'अपनी सुरक्षा नहीं कर पाया, जनता की क्या करता?' मनीष कश्यप ने BJP छोड़ने का फैसला क्यों लिया?
यूट्यूबर और सामाजिक कार्यकर्ता मनीष कश्यप ने भाजपा से इस्तीफा देकर बिहार की राजनीति में नया मोड़ पैदा कर दिया है। अस्पताल में हुई पिटाई और पार्टी नेतृत्व से मिले "संरक्षण के अभाव" को लेकर आहत कश्यप ने सीधे सवाल खड़ा किया है – "अगर पार्टी में रहकर मैं खुद को नहीं बचा पाया, तो जनता की रक्षा कैसे करूंगा?" उनके इस कदम ने न सिर्फ बिहार BJP की छवि को झटका दिया है, बल्कि आगामी विधानसभा चुनावों से पहले एक नए राजनीतिक समीकरण की संभावनाएं भी पैदा कर दी हैं।
क्यों उठ गया मनीष कश्यप का BJP से भरोसा?
19 मई को पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (PMCH) में हुई वह घटना मनीष कश्यप के लिए निर्णायक साबित हुई, जब एक महिला जूनियर डॉक्टर से विवाद के बाद उन्हें डॉक्टरों के एक समूह ने घेरकर पीटा और तीन घंटे तक बंधक बनाए रखा। इसके बाद BJP नेतृत्व से अपेक्षित समर्थन न मिलने पर कश्यप ने 8 जून को फेसबुक लाइव के जरिए इस्तीफे की घोषणा कर दी। उन्होंने कड़वाहट भरे शब्दों में कहा कि"मैंने पार्टी को सबकुछ समर्पित किया, लेकिन जरूरत के वक्त कोई साथ नहीं दिया।" उनका यह कदम स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय के प्रति भी असंतोष को उजागर करता है, जिन पर वे आरोप लगाते रहे हैं कि उन्होंने PMCH प्रशासन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की।
क्या अब अकेले दांव पर लगाएंगे मनीष?
2024 के लोकसभा चुनाव में टिकट की उम्मीद छोड़कर BJP में शामिल होने वाले मनीष कश्यप अब बिहार विधानसभा चुनावों में सक्रिय भूमिका निभाने का संकेत दे रहे हैं। फेसबुक लाइव में उन्होंने जनता से सीधा सवाल किया कि "मुझे किस पार्टी से या स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ना चाहिए?" यह बयान न सिर्फ उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को दर्शाता है, बल्कि BJP के लिए एक चेतावनी भी है कि वे अब किसी और मंच से पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि कश्यप का यह कदम बिहार में BJP के खिलाफ "असंतुष्ट आवाज" को बुलंद करने की रणनीति हो सकती है, खासकर उन युवा मतदाताओं के बीच जो सोशल मीडिया पर उनके समर्थक हैं।
कश्यप के बाद क्या बदलेगा बिहार का समीकरण?
मनीष कश्यप के इस्तीफे ने BJP के सामने दोहरी चुनौती खड़ी कर दी है। एक तरफ, यह घटना पार्टी के भीतर "सामान्य कार्यकर्ताओं की उपेक्षा" की नई बहस को जन्म दे सकती है, तो दूसरी ओर, यह संकेत भी है कि बिहार में BJP अब उन गैर-पारंपरिक नेताओं को नजरअंदाज नहीं कर सकती जिनकी सोशल मीडिया पर मजबूत पकड़ है। कश्यप के अगले कदम पर सभी की नजरें टिकी हैं कि क्या वे किसी क्षेत्रीय दल से जुड़ेंगे, स्वतंत्र उम्मीदवार बनेंगे या फिर अपना नया राजनीतिक मंच बनाएंगे? एक बात तय है: बिहार की सियासत में अब मनीष कश्यप को हल्के में लेना BJP के लिए भारी पड़ सकता है।
विधानसभा चुनावों से पहले बिहार BJP का लगा बड़ा झटका
मनीष कश्यप का BJP छोड़ना सिर्फ एक व्यक्ति का इस्तीफा नहीं, बल्कि उस आक्रोश का प्रतीक है जो पार्टी के निचले स्तर के कार्यकर्ताओं में पनप रहा है। जिस तरह से उन्होंने अपने इस्तीफे को सार्वजनिक मंच पर रखा, वह नए दौर की राजनीति का संकेत है, जहां सोशल मीडिया एक्टिविस्ट भी बड़े फैसले ले सकते हैं। अब सवाल यह है कि क्या BJP इस घटना से सबक लेकर अपनी आंतरिक व्यवस्था सुधारेगी या फिर मनीष कश्यप का यह कदम बिहार में एक नए राजनीतिक तूफान की शुरुआत साबित होगा? आने वाले दिनों में यह सवाल बिहार की सियासी गलियारों में गूंजता रहेगा।
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