोर्ट के आदेश का गलत व्याख्या कर रहा है तो यह गंभीर विधिक उल्लंघन होगा।

क्या दशकों पुरानी बस्तियों को अवैध कहा जा सकता है?

ओखला के प्रभावित निवासियों का दावा है कि उनके परिवार यहां 40-50 साल से रह रहे हैं और उन्होंने कभी किसी से जमीन नहीं छीनी। उनका कहना है कि अगर यह जमीन वास्तव में सिंचाई विभाग की है तो इतने लंबे समय तक विभाग ने चुप्पी क्यों साधी? क्या सरकारी विभागों की लापरवाही की कीमत आम नागरिकों को चुकानी पड़ेगी? हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं कि जब निवासी दशकों से यहां रह रहे हैं तो उन्हें बिना उचित मुआवजे के बेघर क्यों किया जा रहा है?

हाईकोर्ट का स्टे आदेश: क्या है कानूनी पहलू?

दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया है कि जब तक मामले की पूरी सुनवाई नहीं हो जाती, तब तक किसी भी संपत्ति को नहीं गिराया जाएगा। कानून विशेषज्ञों का कहना है कि यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और आजीविका के अधिकार की रक्षा करता है। अदालत ने यूपी सिंचाई विभाग से 4 हफ्ते के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है। साथ ही, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि विभाग के पास कोई ठोस सबूत है तो वह पेश करे, अन्यथा यह कार्रवाई मनमानी मानी जाएगी।

क्या दिल्ली सरकार भी होगी इसमें शामिल?

इस मामले ने राजनीतिक गलियारों में भी हलचल मचा दी है। जहां एक ओर यूपी सरकार का कहना है कि वह सिर्फ कानून का पालन कर रही है, वहीं दिल्ली सरकार के मंत्रियों ने इस कार्रवाई को "असंवैधानिक" बताया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला अब दिल्ली और यूपी सरकार के बीच नए विवाद का कारण बन सकता है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या दिल्ली सरकार प्रभावित नागरिकों के पक्ष में कोई कानूनी लड़ाई लड़ेगी या फिर वह केवल मूकदर्शक बनी रहेगी?

क्या नागरिक अधिकारों और सरकारी नीतियों के बीच संतुलन संभव है?

यह मामला सिर्फ ओखला के 115 घरों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश में सरकारी जमीनों पर बसी बस्तियों के भविष्य से जुड़ा हुआ है। हाईकोर्ट के इस फैसले ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या सरकारें बिना वैकल्पिक व्यवस्था किए लोगों को बेघर कर सकती हैं? क्या अतिक्रमण हटाने के नाम पर नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन किया जा सकता है? जब तक हाईकोर्ट इस मामले में अंतिम फैसला नहीं सुनाती, तब तक ओखला के निवासियों को राहत की सांस तो मिल गई है, लेकिन उनका भविष्य अभी भी अनिश्चितता के घेरे में है। यह मामला अब एक टेस्ट केस बन गया है जो भविष्य में इस तरह के विवादों के निपटारे का रास्ता तय करेगा।

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