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PM मोदी के कार्यकाल में कैसे बदल गई ब्यूरोक्रेसी? जानिए PMO की पूरी इनसाइड स्टोरी

नृपेंद्र मिश्रा के खुलासों से जानिए कैसे PM मोदी ने PMO के ज़रिए नौकरशाही में पारदर्शिता, जवाबदेही और तकनीक से नया जोश भरा।
12:33 PM Apr 22, 2025 IST | Rohit Agrawal

Modi's bureaucracy model: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में ब्यूरोक्रेसी को वाकई नया जोश मिला है। उनके पूर्व प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा ने 21 अप्रैल 2025 को सिविल सेवा दिवस पर PMO की अनसुनी कहानी बयां की थी। मोदी ने नौकरशाहों को बड़ा सोचने, ईमानदारी अपनाने और तकनीक से भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने का रास्ता दिखाया। विभागों में तालमेल, जवाबदेही और राष्ट्रहित उनके नेतृत्व का मूलमंत्र है। आइए, इस बड़ी खबर को सरल अंदाज में समझें!

क्या है मोदी का ब्यूरोक्रेसी मॉडल?

1967 बैच के IAS नृपेंद्र मिश्रा ने खुलासा किया कि मोदी ने ब्यूरोक्रेसी को “प्रक्रिया” से “परिणाम” की ओर मोड़ा। उन्होंने विभागीय दीवारें तोड़कर तालमेल बढ़ाया, जैसे जब एक मंत्रालय की प्रिंटिंग प्रेस बंद करने की सलाह को खारिज कर सभी मंत्रालयों के लिए एक नीति बनवाई। बीमा क्षेत्र में जोखिम कवर को एकीकृत कर लाभार्थियों तक पहुंच आसान की। मोदी की ईमानदारी उनकी ताकत है, जिसे आलोचक भी मानते हैं। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) ने 2.5 लाख करोड़ रुपये सीधे खातों में पहुंचाकर भ्रष्टाचार की पुरानी शिकायत खत्म की। गुजरात में CM रहते उन्होंने बिजली सब्सिडी की जगह विश्वसनीय आपूर्ति दी, और PM बनकर JAM ट्रिनिटी से मिडिलमेन हटाए। PMO प्रचार से दूर नीति निर्माण का पावरहाउस है।

ब्यूरोक्रेसी में पहले के मुकाबले क्या सुधार हुए?

बता दें कि 2014 में सत्ता संभालते ही मोदी ने ब्यूरोक्रेसी को काफ़ी झकझोरा। सलाहकारों ने इसे “स्थायी विपक्ष” कहा, मगर मोदी ने चुनौती स्वीकारी। गैर-प्रदर्शन करने वाले IAS अधिकारियों को जबरन रिटायर किया, 2019 तक 50 ग्रुप A अधिकारी बाहर हुए। 2024 में 20 वरिष्ठ IAS तबादलों ने सुस्ती पर चोट की। प्रशिक्षण में AI, बिग डेटा और क्लाइमेट चेंज जैसे विषय जोड़े गए, केवड़िया में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के पास ट्रेनिंग सेंटर इसका गवाह है।

मोदी जॉइंट सेक्रेटरी जैसे मिड-लेवल अधिकारियों से सीधे मिलते हैं, जो मनोबल बढ़ाता है, मगर मंत्रियों की भूमिका पर सवाल उठाता है। उनकी “प्रगति” बैठकों ने 60 अरब डॉलर के रुके प्रोजेक्ट्स को रफ्तार दी, लेकिन आलोचक कहते हैं, यह केंद्रीकरण दीर्घकाल में जोखिम भरा है।

देश के लिए PMO का रोल कितना अहम?

मोदी का PMO उनके “प्रेसिडेंशियल” स्टाइल का दिल है, जो नौकरशाहों को सीधे जवाबदेह बनाता है। इसमें IFS, IAS जैसे टॉप अधिकारी शामिल हैं; 2022 में G20 तैयारियों के लिए सात IFS अधिकारी तैनात किए गए, और PMO के पूर्व OSD विनय मोहन क्वात्रा अब विदेश सचिव हैं। मंत्रियों के निजी स्टाफ पर पाबंदी और UPA कर्मचारियों की नियुक्ति पर रोक ने भ्रष्टाचार के रास्ते बंद किए। नृपेंद्र मिश्रा कहते हैं, PMO में सीखना कभी रुकता नहीं। मोदी की बिना भेदभाव वाली सोच नौकरशाहों को सशक्त करती है, जैसे कोविड में प्रवासियों को राहत और PDS का विस्तार दिखाता है। PMO फाइलें रिजेक्ट या सुझावों के साथ लौटा सकता है, जो मंत्रियों पर दबाव डालता है और “सबका साथ, सबका विकास” को जमीन पर उतारता है।

लेकिन अभी भी चुनौतियां कम नहीं...

मोदी का ब्यूरोक्रेसी मॉडल वाकई शानदार है, मगर कुछ खामियां अभी भी हैं। दरअसल 2021 में मोदी ने IAS की सर्वशक्तिमानता पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या बाबू सब कुछ करेंगे?” लेकिन PMO का बढ़ता दखल मंत्रियों को हाशिए पर धकेल सकता है। IAS, IFS, IPS जैसे सेवाएं अपनी “जागीर” बचाने में लगी रहती हैं, और तकनीकी विशेषज्ञों को जगह नहीं मिलती। नौकरशाह रात 9 बजे तक काम करते हैं, जिससे उनका निजी जीवन प्रभावित होता है। फिर भी, मोदी ने “डर और तात्कालिकता” का माहौल बनाया, जो सुस्ती को खत्म करता है और नौकरशाही को गति देता है।

क्यों अहम है मोदी का मॉडल?

मोदी ने ब्यूरोक्रेसी को “कागजी शेर” से “स्टील फ्रेम” में ढाला है। आयुष्मान भारत, जन धन, उज्ज्वला जैसी योजनाओं ने 25 करोड़ लोगों को गरीबी से निकाला। PMO की निगरानी और तकनीक ने भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई। मिश्रा कहते हैं, मोदी का नेतृत्व नौकरशाही को भारत को “विश्व गुरु” बनाने का वास्तुकार बनाता है। क्या यह मॉडल 2029 तक भारत को विकसित राष्ट्र का तमगा दिलाएगा, या केंद्रीकरण की कीमत चुकानी पड़ेगी? यह वक्त बताएगा, मगर PMO की यह रफ्तार दुनिया को चौंका रही है!

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