CRPF में ही बैठा था गद्दार! पहलगाम में हमले से 6 दिन पहले ही पाकिस्तान को दे रहा था खबरें… अब सामने आई पूरी इनसाइड स्टोरी
एक CRPF जवान जो देश की सीमाओं की रक्षा के लिए तैनात था, वही पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों (PIO) के लिए जासूसी कर रहा था! राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने सहायक उपनिरीक्षक मोती राम जाट को गिरफ्तार किया है, जो 2023 से ही पाकिस्तान को भारत की संवेदनशील सुरक्षा जानकारियां लीक कर रहा था। सबसे चौंकाने वाला खुलासा यह है कि 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले से ठीक 6 दिन पहले इस जवान का ट्रांसफर हुआ था, और NIA को शक है कि उसने हमले की प्लानिंग में पाकिस्तान की मदद की होगी। जिस पहलगाम हमले में 26 निर्दोष पर्यटकों की जान गई थी, क्या वह इसी जवान की गद्दारी का नतीजा था?
कैसे पकड़ा गया 'गद्दार' CRPF का जवान?
मोती राम जाट की गिरफ्तारी की कहानी भी फिल्मी सस्पेंस से कम नहीं। CRPF और NIA की संयुक्त टीम ने उसकी सोशल मीडिया एक्टिविटी पर नजर रखी, जहां उसने कई प्रोटोकॉल्स का उल्लंघन किया था।
जांच में पता चला कि वह विभिन्न डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के जरिए पाकिस्तानी एजेंट्स से पैसे ले रहा था। उसके बैंक ट्रांजैक्शन और चैट हिस्ट्री ने उसकी गद्दारी का पर्दाफाश किया। अब दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने उसे 6 जून तक NIA की हिरासत में भेज दिया है, ताकि इस केस की गहराई से जांच की जा सके।
हनीट्रैप से लेकर पैसे तक... ISI के वही पुराने फंडे में फंसा जवान
NIA की जांच से पता चला है कि मोती राम जाट को पैसे और लालच के जरिए फंसाया गया था। पाकिस्तानी एजेंट्स ने उसे धीरे-धीरे अपने जाल में फंसाया और फिर सेंसिटिव जानकारियां मांगनी शुरू कीं। यह तरीका ISI का क्लासिक स्टाइल है, जिसमें वह हनीट्रैप, ड्रग्स और फाइनेंशियल लालच का इस्तेमाल करता है। गुजरात के कच्छ में भी एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता सहदेव सिंह गोहिल को इसी तरह गिरफ्तार किया गया था, जिसने 40,000 रुपये के लिए बॉर्डर और नेवी की जानकारियां लीक की थीं।
क्या पहलगाम हमले का मास्टरमाइंड यही जवान था?
NIA को शक है कि मोती राम जाट ने पहलगाम हमले से पहले ही आतंकियों को सुरक्षा बलों की डिप्लॉयमेंट और टूरिस्ट मूवमेंट की जानकारी दी होगी। उसका हमले से ठीक 6 दिन पहले ट्रांसफर होना भी संदेह पैदा करता है। क्या वह जानबूझकर हमले के वक्त वहां से हटाया गया था? क्या पाकिस्तान को इस हमले की पूरी जानकारी इसी जवान ने दी थी? इन सवालों के जवाब NIA की जांच से ही मिलेंगे, लेकिन एक बात तय है कि देशद्रोह की कीमत सिर्फ जेल नहीं, बल्कि देश की नजरों में बदनामी है!
क्या सेना और पुलिस में और भी 'गद्दार' छिपे हैं?
यह केस सिर्फ एक जवान की गिरफ्तारी तक सीमित नहीं, बल्कि भारत की सुरक्षा व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। अगर CRPF जैसी संवेदनशील फोर्स में बैठा व्यक्ति देश के साथ गद्दारी कर सकता है, तो क्या हमारी भर्ती प्रक्रिया और इंटरनल वेटिंग सिस्टम में कोई खामी है? क्या सुरक्षा बलों के जवानों की सोशल मीडिया और फाइनेंशियल मॉनिटरिंग और सख्त होनी चाहिए? यह मामला देश के लिए एक सबक है कि दुश्मन सीमा पर ही नहीं, हमारे अंदर भी घुस सकता है! अब देखना यह है कि NIA इस जांच में और किन-किन नामों को उजागर करती है।
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