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42वीं बार बने दूल्हा, फिर भी नहीं मिली दुल्हन! खीरी की इस अनोखी बारात की कहानी जानकर हो जाएंगे हैरान

उत्तर प्रदेश के खीरी जिले में सैकड़ों साल पुरानी एक अनोखी परंपरा, जिसमें दूल्हा 42वीं बार भी बिना दुल्हन के घर लौटा। जानिए इस बारात की पूरी कहानी।
01:50 AM Mar 17, 2025 IST | Girijansh Gopalan

उत्तर प्रदेश के खीरी जिले के नरगड़ा गांव में एक अनोखी बारात निकली, जिसमें दूल्हा घोड़ी पर सवार होकर दुल्हन के घर पहुंचा, द्वारपूजा हुई, शादी की सभी रस्में पूरी हुईं, लेकिन दुल्हन नहीं मिली। यह कोई असली शादी नहीं थी, बल्कि सैकड़ों साल पुरानी एक लोक परंपरा का हिस्सा थी। इस बारात में दूल्हा बने विश्वम्भर दयाल मिश्रा, जो 42वीं बार भी बिना दुल्हन के घर लौटे।

क्या है यह अनोखी परंपरा?

नरगड़ा गांव में होली के दिन यह अनोखी बारात निकालने की परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है। इसमें दूल्हा घोड़ी पर सवार होकर दुल्हन के घर जाता है, लेकिन दुल्हन नहीं मिलती। यह पूरा आयोजन एक स्वांग की तरह होता है, जिसमें गांव के लोग बड़े उत्साह के साथ शामिल होते हैं। इस बारात में दूल्हा बनने का अधिकार एक ही परिवार के पास होता है। विश्वम्भर दयाल मिश्रा के परिवार के सदस्य सैकड़ों साल से इस परंपरा को निभा रहे हैं। विश्वम्भर दयाल मिश्रा ने बताया कि उनसे पहले उनके बड़े भाई श्याम बिहारी इस बारात के दूल्हा बनते थे।

कैसे होती है यह बारात?

इस बारात में गांव के लोग बाराती बनते हैं और ट्रैक्टर-ट्रॉली और अन्य वाहनों पर सवार होकर बैंड की धुन पर नाचते-गाते दूल्हे के साथ चलते हैं। बारात दुल्हन के दरवाजे पर पहुंचती है, जहां उनका स्वागत किया जाता है। महिलाएं मंगलगीत और गारी गाती हैं, और फिर शादी की सभी रस्में पूरी की जाती हैं। दूल्हा और दुल्हन के फेरे होते हैं, लेकिन दूल्हा बिना दुल्हन के ही बारात लेकर लौट जाता है। यह पूरा आयोजन एक स्वांग की तरह होता है, जिसमें गांव के लोग बड़े उत्साह के साथ शामिल होते हैं।

दूल्हे की ससुराल भी गांव में ही

इस परंपरा के तहत दूल्हे की ससुराल भी गांव में ही होती है। विश्वम्भर दयाल मिश्रा की पत्नी मोहिनी को होली से पहले मायके बुलाया जाता है, और फिर शादी का स्वांग पूरा होने के कुछ दिन बाद उन्हें ससुराल भेजा जाता है। विश्वम्भर दयाल मिश्रा ने बताया कि पहले उनके भाई भैंसे पर सवार होकर बारात में जाते थे, लेकिन अब समय के साथ परंपरा में भी बदलाव आया है।

क्यों निभाई जाती है यह परंपरा?

स्थानीय लोगों के मुताबिक, यह परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है और इसे पूरे उत्साह के साथ निभाया जाता है। यह आयोजन गांव की सांस्कृतिक पहचान को बनाए रखने का एक तरीका है। होली के दिन होने वाली इस अनोखी शादी को पुरानी परंपरा के तहत ही संपन्न कराया जाता है।

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