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‘टॉक्सिक ऑफिस, मैनेजर का प्रेशर…’ इंजीनियर निखिल सोमवंशी की झील में मिली लाश ने छोड़े कई सवाल, आखिर क्यों थम गई एक होनहार ज़िंदगी?

IISC टॉपर और क्रुट्रिम के ML इंजीनियर निखिल सोमवंशी ने मैनेजर की प्रताड़ना और टॉक्सिक वर्क कल्चर से तंग आकर आत्महत्या कर ली।
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Nikhil Somvanshi Ola Suicide Case: बेंगलुरु की अगरा झील का पानी चुपचाप एक कहानी बयां कर रहा है... कहानी 25 साल के निखिल सोमवंशी, जिसने IISC जैसे प्रतिष्ठित संस्थान से 9.30 GPA हासिल किया और वहां से मशीन लर्निंग इंजीनियर बना। लेकिन कॉर्पोरेट में आकर वह एक ऐसी जहरीली नौकरी में फंस गया जहां मैनेजर का टॉर्चर और टॉक्सिक वर्क कल्चर उसकी जान ले बैठा। दरअसल 8 मई को जब उसका शव झील से निकला तो साथ में एक सवाल भी जोर मार रहा है कि क्या भारत के IT सेक्टर में कर्मचारियों की जिंदगी से ज्यादा कीमती सिर्फ डेडलाइन्स हैं?

कौन था निखिल सोमवंशी?

निखिल ने बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान (IISC) से मास्टर्स किया था। 9.30 GPA के साथ पास होकर उसे ओला की AI कंपनी क्रुट्रिम में मशीन लर्निंग इंजीनियर की नौकरी मिली। पर यहां उसका सपना धीरे-धीरे कुचल दिया गया। कंपनी के US बेस्ड मैनेजर राजकिरण पानुगंती ने उसे मानसिक रूप से तोड़ दिया। कर्मचारियों ने बताया कि मैनेजर निखिल पर चिल्लाता था, उसे बेवकूफ कहता था और उस पर इतना काम डाल देता था कि वह सांस तक नहीं ले पाता था।

"मैनेजर ने जिंदगी नर्क बना दी..." कर्मचारियों ने क्या बताया?

क्रुट्रिम कंपनी के कई कर्मचारियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि मैनेजर राजकिरण का व्यवहार इतना खराब था कि कई लोगों ने नौकरी छोड़ दी। एक कर्मचारी ने कहा, "मैं खुद आत्महत्या के बारे में सोच चुका हूं। निखिल की मौत के बाद भी मैनेजर ने अपना रवैया नहीं बदला और अगले ही दिन टीम पर चिल्लाना शुरू कर दिया।

कंपनी अपने बचाव में क्या बोली?

क्रुट्रिम कंपनी ने एक ईमेल जारी कर कहा कि निखिल 8 अप्रैल से छुट्टी पर था और उसकी मेडिकल लीव बढ़ाई गई थी। पर सवाल यह है कि अगर कंपनी ने उसे सही सपोर्ट दिया होता, तो क्या वह आत्महत्या करता? निखिल की डायरी और उसके दोस्तों के बयान बताते हैं कि वह डिप्रेशन में था और मैनेजर के व्यवहार से तंग आ चुका था।

क्या कहता है कानून?

भारतीय कानून के तहत अगर साबित हो कि मैनेजर के टॉर्चर ने निखिल को आत्महत्या के लिए उकसाया, तो उस पर IPC की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत केस हो सकता है। साथ ही, अगर मैनेजर ने ऑनलाइन या मैसेज के जरिए धमकाया था, तो IT एक्ट की धारा 66A भी लगाई जा सकती है। कंपनी पर भी मुकदमा हो सकता है अगर साबित हो कि उसका वर्क कल्चर इतना जहरीला था।

क्या बेंगलुरु का IT सेक्टर टॉक्सिक वर्क कल्चर का शिकार है?

बता दें कि सिर्फ़ निखिल ही ऐसा अकेला शिकार नहीं है। पिछले कुछ सालों में बेंगलुरु, हैदराबाद और गुरुग्राम से ऐसे कई केस सामने आए हैं जहां युवा IT इंजीनियर्स ने वर्क प्रेशर और मैनेजर के टॉर्चर की वजह से आत्महत्या कर ली। 2022 में TCS के एक 24 साल के इंजीनियर ने हैदराबाद में फांसी लगा ली थी। 2023 में इंफोसिस के एक कर्मचारी ने बेंगलुरु ऑफिस की छत से कूदकर जान दे दी थी।

क्या कंपनियां कर्मचारियों को इंसान समझेंगी?

निखिल की मौत सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि भारतीय IT सेक्टर के टॉक्सिक वर्क कल्चर का एक कड़वा सच है। क्या कंपनियां अपने कर्मचारियों को "रिसोर्स" समझने के बजाय "इंसान" समझेंगी? क्या HR डिपार्टमेंट सिर्फ कंपनी का पक्ष लेगा या कर्मचारियों की आवाज भी सुनेगा? अगर हमने अब भी वर्क-लाइफ बैलेंस और मेंटल हेल्थ को नजरअंदाज किया, तो निखिल जैसे और होनहार दिमाग खामोशी से दम तोड़ते रहेंगे।

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