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JNU में अब से 'कुलपति' नहीं 'कुलगुरु' होगा! क्या संस्कृत की ओर लौट रहा है भारतीय शिक्षा तंत्र?

JNU ने 'कुलपति' को बदलकर 'कुलगुरु' कर दिया है। यह कदम क्या केवल प्रतीकात्मक है या भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सांस्कृतिक बदलाव की शुरुआत?
10:25 AM Jun 03, 2025 IST | Rohit Agrawal
JNU ने 'कुलपति' को बदलकर 'कुलगुरु' कर दिया है। यह कदम क्या केवल प्रतीकात्मक है या भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सांस्कृतिक बदलाव की शुरुआत?

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) ने एक ऐतिहासिक फैसले में वाइस चांसलर के पदनाम को 'कुलपति' से बदलकर 'कुलगुरु' कर दिया है। यह बदलाव केवल एक शब्द का परिवर्तन नहीं, बल्कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था में जेंडर न्यूट्रैलिटी और संस्कृतनिष्ठ शब्दावली को बढ़ावा देने की एक बड़ी पहल है। JNU की कुलपति (अब कुलगुरु) शांतिश्री धुलीपुडी पंडित के इस प्रस्ताव ने एक बार फिर उस बहस को जन्म दे दिया है कि क्या भारतीय शिक्षण संस्थानों को पश्चिमी प्रभाव से मुक्त होकर अपनी मूल परंपराओं की ओर लौटना चाहिए?

'कुलपति' से 'कुलगुरु' होने के पीछे क्या है कारण?

JNU प्रशासन का मानना है कि 'कुलपति' शब्द में 'पति' होने के कारण यह पुरुषवाची लगता है, जबकि 'कुलगुरु' पूरी तरह जेंडर न्यूट्रल है। संस्कृत भाषा में 'गुरु' शब्द स्त्रीलिंग और पुल्लिंग दोनों के लिए प्रयुक्त होता है। इसके अलावा, यह शब्द भारत की प्राचीन गुरु-शिष्य परंपरा को भी सम्मान देता है, जहां ज्ञान का आदान-प्रदान लिंगभेद से परे था। विश्वविद्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि यह बदलाव आने वाले दिनों में सभी शैक्षणिक दस्तावेजों, डिग्रियों और आधिकारिक पत्राचार में लागू कर दिया जाएगा।

राजस्थान पहल ही उठा चुका है ऐसा कदम

JNU से पहले राजस्थान सरकार ने फरवरी 2024 में ही अपने सभी राज्य विश्वविद्यालयों में 'कुलपति' और 'प्रतिकुलपति' को 'कुलगुरु' व 'प्रतिकुलगुरु' में बदलने का कानून पास कर दिया था। राजस्थान के उच्च शिक्षा मंत्री ने इसकी पृष्ठभूमि में बताया था कि 'गुरु' शब्द भारतीय संस्कृति में ज्ञान के सर्वोच्च प्रतीक के रूप में पूज्यनीय है, जबकि 'पति' शब्द एक पितृसत्तात्मक ढांचे को दर्शाता है। राजस्थान के इस फैसले को JNU ने अब राष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ाया है, जिससे यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अन्य केंद्रीय विश्वविद्यालय भी इस दिशा में कदम उठा सकते हैं।

फैसले का कौन लोग कर रहे विरोध?

हालांकि, इस फैसले की कुछ शिक्षाविदों और छात्र संगठनों ने आलोचना भी की है। JNU के ही एक प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि"यह सिर्फ शब्दों का खेल है। असली मुद्दा शिक्षा की गुणवत्ता और संस्थानों में लैंगिक समानता सुनिश्चित करना होना चाहिए। कुछ छात्र नेताओं का तर्क है कि जब तक कैंपस में महिला सुरक्षा और समान वेतन जैसे मुद्दों पर ठोस कार्रवाई नहीं होती, तब तक केवल पदनाम बदलने से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा।

क्या अन्य विश्वविद्यालय भी अपनाएंगे 'कुलगुरु' शब्द?

JNU का यह निर्णय निश्चित रूप से भारतीय शिक्षा जगत में एक नई बहस छेड़ देगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या दिल्ली विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) या अन्य प्रतिष्ठित संस्थान भी इस मॉडल को अपनाते हैं। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह परिवर्तन भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने की दिशा में एक सकारात्मक कदम है, जबकि अन्य इसे केवल एक प्रतीकात्मक बदलाव मान रहे हैं। एक बात तो स्पष्ट है कि 'कुलगुरु' शब्द के साथ JNU ने भारतीय शिक्षा प्रणाली में सांस्कृतिक पुनरुत्थान की एक नई बहस को जन्म दे दिया है।

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