International News: 137 दिन और 284 हमले… बलूचिस्तान के बाद खैबर पख्तूनख्वा भी होगा पाकिस्तान से अलग!
International News: वैसे तो पाकिस्तान में हमले और धमाके कोई नई बात नहीं हैं. जिस देश को खुद आतंक का जनक कहा जाता है, वहां बमों की आग लगना आम बात बन चुकी है. लेकिन अब जो हालात खैबर पख्तूनख्वा में बने हैं, उसने इस्लामाबाद की सत्ता को हिला दिया है. हाल ही में जारी की गई काउंटर टेररिज्म डिपार्टमेंट (CTD) की एक रिपोर्ट ने पाकिस्तान की पोल खोल दी है. इस रिपोर्ट ने न सिर्फ सरकार और सेना की नाकामी को उजागर किया है, बल्कि यह भी बताया है कि खैबर पख्तूनख्वा अब बलूचिस्तान की राह पर है. सवाल ये है कि क्या पाकिस्तान अब अपने और टुकड़े देखने को तैयार है?
खैबर पख्तूनख्वा में हुए इतने हमले
2025 के सिर्फ 137 दिनों में खैबर पख्तूनख्वा में 284 आतंकी हमले हो चुके हैं. रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा 53 हमले उत्तर वजीरिस्तान में हुए हैं. इसके बाद बानू (35), डेरा इस्माइल खान (31), पेशावर (13), और कुर्रम (8) का नंबर आता है. यानी पाकिस्तान का यह उत्तर-पश्चिमी प्रांत पूरी तरह से आतंकी कब्जे और अस्थिरता की आग में झुलस रहा है. ये हमले सिर्फ सुरक्षा बलों तक सीमित नहीं हैं, बल्कि आम जनता भी अब खुलकर निशाना बन रही है.
सिर्फ हमले ही नहीं, बल्कि जवाबी कार्रवाई में अब तक 148 आतंकवादियों को मारा गया है. डेरा इस्माइल खान, जो खुद मुख्यमंत्री अली अमीन गंडापुर का गृह क्षेत्र है, वहां सबसे ज्यादा यानी 67 आतंकी मारे गए. वहीं आतंकवाद से जुड़े मामलों में 1,116 संदिग्धों के नाम सामने आए हैं, जिनमें से केवल 95 को गिरफ्तार किया गया है. ये आंकड़े बताते हैं कि पाकिस्तान की सरकार और कानून व्यवस्था सिर्फ कागजों में है, जमीन पर आतंकवादियों का कब्जा है.
सिर्फ खैबर पख्तूनख्वा ही क्यों?
अब सवाल उठता है कि सिर्फ खैबर पख्तूनख्वा ही क्यों? इसका सीधा जवाब है कि यहां दशकों से पाकिस्तानी सेना ने “गुड तालिबान” और “बैड तालिबान” की नीति अपनाई. टीटीपी (Tehrik-i-Taliban Pakistan) को कभी शह दी गई, तो कभी मारा गया. इस दोहरी नीति का खामियाजा अब पूरा प्रांत भुगत रहा है. साथ ही अफगान सीमा से लगने के कारण यह इलाका आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन चुका है.
आतंकी ही नहीं ये भी जिम्मेदार
खैबर पख्तूनख्वा के मौजूदा हालातों की जिम्मेदारी सिर्फ आतंकियों पर नहीं, बल्कि पाकिस्तान के तीन बड़े नेताओं नवाज शरीफ, इमरान खान और शहबाज शरीफ पर भी आती है. नवाज ने सेना से मिलकर तालिबान को पनाह दी, इमरान ने खुलेआम अफगान तालिबान का समर्थन किया और टीटीपी से बातचीत की पैरवी की, वहीं शहबाज शरीफ की सरकार बस बयानबाजी तक सीमित रही. इन तीनों नेताओं ने प्रांत की जनता की सुरक्षा से ज्यादा अपनी सत्ता और सेना के हित साधने को प्राथमिकता दी.
पख्तूनख्वा पाक से क्यों होगा अलग?
अब सवाल ये उठता है कि क्या खैबर पख्तूनख्वा भी बलूचिस्तान की तरह पाकिस्तान से अलग हो सकता है? अगर ग्राउंड रियलिटी की बात करें तो यह सवाल अब अटकल नहीं, बल्कि एक गंभीर चेतावनी है. जिस तरह बलूचिस्तान में पाक सेना के खिलाफ विद्रोह है, उसी तरह खैबर पख्तूनख्वा में भी टीटीपी और अन्य स्थानीय गुट अब सेना और सरकार के खिलाफ हथियारबंद हो चुके हैं. सोशल मीडिया पर चल रहे कैंपेन, स्थानीय जनजातियों का असंतोष और युवाओं का कट्टरपंथ की ओर झुकाव सब मिलकर एक अलगाववादी माहौल बना रहे हैं.
सेना के खिलाफ इतने प्रदर्शन
खैबर पख्तूनख्वा की जनता भी अब पाकिस्तानी सेना और सरकार से पूरी तरह नाराज हो चुकी है. आए दिन होने वाले सैन्य ऑपरेशनों, फर्जी मुठभेड़ों और स्थानीयों पर हो रहे अत्याचारों ने लोगों को और गुस्से में ला दिया है. रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीते एक साल में सेना के खिलाफ 50 से ज्यादा विरोध प्रदर्शन हुए हैं, जिनमें आम लोग, छात्र और बुद्धिजीवी शामिल थे. कई जगहों पर सेना की गाड़ियों को घेरा गया, उनके खिलाफ नारेबाजी हुई और सेना को स्थानीय इलाकों से निकलना पड़ा.
137 दिन और 284 हमलों के बाद यह सवाल अब और मुखर होता जा रहा है. क्या पाकिस्तान अब और टूटने के कगार पर है? बलूचिस्तान के बाद क्या खैबर पख्तूनख्वा भी आजादी की मांग उठाएगा? इस्लामाबाद को इसका जवाब जल्द देना होगा, वरना इतिहास एक और टूटती हुई हकीकत लिखेगा और शायद इस बार खून से.
यह भी पढ़ें: नौसेना को मिलेगा Sonobuoy...पहली बार निजी कंपनी देश में ही करेगी निर्माण
यह भी पढ़ें: देश में भाजपा लगातार कैसे जीत रही चुनाव? असदुद्दीन औवेसी ने बताया