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श्री बांके बिहारी कॉरिडोर पर मचा घमासान! 500 करोड़ की परियोजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे गोस्वामी, बोले- मैं वंशज हूं महाराज का...

मथुरा के बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका, वंशजों ने सरकार पर बिना सहमति योजना थोपने का आरोप लगाया है।
04:58 PM May 23, 2025 IST | Rohit Agrawal
मथुरा के बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका, वंशजों ने सरकार पर बिना सहमति योजना थोपने का आरोप लगाया है।

मथुरा के प्राचीन श्री बांके बिहारी मंदिर को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। दरअसल यूपी सरकार ने मंदिर परिसर को भव्य बनाने और भीड़ नियंत्रण के लिए 500 करोड़ रुपये के कॉरिडोर प्रोजेक्ट को हरी झंडी दे दी है, लेकिन मंदिर के संचालन से जुड़े लोगों ने इसका जमकर विरोध किया है। जिसको लेकर स्वामी हरिदास गोस्वामी के वंशज देवेंद्र नाथ गोस्वामी सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए हैं और उनका कहना है कि "बिना मंदिर प्रबंधन की सहमति के यह प्रोजेक्ट अवैध है। अब सवाल यह है कि सरकार द्वारा कराए जा रहे विकास कार्य को आखिरकार वहां के लोगों का विरोध क्यों झेलना पड़ रहा है।

सुप्रीम कोर्ट में दलील देते हुए क्या बोले मंदिर के संचालक?

देवेंद्र नाथ गोस्वामी ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी याचिका पर जोर देते हुए कहा कि "मेरा परिवार पिछले 500 साल से इस मंदिर का संचालन कर रहा है।" उन्होंने आरोप लगाया कि यूपी सरकार ने मंदिर प्रबंधन को बिना बताए इस बड़े निर्माण कार्य को मंजूरी दे दी।

CJI डी.वाई. चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने इस मामले को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया है। गोस्वामी का कहना है कि "मंदिर की पारंपरिक संरचना और आध्यात्मिक वातावरण को नुकसान पहुंचेगा। साथ ही प्रश्न उठाया है कि क्या सरकार ने वास्तव में धार्मिक भावनाओं को नजरअंदाज करके यह फैसला लिया है?

500 करोड़ की योजना पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?

बता दें कि यूपी सरकार ने इस प्रोजेक्ट को "श्री बांके बिहारी मंदिर पुनर्विकास योजना" का नाम दिया है। इसके तहत मंदिर के आसपास पांच एकड़ जमीन खरीदी जाएगी और एक भव्य कॉरिडोर बनाया जाएगा, ताकि भक्तों की भीड़ को बेहतर ढंग से मैनेज किया जा सके। हालांकि, गोस्वामी ने याचिका में दावा किया है कि "इससे मंदिर की ऐतिहासिक और धार्मिक पहचान खतरे में पड़ जाएगी।" उनका कहना है कि सरकार ने मंदिर के ट्रस्टियों से भी कोई सलाह-मशविरा नहीं किया। कुल मिलाकर बड़ा सवाल यह है कि सरकार ने वास्तव में धार्मिक संस्थाओं की अनदेखी की है या फिर यह विरोध सिर्फ प्रशासनिक अधिकारों को लेकर एक ताकत की लड़ाई है।

हाईकोर्ट के आदेश को क्यों बदला सुप्रीम कोर्ट ने?

इससे पहले, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 8 नवंबर, 2023 को एक आदेश में यूपी सरकार की इस योजना को तो मंजूरी दे दी थी, लेकिन मंदिर की निधि के इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी। हालांकि, 15 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश में संशोधन करते हुए सरकार को मंदिर फंड का उपयोग करने की अनुमति दे दी।

अब देवेंद्र नाथ गोस्वामी ने इसी फैसले को चुनौती दी है। उनका कहना है कि "मंदिर का पैसा सरकार के हाथों में नहीं दिया जा सकता। अब देखना यह होगा कि आगे की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अपने ही पुराने फैसले को पलटेगा या नहीं।

क्या मंदिरों के प्रबंधन में सरकार का दखल सही है?

यह मामला सिर्फ 500 करोड़ के कॉरिडोर तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकार को मंदिरों के प्रबंधन में दखल देना चाहिए? एक तरफ सरकार का दावा है कि यह परियोजना भक्तों के हित में है, वहीं दूसरी तरफ मंदिर के पारंपरिक प्रबंधकों का कहना है कि "धार्मिक स्थलों की स्वायत्तता को बनाए रखना जरूरी है। अब सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना है कि मंदिर का विकास किसके हाथों में होगा – सरकार के या फिर धार्मिक संस्थाओं के? अगर सरकार जीतती है, तो क्या देश के अन्य मंदिरों में भी इसी तरह के हस्तक्षेप की शुरुआत होगी? जवाब जल्द ही सामने आएगा।

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