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भाखड़ा नहर पर पानी-पानी हो रहा है हरियाणा-पंजाब का रिश्ता! क्यों फिर आमने-सामने आ गए दोनों राज्य, जानिए पूरा विवाद...

भाखड़ा नहर से पानी बंटवारे पर हरियाणा-पंजाब विवाद फिर तेज़, जानिए इसके ऐतिहासिक कारण, राजनीतिक टकराव और संभावित समाधान क्या हैं।
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गर्मी की तपिश के साथ ही हरियाणा और पंजाब के बीच पानी को लेकर तनाव एक बार फिर उबलने लगा है। भाखड़ा नहर के पानी के बंटवारे को लेकर दोनों राज्यों के बीच खींचतान इतनी बढ़ गई है कि मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने की कगार पर है। हरियाणा का दावा है कि पंजाब उसे उसके हिस्से का पानी नहीं दे रहा, जबकि पंजाब का कहना है कि वह खुद जल संकट से जूझ रहा है। यह विवाद कोई नया नहीं, बल्कि 1966 से चला आ रहा है, जब पंजाब का पुनर्गठन हुआ था। आइए जानते हैं कि आखिर यह विवाद क्यों शुरू हुआ और इसका समाधान कैसे निकल सकता है।

क्या है पूरा मामला? जानें इतिहास की नज़र से

इस विवाद की शुरुआत 1966 में हुए पंजाब पुनर्गठन से हुई, जब हरियाणा और हिमाचल प्रदेश को अलग-अलग राज्य बनाया गया। सतलुज, रावी और ब्यास नदियों के पानी का बंटवारा दोनों राज्यों के लिए अहम सवाल बन गया। 1955 में बने भाखड़ा बांध से हरियाणा, पंजाब और राजस्थान को पानी और बिजली मिलती है।

1981 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रावी-ब्यास नदियों के पानी का बंटवारा तय किया, जिसके तहत पंजाब को 4.22 मिलियन एकड़ फीट, हरियाणा को 3.5 मिलियन एकड़ फीट और राजस्थान को 8.6 मिलियन एकड़ फीट पानी दिया जाना था। 1987 में एराडी ट्रिब्यूनल ने पंजाब का हिस्सा बढ़ाकर 5 मिलियन एकड़ फीट और हरियाणा का 3.83 मिलियन एकड़ फीट कर दिया।

पानी को लेकर क्यों मचा है बबाल?

इस साल गर्मी के मौसम में विवाद तब भड़का जब पंजाब ने हरियाणा को दी जाने वाली भाखड़ा नहर की पानी की मात्रा 9,500 क्यूसेक से घटाकर 4,000 क्यूसेक कर दी। हरियाणा का दावा है कि इससे हिसार, सिरसा, फतेहाबाद और भिवानी जैसे जिलों में पेयजल और सिंचाई संकट पैदा हो गया है। हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सैनी ने कहा कि भाखड़ा बांध का पानी जून से पहले खाली करना जरूरी है, वरना मानसून का पानी संग्रहीत नहीं हो पाएगा। वहीं, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने कहा कि पंजाब खुद जल संकट से जूझ रहा है और हरियाणा ने अपने हिस्से का पानी पहले ही उपयोग कर लिया है।

राजनीतिक तूफान का क्या है कानूनी रास्ता?

पानी के इस विवाद ने राजनीतिक रंग ले लिया है। हरियाणा में विपक्षी नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने केंद्र और राज्य सरकार पर हरियाणा के हितों की रक्षा न करने का आरोप लगाया। हरियाणा सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाई है, जबकि पंजाब में सभी दल भगवंत मान के साथ खड़े हैं। 29 अप्रैल को दिल्ली में भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) की बैठक में हरियाणा को 8 दिनों के लिए अतिरिक्त 4,500 क्यूसेक पानी देने का प्रस्ताव रखा गया, लेकिन सहमति नहीं बनी। हरियाणा की सिंचाई मंत्री श्रुति चौधरी ने सुप्रीम कोर्ट में जाने की चेतावनी दी है, जहां सतलुज-यमुना लिंक (SYL) नहर विवाद पहले से लंबित है।

समाधान की राह: क्या हैं विकल्प?

इस विवाद के समाधान के लिए कई रास्ते संभव हैं। पहला, केंद्र की मध्यस्थता जिसमें BBMB के साथ मिलकर पानी के बंटवारे का पारदर्शी डेटा तैयार किया जाए। दूसरा, नया ट्रिब्यूनल बनाना जो पानी की उपलब्धता की नई जांच करे। तीसरा, SYL नहर का निर्माण पूरा करना, हालांकि पंजाब में इसके खिलाफ व्यापक विरोध है। चौथा और सबसे महत्वपूर्ण, दोनों राज्यों को जल संरक्षण तकनीकों को अपनाना होगा। पंजाब में 79% क्षेत्रों में भूजल का अति-दोहन हो रहा है, जो लंबे समय में और भी बड़े संकट का संकेत है।

इस विवाद की जटिलता इस बात में है कि दोनों राज्यों में पानी की कमी और कृषि पर निर्भरता इसे और उलझा देती है। पंजाब का मानना है कि वह गैर-रिपेरियन राज्य हरियाणा के साथ पानी साझा करने के लिए बाध्य नहीं है, जबकि हरियाणा अपने ऐतिहासिक और कानूनी अधिकारों की बात करता है। ऐसे में, इस मामले का टिकाऊ समाधान निकालने के लिए दोनों राज्यों को आपसी सहयोग और जल संरक्षण पर ध्यान देना होगा।

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