तुर्की की ‘भूल’ पड़ी भारी: भारत ने दिखाई सख्ती, अरबों डॉलर के सौदों पर फिर होगा सोच-विचार
तुर्की ने पाकिस्तान के प्रति सहानुभूति जताकर भारत से अपनी गाढ़ी कमाई का रास्ता खुद बंद कर लिया है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद तुर्की की प्रतिक्रियाओं ने भारत को चौंकाया है और अब भारत सरकार उसके साथ किए गए अरबों डॉलर के व्यापारिक समझौतों की समीक्षा में जुट गई है। ये फैसला सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि पूरी तरह रणनीतिक है—जहां देशहित को सर्वोपरि माना जा रहा है।
भारत-तुर्की व्यापार पर मंडराया संकट
वित्तीय वर्ष 2023-24 में भारत और तुर्की के बीच करीब 10.4 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ। दोनों देशों के बीच ऑटोमोबाइल, मेट्रो रेल, आईटी और सुरंग निर्माण जैसे क्षेत्रों में सक्रिय भागीदारी रही है। महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में तुर्की की कई कंपनियां काम कर रही हैं। लेकिन तुर्की की हालिया ‘राजनीतिक भाषा’ इन सौदों पर भारी पड़ सकती है।
एफडीआई में तुर्की की स्थिति और भारत में निवेश
इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन (IBEF) की रिपोर्ट बताती है कि तुर्की भारत में एफडीआई के मामले में 45वें स्थान पर है। अप्रैल 2000 से सितंबर 2024 तक तुर्की ने भारत में 240.18 मिलियन डॉलर का निवेश किया है। ये निवेश मुख्य रूप से मेट्रो, निर्माण, विमानन और विनिर्माण सेक्टर में हुआ है। हालांकि इन वर्षों में शिक्षा और मीडिया जैसे क्षेत्रों में भी उसकी मौजूदगी बनी रही।
जम्मू-कश्मीर में भी तुर्की की पैठ
कश्मीर जैसे संवेदनशील क्षेत्र में तुर्की की उपस्थिति को लेकर सरकार और सतर्क हो गई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, सरकार अब उन सभी परियोजनाओं की गहन समीक्षा कर रही है जिनमें तुर्की की कंपनियां शामिल रही हैं—भले ही वो पूरी हो चुकी हों। 2020 में एक तुर्की कंपनी को अटल सुरंग के इलेक्ट्रोमैकेनिकल कार्य का ठेका मिला था। इसके अलावा, 2024 में मेट्रो रेल के एक बड़े प्रोजेक्ट में भी तुर्की की भागीदारी देखी गई।
पाकिस्तान प्रेम तुर्की पर पड़ रहा है भारी
तुर्की लंबे समय से भारत का व्यापारिक और तकनीकी साझेदार रहा है। लेकिन जब भारत ऑपरेशन सिंदूर के तहत आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई कर रहा था, तब तुर्की की पाकिस्तान समर्थक भाषा ने संबंधों में दरार ला दी। तुर्की ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बार-बार कश्मीर को लेकर टिप्पणी की, जो भारत की संप्रभुता पर सीधा हमला मानी गई। नतीजतन, भारत अब अपने कारोबारी रिश्तों की दिशा बदलने के मूड में है।
क्या होंगे असर?
वाणिज्य मंत्रालय के एक सीनियर विशेषज्ञ के अनुसार, भारत ने फिलहाल किसी व्यापारिक समझौते को रद्द नहीं किया है, लेकिन दीर्घकालिक परियोजनाओं की समीक्षा जरूर चल रही है। कश्मीर पर तुर्की की बयानबाजी और पाकिस्तान से उसकी नजदीकियों का असर भारत में भविष्य के निवेश पर साफ दिखाई दे सकता है।
रणनीति पहले, मुनाफा बाद में
भारत अब वैश्विक स्तर पर रणनीतिक सोच के साथ आगे बढ़ रहा है। आर्थिक साझेदारी तभी कारगर मानी जाएगी जब वो राष्ट्रीय हितों के अनुरूप हो। तुर्की की कंपनियां फिलहाल पुणे, मुंबई, लखनऊ जैसे शहरों में मेट्रो परियोजनाओं में शामिल हैं, लेकिन आने वाले वक्त में ये तस्वीर पूरी तरह बदल सकती है। तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन की 2017 की भारत यात्रा में हुए कई समझौतों पर अब धूल जमती दिख रही है।
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