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बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर को सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी, 500 करोड़ की लागत से बदलेगा वृंदावन का स्वरूप…

सुप्रीम कोर्ट ने बांके बिहारी कॉरिडोर को मंजूरी दी, यूपी सरकार मंदिर निधि से जमीन खरीद सकेगी, शर्त- जमीन ट्रस्ट के नाम होनी चाहिए।
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सुप्रीम कोर्ट ने बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को मंदिर के आसपास की भूमि खरीदने के लिए मंदिर निधि का उपयोग करने की अनुमति दे दी है। हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अधिग्रहीत जमीन देवता/ट्रस्ट के नाम पर ही होनी चाहिए। यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के नवंबर 2023 के आदेश में संशोधन करते हुए आया है, जिसमें मंदिर प्रबंधन और भक्तों की सुविधा को ध्यान में रखा गया है।

फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर निधि से 5 एकड़ भूमि खरीदने की अनुमति देते हुए स्पष्ट किया कि अधिग्रहीत जमीन पर मंदिर ट्रस्ट का पूर्ण स्वामित्व बना रहेगा। कोर्ट ने मथुरा के सिविल जज को कड़े निर्देश दिए कि रिसीवर की नियुक्ति में वैष्णव संप्रदाय की गहरी समझ रखने वाले, प्रशासनिक अनुभव संपन्न व्यक्ति को ही चुना जाए, न कि अधिवक्ताओं या जिला प्रशासन के सदस्यों को।

मंदिर के 1864 से चले आ रहे ऐतिहासिक महत्व और प्रतिदिन 50,000 से अधिक भक्तों के दर्शन के दबाव को देखते हुए, न्यायालय ने भीड़ प्रबंधन हेतु कॉरिडोर निर्माण को आवश्यक बताया, साथ ही यह सुनिश्चित किया कि सरकार का हस्तक्षेप केवल भक्त सुविधाओं तक सीमित रहे। साथ ही बता दें कि सरकार मंदिर के स्थिर जमा (फिक्स्ड डिपॉजिट) से पैसा लेकर जमीन खरीदेगी, लेकिन जमीन का मालिकाना हक मंदिर के पास ही रहेगा।

मंदिर की भीड़ प्रबंधन को लेकर सुप्रीम कोर्ट की चिंता

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि श्री बांके बिहारी मंदिर, जिसकी स्थापना 1864 में हुई थी, एक ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व का स्थल है। यहां प्रतिदिन 40 से 50,000 श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं, जबकि सप्ताहांत और त्योहारों के दौरान यह संख्या 2-5 लाख तक पहुंच जाती है। मंदिर का वर्तमान क्षेत्रफल मात्र 1,200 वर्ग फुट है, जो भक्तों की भीड़ को संभालने में असमर्थ है। इसलिए, कोर्ट ने माना कि मंदिर के आसपास अतिरिक्त भूमि का अधिग्रहण आवश्यक है ताकि भक्तों के लिए बेहतर सुविधाएं और होल्डिंग एरिया बनाया जा सके।

भक्तों की सुविधा पर यूपी सरकार का फोकस

उत्तर प्रदेश सरकार ने कोर्ट में स्पष्ट किया था कि वह मंदिर के आंतरिक मामलों में दखल नहीं देना चाहती, बल्कि उसका उद्देश्य केवल भक्तों की सुविधा के लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करना है। सरकार ने मंदिर के आसपास 5 एकड़ अतिरिक्त जमीन खरीदने का प्रस्ताव रखा था, ताकि कॉरिडोर और होल्डिंग एरिया बनाया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए कहा कि भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए और अधिग्रहित जमीन मंदिर ट्रस्ट के नाम पर ही रजिस्टर्ड हो।

मंदिर प्रबंधन और भक्तों के हितों का संतुलन

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल बांके बिहारी मंदिर के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देशभर के अन्य ऐतिहासिक मंदिरों के लिए भी एक मिसाल कायम करता है। कोर्ट ने धार्मिक स्थलों के रखरखाव और भक्तों की सुविधा के बीच सही संतुलन बनाने पर जोर दिया है। अब यह देखना होगा कि उत्तर प्रदेश सरकार और मंदिर ट्रस्ट इस फैसले को कितनी जल्दी और प्रभावी ढंग से लागू करते हैं।

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