बांग्लादेश में जब आर्मी ने मांगा इस्तीफा तो बोली शेख हसीना, ‘मुझे गोली मार दो और बंगभवन में दफन कर दो’
2024 का साल बांग्लादेश की राजनीति में एक तूफान लेकर आया। दशकों से सत्ता में रहीं प्रधानमंत्री शेख हसीना को उस साल कुछ ऐसा झेलना पड़ा जिसकी कल्पना शायद किसी ने नहीं की थी। भारी विरोध प्रदर्शन, छात्रों का सड़कों पर उतरना, और अंततः सेना का हस्तक्षेप—इस सब ने मिलकर हसीना युग के अंत की पटकथा लिख दी।
तख्तापलट की एक रात और शेख हसीना की ऐतिहासिक प्रतिक्रिया
5 अगस्त 2024 की वो रात बांग्लादेश के इतिहास में हमेशा याद रखी जाएगी। Prothom Alo की रिपोर्ट के अनुसार, इंटरनेशनल क्राइम ट्रिब्यूनल के वकील मोहम्मद ताजुल इस्लाम ने कोर्ट में एक बड़ा खुलासा किया। जब सेना के शीर्ष अधिकारियों ने शेख हसीना को इस्तीफा देने को कहा, तो उनका जवाब था— "मुझे गोली मार दो और बंगभवन में दफन कर दो।" यह वाक्य शेख हसीना के राजनीतिक जीवन का आखिरी स्टैंड बन गया। इसके बाद उन्होंने पद छोड़ा और भारत में शरण ले ली।
मोहम्मद यूनुस की एंट्री: एक अंतरिम सरकार की शुरुआत
शेख हसीना के हटने के तुरंत बाद बांग्लादेश ने एक नया राजनीतिक चेहरा देखा—नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस। उन्हें अंतरिम सरकार का मुखिया नियुक्त किया गया, जो अस्थायी तौर पर देश का संचालन करने वाले थे। लेकिन यूनुस के नेतृत्व में बनी यह सरकार भी सवालों से घिर गई। छात्र, शिक्षक और सिविल सोसायटी लगातार विरोध में हैं। उनका कहना है कि लोकतंत्र की बहाली सिर्फ चेहरों से नहीं, नीयत और निष्पक्ष चुनाव से होगी।
सेना की रणनीति: जल्द चुनाव की मांग
शेख हसीना के जाने के बाद सेना ने देश की कमान संभाल ली, लेकिन उनकी मंशा स्पष्ट है—वो सत्ता में स्थायी रूप से नहीं रहना चाहते। इसी मकसद से सेना ने एक आपात बैठक बुलाई, जिसमें पांच लेफ्टिनेंट जनरल, आठ मेजर जनरल और अन्य शीर्ष सैन्य अधिकारी शामिल हुए। इस बैठक में निर्णय लिया गया कि देश में जल्द से जल्द आम चुनाव कराए जाएंगे, ताकि सेना बैरकों में लौट सके और देश लोकतांत्रिक ढर्रे पर लौटे।
राजनीतिक अस्थिरता के बीच लोकतंत्र की नई उम्मीद
हालांकि तख्तापलट के बाद से बांग्लादेश राजनीतिक रूप से अस्थिर है, लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि ये घटनाएं देश को एक नए लोकतांत्रिक अध्याय की ओर ले जा सकती हैं। जनता में बदलाव की मांग तेज है, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी बांग्लादेश की स्थिति पर नजर रखे हुए है।
क्या यह अंत है या नई शुरुआत?
शेख हसीना की सत्ता से विदाई, मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार, और सेना की त्वरित चुनाव की मांग—ये सभी घटनाएं बांग्लादेश को एक नाजुक लेकिन निर्णायक मोड़ पर खड़ा करती हैं। क्या यह देश के लिए लोकतंत्र की पुनर्प्राप्ति का समय है, या फिर अस्थिरता का एक और अध्याय? यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
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