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‘50 सर्टिफिकेट, 10 मेडल... फिर भी जॉब नहीं मिली’ दिल्ली यूनिवर्सिटी टॉपर की कहानी जो हजारों युवाओं का दर्द है

कई बार ज़िंदगी का असली चेहरा तब दिखता है जब क्लासरूम की चारदीवारी से बाहर निकलकर नौकरी की भीड़ में कदम रखते हैं। मार्कशीट और मेडल लेकर निकला छात्र जब जॉब मार्केट में खुद को अकेला पाता है, तब एहसास...
03:02 PM Apr 20, 2025 IST | Sunil Sharma
कई बार ज़िंदगी का असली चेहरा तब दिखता है जब क्लासरूम की चारदीवारी से बाहर निकलकर नौकरी की भीड़ में कदम रखते हैं। मार्कशीट और मेडल लेकर निकला छात्र जब जॉब मार्केट में खुद को अकेला पाता है, तब एहसास...

कई बार ज़िंदगी का असली चेहरा तब दिखता है जब क्लासरूम की चारदीवारी से बाहर निकलकर नौकरी की भीड़ में कदम रखते हैं। मार्कशीट और मेडल लेकर निकला छात्र जब जॉब मार्केट में खुद को अकेला पाता है, तब एहसास होता है कि असली लड़ाई तो अब शुरू हुई है। दिल्ली यूनिवर्सिटी की टॉपर बिस्मा ने कुछ ऐसा ही दर्द LinkedIn पर एक पोस्ट के ज़रिए साझा किया, जो देखते ही देखते वायरल हो गया। पोस्ट ने ना सिर्फ हज़ारों दिलों को छुआ, बल्कि भारत की एजुकेशन सिस्टम पर एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए।

बिस्मा की कड़ी मेहनत और जिंदगी का कड़वा सच

बिस्मा का दावा है कि उनके पास 50 से ज्यादा सर्टिफिकेट, 10 मेडल, और कॉलेज टॉपर होने का तमगा है। उन्होंने DU में पढ़ाई के दौरान ट्रॉफी दर ट्रॉफी जीती, लेकिन जब उन्होंने इंडस्ट्री में कदम रखा, तो सारा मेहनत का वजन महज़ “कागज़” जैसा महसूस हुआ। LinkedIn पर लिखी एक पोस्ट में उन्होंने लिखा, "मैं टॉपर थी, लेकिन इंटर्नशिप तक नहीं मिल रही..."

सोशल मीडिया पर मचा बवाल, युवाओं ने किया रिएक्ट

सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई बिस्मा की इस कहानी ने देश के हजारों युवाओं को झकझोर दिया। बहुत से यूजर ने उनकी पोस्ट पर अपनी-अपनी कहानियां भी शेयर की। एक यूज़र ने लिखा, “ये पोस्ट मम्मी-पापा को ज़रूर दिखानी चाहिए।” दूसरे ने कहा, “हम सब बिस्मा हैं... बस नाम अलग है।” एक और यूज़र ने अपनी कहानी साझा की, “मैं औसत छात्र था, कोई मेडल नहीं, लेकिन कोडिंग सीखी, फ्रीलांसिंग की और आज एक अच्छी कंपनी में काम करता हूं। स्किल्स ही सबकुछ हैं।”

भारतीय एजुकेशन सिस्टम पर सवाल

कई यूज़र्स का कहना था कि कॉलेज से डिग्री तो मिल जाती है, लेकिन ‘रियल वर्ल्ड में सर्वाइव कैसे करना है’, इसकी कोई ट्रेनिंग नहीं होती जिसके चलते युवाओं को नौकरी के लिए दर-दर भटकना पड़ता है। भारतीय एजुकेशन सिस्टम में प्रैक्टिकल नॉलेज की कमी, इंडस्ट्री एक्सपोजर न के बराबर और स्किल डेवलपमेंट पर ज़ोर नहीं दिए जाने के कारण जिंदगी के साल बर्बाद करने के बाद भी युवा नौकरी के लिए तरसते हैं।

डिग्री ज़रूरी है, पर काफी नहीं

बिस्मा की पोस्ट ने फिर से यह बहस छेड़ दी है कि भारतीय कॉलेजों में अब भी रटने और मार्क्स लाने पर ज़्यादा ध्यान है। आज के दौर में डिग्री होना एक एंट्री पास हो सकता है, लेकिन करियर बनाने के लिए स्किल्स ही असली ताकत हैं। यही बिस्मा की पोस्ट का संदेश भी है। वह कहती है, "मैं ये नहीं कहती कि किताबें जला दो, लेकिन एक स्किल चुनो और उसमें एक्सपर्ट बनो… फिर देखना, मौके खुद चलकर आएंगे।”

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