'अब यहीं रहूंगा बेटा...' कब्र से लिपटे पिता की रुलाई देख पत्थर भी पिघल जाए, दिल तोड़ देने वाला वीडियो वायरल!
Bengaluru Stadium Stampede: बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में हुई भगदड़ ने न सिर्फ 11 लोगों की जान ले ली, बल्कि एक पिता के सीने में ऐसा जख्म दिया है जो कभी नहीं भरेगा। 21 साल के भूमिक लक्ष्मण की मौत के बाद उनके पिता बीटी लक्ष्मण का वह वीडियो सोशल मीडिया पर आग की तरह फैल रहा है, जिसे देखकर किसी का भी दिल दहल जाए। वीडियो में वह अपने बेटे की कब्र से लिपटे हुए हैं, जमीन पर गिरकर छाती पीट रहे हैं, और बार-बार कह रहे हैं कि "मैं भी यहीं रहूंगा..."। यह नज़ारा सिर्फ एक पिता का दर्द नहीं, बल्कि उस सिस्टम की बर्बरता का सबूत है जिसकी लापरवाही ने 11 परिवारों को उजाड़ दिया।
वीडियो में क्या कहता दिखा युवक?
वीडियो में भूमिक के पिता का वह बयान सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं, जब वह कहते हैं कि "मैंने यह जमीन अपने बेटे के भविष्य के लिए खरीदी थी, आज उसी पर उसका स्मारक बन गया है।" उनकी आंखों से निकलते आंसू और टूटी आवाज़ साफ बता रही है कि इस दर्द का कोई इलाज नहीं। वह अपने बेटे की कब्र से उठने से इनकार कर देते हैं, और जब लोग उन्हें समझाने की कोशिश करते हैं, तो वह चीखकर कहते हैं – "मैं यहीं रहूंगा!" यह वह दृश्य है जो पूरे समाज को झकझोर देने के लिए काफी है।
भाजपा ने सिद्धारमैया पर बोला हमला
इस वीडियो ने कर्नाटक की राजनीति में भी आग लगा दी है। भाजपा ने सीधे मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को "हत्यारे" तक कह डाला है। पार्टी ने ट्वीट कर कहा कि "आप IPL ट्रॉफी के साथ फोटो खिंचवाने में व्यस्त थे, जबकि आपकी लापरवाही ने 11 परिवारों को तबाह कर दिया। क्या आप इस पिता को उसका बेटा वापस दे सकते हैं?" भाजपा का आरोप है कि प्रशासन ने भीड़ प्रबंधन को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखाई, जिसकी कीमत निर्दोष लोगों ने अपनी जान देकर चुकाई।
क्या सच में लापरवाही थी? जांच में क्या निकलेगा सच?
हालांकि, सरकार की तरफ से दावा किया जा रहा है कि भगदड़ की वजह "अचानक बारिश और लोगों का अफरा-तफरी में भागना" था। लेकिन सवाल यह है कि एक स्टेडियम जहां हजारों लोग जमा होते हैं, वहां आपात स्थिति के लिए कोई प्लान क्यों नहीं था? क्या वाकई पुलिस और प्रशासन ने भीड़ को कंट्रोल करने में कोताही बरती? अब जब जांच शुरू हुई है, तो उम्मीद की जा रही है कि जिम्मेदारों को सजा मिलेगी। लेकिन क्या सजा किसी पिता के बेटे को वापस ला सकती है?
सिस्टम की लापरवाही का दंड क्यों भुगत रहे हैं मासूम?
भूमिक के पिता का दर्द सिर्फ उनका नहीं, बल्कि उन सभी परिवारों का है जो इस भगदड़ में अपनों को खो चुके हैं। सवाल यह है कि आखिर कब तक ऐसी घटनाएं होती रहेंगी? कब तक सिस्टम की गलतियों की कीमत आम लोगों को चुकानी पड़ेगी? यह मामला सिर्फ बेंगलुरु तक सीमित नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए एक सबक है कि सार्वजनिक स्थलों पर सुरक्षा को लेकर जरा भी कोताही जानलेवा साबित हो सकती है। आज भूमिक के पिता रो रहे हैं, लेकिन कल अगर सुधार नहीं हुआ, तो यह सिलसिला थमने वाला नहीं।
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