7 टीमें, 59 चेहरे, मिशन 33 देशों का… ओवैसी समेत ये नेता दुनियांभर में पाकिस्तान की खोलेंगे पोल
पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर घेरने के लिए भारत ने अपना सबसे बड़ा कूटनीतिक हमला बोला है। 59 सांसदों और पूर्व राजनयिकों की 7 टीमें अब 33 देशों में जाकर पाकिस्तान के आतंकी चेहरे को बेनकाब करेंगी। इस अनोखी टीम में असदुद्दीन ओवैसी से लेकर शशि थरूर तक शामिल हैं, जो साबित करता है कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की लड़ाई में अब सभी दल एकजुट हैं। लेकिन क्या यह सिर्फ राजनीतिक दिखावा है या फिर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की सुनियोजित रणनीति?
भारत की तरफ़ से कौन कहां जाएगा?
मध्य पूर्व टीम: बीजेपी के बैजयंत पांडा और एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी सऊदी अरब, कुवैत और बहरीन में पाकिस्तान के आतंकी नेटवर्क को उजागर करेंगे।
यूरोप टीम: रविशंकर प्रसाद और शिवसेना की प्रियंका चतुर्वेदी ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी को भारत का पक्ष समझाएंगे।
अमेरिकी टीम: शशि थरूर अमेरिका और लैटिन अमेरिकी देशों में पाकिस्तान के खिलाफ भारत का मामला पेश करेंगे।
रूस टीम: डीएमके की कनिमोझी रूस और यूरोपीय देशों में भारत की बात रखेंगी।
कांग्रेस के 4 नामों में से सिर्फ 1 को क्यों चुना?
कांग्रेस ने इस पहल पर सवाल उठाते हुए सरकार पर "राजनीतिक पक्षपात" का आरोप लगाया है। पार्टी का कहना है कि उनके द्वारा सुझाए गए 4 नेताओं में से केवल डॉ. अमर सिंह को ही शामिल किया गया। हालांकि, कांग्रेस ने यह भी स्पष्ट किया कि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर सरकार के साथ खड़ी रहेगी। क्या यह विवाद सच में सत्ता-विपक्ष की लड़ाई है या फिर कांग्रेस की नाराजगी जायज है?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाक होगा अलग-थलग ?
इन प्रतिनिधिमंडलों का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तीन बातें समझाना है:
- पाकिस्तान आतंकवाद का प्रमुख पोषक देश है और उसने ऑपरेशन सिंदूर के बाद भी अपनी रणनीति नहीं बदली है।
- भारत ने सीमा पार जाकर पाकिस्तानी सैन्य ठिकानों को निशाना बनाकर अपनी शक्ति का परिचय दिया है।
- अब दुनिया को पाकिस्तान पर प्रतिबंधों और कूटनीतिक दबाव बढ़ाने की जरूरत है।
क्या यह अभियान पाकिस्तान को घुटनों पर लाएगा?
यह पहली बार है जब भारत ने आतंकवाद के खिलाफ इतने बड़े पैमाने पर राजनीतिक और कूटनीतिक मोर्चा खोला है। अगर यह टीमें वैश्विक नेताओं को भारत के पक्ष में लाने में सफल होती हैं, तो पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अलग-थलग किया जा सकता है। फिलहाल, यह अभियान भारत की उस सख्त रणनीति का हिस्सा है, जिसमें अब सिर्फ सैन्य कार्रवाई ही नहीं, बल्कि कूटनीतिक दबाव भी शामिल है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या भारत की यह डिप्लोमेटिक स्ट्राइक पाकिस्तान को घुटनों पर ला पाती है या नहीं।
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