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"भारत के पास बहुत पैसा है", ट्रंप ने भारत को दी जाने वाली अमेरिकी फंडिंग पर उठाए सवाल

प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि भारत के पास बहुत ज्यादा पैसा है, तो फिर अमेरिका उसे 21 मिलियन डॉलर की मदद क्यों दे?
12:41 PM Feb 19, 2025 IST | Vyom Tiwari

एलन मस्क के नेतृत्व वाला सरकारी दक्षता विभाग (DOGE) लगातार अमेरिका की एजेंसी यूएसएड (USAID) से जुड़ी अहम जानकारियां साझा कर रहा है। हाल ही में DOGE ने खुलासा किया था कि USAID ने भारत समेत कई देशों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता रोक दी है।

अब एक नई जानकारी सामने आई है कि अमेरिका भारत में चुनावों में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए फंडिंग कर रहा था। सवाल यह उठता है कि यह पैसा आखिर किसे दिया जाता था? रिपोर्ट्स के मुताबिक, अमेरिका हर साल भारत को 21 मिलियन डॉलर (करीब 182 करोड़ रुपए) देता था।

जब इस फंडिंग को लेकर पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से सवाल किया गया तो उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा— "हम भारत को 21 मिलियन डॉलर क्यों देंगे?"

भारत के पास बहुत पैसा, हम फंड क्यों दें: ट्रंप

फ्लोरिडा के मार-ए-लागो में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि भारत के पास बहुत पैसा है, तो फिर अमेरिका उसे 21 मिलियन डॉलर क्यों दे? उन्होंने इसे समझ से परे बताया। ट्रंप ने यह भी कहा कि भारत दुनिया के उन देशों में से एक है, जहां सबसे ज्यादा टैक्स लगाए जाते हैं। उन्होंने शिकायत की कि अमेरिकी व्यापारियों के लिए भारत में व्यापार करना मुश्किल है क्योंकि वहां के टैरिफ बहुत ऊंचे हैं। हालांकि, ट्रंप ने यह भी साफ किया कि वे भारत और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बहुत सम्मान करते हैं, जो कुछ दिन पहले ही अमेरिका दौरे से लौटे हैं।

USAID की फंडिंग का क्या है कारण?  

अमेरिका ने भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के लिए चल रहे 21 मिलियन डॉलर के कार्यक्रम में कटौती करने का फैसला किया है। यह जानकारी हाल ही में DOGE ने दी।

DOGE के मुताबिक, अमेरिकी सरकार अपने खर्चों में कटौती कर रही है, जिसके चलते भारत को मिलने वाली यह राशि भी बंद की जा रही है। अमेरिका यह पैसा इसलिए देता था ताकि भारतीय चुनावों में ज्यादा से ज्यादा लोग मतदान करें और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में उनकी भागीदारी बढ़े।

पीएम मोदी के सलाहकार संजीव सान्याल ने लगाया आरोप 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सलाहकार संजीव सान्याल ने भारत को दी जाने वाली फंडिंग पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने अमेरिकी एजेंसी USAID को "मानव इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला" बताया है।

सान्याल ने पूछा कि भारत में मतदान प्रतिशत बढ़ाने के नाम पर 21 मिलियन डॉलर और बांग्लादेश में राजनीतिक माहौल सुधारने के लिए 29 मिलियन डॉलर किसे दिए गए? उन्होंने यह भी कहा कि नेपाल में राजकोषीय संघवाद (Fiscal Federalism) के लिए खर्च किए गए 29 मिलियन डॉलर का तो जिक्र ही नहीं हो रहा।

USAID अलग-अलग देशों में संस्थाओं को फंडिंग देती थी, लेकिन अब इसमें कटौती की जा रही है।

फंडिंग को लेकर सेकीं जा रही राजनैतिक रोटियां

BJP ने चुनावी फंडिंग पर उठाए सवाल, अमित मालवीय ने किया विरोध

BJP नेता अमित मालवीय ने भारत में चुनावी प्रक्रिया में बाहरी फंडिंग को लेकर सवाल उठाए हैं। उन्होंने X (पहले ट्विटर) पर पोस्ट कर कहा कि भारत के चुनाव में 182 करोड़ रुपए (21 मिलियन डॉलर) वोटर टर्नआउट बढ़ाने के लिए दिए गए? उन्होंने इसे भारत की चुनावी प्रक्रिया में बाहरी दखल बताया और पूछा कि इस फंड से आखिर किसे फायदा होगा। उन्होंने जोर देकर कहा कि BJP को तो इससे कोई फायदा नहीं मिलने वाला।

इसके अलावा, एक दूसरी पोस्ट में अमित मालवीय ने कांग्रेस और जॉर्ज सोरोस पर भारतीय चुनावों में दखल देने का आरोप लगाया। उन्होंने सोरोस को गांधी परिवार का करीबी सहयोगी बताया और कहा कि 2012 में जब एसवाई कुरैशी चुनाव आयोग के प्रमुख थे, तब आयोग ने इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स (IFES) के साथ एक समझौता (MoU) किया था।

मालवीय ने दावा किया कि यह संस्था जॉर्ज सोरोस के ओपन सोसाइटी फाउंडेशन से जुड़ी हुई है और इसे मुख्य रूप से USAID से फंडिंग मिलती है। उनके अनुसार, इससे भारतीय चुनावों में बाहरी ताकतों का असर बढ़ सकता है, जो चिंताजनक है।

भाजपा प्रवक्ता का दावा, पूर्व चुनाव आयुक्त ने किया खंडन

भाजपा प्रवक्ता की एक पोस्ट में पूर्व चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी, कांग्रेस और अरबपति जॉर्ज सोरोस पर आरोप लगाए गए। इस पर एस.वाई. कुरैशी ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा कि ये दावे पूरी तरह गलत हैं।

कुरैशी बोले- कोई सच्चाई नहीं

कुरैशी ने स्पष्ट किया, "2012 में जब मैं मुख्य चुनाव आयुक्त था, उस समय अमेरिकी एजेंसी द्वारा भारत में मतदाता भागीदारी बढ़ाने के लिए करोड़ों डॉलर की फंडिंग की खबरें पूरी तरह गलत थीं। इनमें रत्ती भर भी सच्चाई नहीं है।"

उन्होंने बताया कि उनके कार्यकाल में IFES (इंटरनेशनल फाउंडेशन फॉर इलेक्टोरल सिस्टम्स) के साथ एक समझौता (MoU) साइन हुआ था। चुनाव आयोग ने इसी तरह के समझौते कई अन्य एजेंसियों और चुनाव प्रबंधन संस्थाओं के साथ भी किए थे, जो सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा था।

यह समझौता इसलिए किया गया था ताकि चुनाव आयोग के ट्रेनिंग और रिसोर्स सेंटर, इंडिया इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डेमोक्रेसी एंड इलेक्शन मैनेजमेंट (IIIDEM) में दूसरे देशों को चुनाव प्रबंधन की ट्रेनिंग दी जा सके।

पूर्व चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने बताया कि इस समझौते (MoU) में यह साफ तौर पर लिखा था कि किसी भी पक्ष पर कोई वित्तीय या कानूनी जिम्मेदारी नहीं होगी। यह शर्त समझौते में दो अलग-अलग जगहों पर दर्ज की गई थी, ताकि किसी भी तरह की गलतफहमी न हो। उन्होंने यह भी कहा कि इस समझौते से किसी भी तरह की धनराशि जुड़ी होने की बात पूरी तरह गलत है।

दरअसल, MoU (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) दो या दो से अधिक पक्षों के बीच एक समझौता होता है, जिसमें साझा उद्देश्यों को लेकर कार्य योजना बनाई जाती है और साथ मिलकर काम करने की शर्तें तय की जाती हैं।

बांग्लादेश को मिलने वाली फंडिंग रोकी गई

DoGE की जारी लिस्ट में बांग्लादेश को मिलने वाले 251 करोड़ रुपए की फंडिंग भी शामिल है। यह पैसा वहां के राजनीतिक माहौल को मजबूत करने के लिए दिया जा रहा था।

फंडिंग ऐसे समय में रोकी गई है, जब बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार को गिराने में अमेरिका के डीप स्टेट की भूमिका पर शक जताया जा रहा है। मोदी की अमेरिका यात्रा के दौरान जब डोनाल्ड ट्रम्प से इस बारे में सवाल किया गया, तो उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन में अमेरिका का कोई हाथ नहीं है।

ट्रम्प ने कहा,

यह साफ नहीं है कि ट्रम्प किस भारतीय पहल का जिक्र कर रहे थे। इसके बाद PM मोदी और ट्रम्प मिले और उन्होंने बांग्लादेश की स्थिति पर चर्चा की।

 

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