जब हवा में कांप उठीं 220 सांसे, पाक ने कर दिया था मना… DGCA ने बताया कैसे फ्लाइट बचाकर कराई गई इमरजेंसी लैंडिंग?
बुधवार को मौसम की मार इंडिगो के एक विमान और उसमें सवार 220 यात्रियों के लिए जानलेवा साबित हो सकती थी। दअरसल दिल्ली से श्रीनगर जा रही फ्लाइट नंबर 6E-2937 अचानक भीषण ओलावृष्टि और तूफान में फंस गई। पायलट ने हालात से निपटने के लिए पहले भारतीय वायुसेना से मदद मांगी, लेकिन जब उन्हें अनुमति नहीं मिली, तो उन्होंने पाकिस्तान के लाहौर एयर ट्रैफिक कंट्रोल (ATC) से संपर्क साधा। लेकिन पाकिस्तान ने भी अपने हवाई क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति देने से साफ इनकार कर दिया। आखिरकार, पायलट ने श्रीनगर ATC को इमरजेंसी "पैन-पैन" कॉल करते हुए विमान को मैन्युअली उतारा। यह घटना न सिर्फ भारत-पाक के तनाव को उजागर करती है, बल्कि यह सवाल भी खड़ा करती है कि क्या मानवीय संकट के समय दुश्मन देश भी सहयोग से मुंह मोड़ सकता है?
कैसे किया गया विमान को कंट्रोल?
DGCA की प्रारंभिक रिपोर्ट के मुताबिक, विमान ने पठानकोट के पास अचानक खराब मौसम का सामना किया। ओलों की मार से विमान का नोज रेडोम (Radome) क्षतिग्रस्त हो गया, और सिस्टम में एक के बाद एक वॉर्निंग आने लगीं—एंगल ऑफ अटैक फॉल्ट, ऑटोपायलट फेलियर, स्पीड अनरिलायबल।
विमान की गति 8500 फीट प्रति मिनट तक गिर गई, जो एक गंभीर खतरा था। पायलट ने ऑटो-थ्रस्ट को बंद करके मैन्युअल कंट्रोल संभाला और श्रीनगर एयरपोर्ट पर इमरजेंसी लैंडिंग कराई। विमानन विशेषज्ञों के मुताबिक, यह पायलट की उच्च-स्तरीय ट्रेनिंग और शीतल दिमाग का नतीजा था कि सभी यात्री सुरक्षित रहे।
पाकिस्तान ने क्यों मना किया?
सबसे चौंकाने वाला पहलू यह रहा कि जब भारतीय पायलट ने लाहौर ATC से संपर्क किया, तो पाकिस्तान ने अनुरोध ठुकरा दिया। यह फैसला क्या सिर्फ द्विपक्षीय तनाव की वजह से लिया गया, या फिर पाकिस्तान ने जानबूझकर एक मानवीय संकट को नजरअंदाज किया? विमानन नियमों के तहत, किसी भी देश का ATC इमरजेंसी में फंसे विमान को तुरंत मदद देने के लिए बाध्य होता है। लेकिन पाकिस्तान ने इस नैतिक जिम्मेदारी को भी नहीं निभाया। क्या अगर विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाता, तो पाकिस्तान इसकी जिम्मेदारी लेता? यह सवाल अब अंतरराष्ट्रीय विमानन सुरक्षा एजेंसियों के सामने भी उठने की उम्मीद है।
क्या एयरलाइन्स को बदलनी होगी उड़ान मार्ग की रणनीति?
इस घटना के बाद DGCA ने पूरे मामले की जांच शुरू कर दी है। साथ ही, यह सवाल भी उठ रहा है कि क्या हिमालयन रूट पर उड़ान भरने वाली एयरलाइन्स को मौसम संबंधी जोखिमों को लेकर अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए? श्रीनगर, लेह और अन्य पहाड़ी एयरपोर्ट्स पर अक्सर अचानक मौसम परिवर्तन होते हैं, जिससे विमानों को भारी खतरा होता है। क्या अब एविएशन कंपनियों को इन रूट्स पर अतिरिक्त सेफ्टी प्रोटोकॉल अपनाने होंगे? या फिर भारतीय वायुसेना को ऐसे इमरजेंसी केस में त्वरित अनुमति देने के नियमों में ढील देनी होगी?
क्या इस घटना के बाद बदलेंगे अंतरराष्ट्रीय विमानन नियम?
यह घटना न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक सबक है। जब एक देश अपने राजनीतिक विवादों को मानवीय सुरक्षा से ऊपर रखता है, तो इससे अंतरराष्ट्रीय विमानन सुरक्षा को खतरा पैदा होता है। क्या अब ICAO (इंटरनेशनल सिविल एविएशन ऑर्गनाइजेशन) को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए? क्या पाकिस्तान जैसे देशों पर ऐसे मामलों में अनुमति न देने पर कार्रवाई होनी चाहिए? यह मामला सिर्फ एक फ्लाइट की कहानी नहीं, बल्कि वैश्विक विमानन सुरक्षा नीतियों पर एक बड़ी बहस की शुरुआत है।
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