तुलबुल प्रोजेक्ट: जिस पर आमने-सामने आए उमर और महबूबा, भारत के लिए क्यों है गेमचेंजर – और क्यों फंसी है पाकिस्तान की सांस?
What is Tulbul Project: जम्मू-कश्मीर की सियासत में एक बार फिर तुलबुल नेविगेशन प्रोजेक्ट हंगामे का केंद्र बन गया है। पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती और पूर्व सीएम उमर अब्दुल्ला के बीच इस मुद्दे पर तीखी जुबानी जंग छिड़ गई है। विवाद तब शुरू हुआ जब उमर ने सिंधु जल संधि (IWT) के निलंबन के बाद तुलबुल प्रोजेक्ट पर फिर से काम शुरू करने की वकालत की। महबूबा ने इसे "भड़काऊ" बताकर खारिज कर दिया, तो उमर ने उन पर "पाकिस्तान को खुश करने की कोशिश" का आरोप लगा दिया। लेकिन यह सिर्फ राजनीतिक विवाद नहीं, बल्कि भारत के लिए रणनीतिक और आर्थिक महत्व का वह प्रोजेक्ट है, जिससे पाकिस्तान की नींद उड़ी हुई है।
पाकिस्तान की चिंता क्यों बढ़ा रहा है तुलबुल प्रोजेक्ट?
पाकिस्तान को डर है कि यह प्रोजेक्ट झेलम का पानी रोककर उसके हिस्से का जल प्रवाह कम कर देगा। उसका आरोप है कि भारत 0.3 मिलियन एकड़ फीट पानी रोकने की योजना बना रहा है। हालांकि, भारत का कहना है कि यह नॉन-कंजम्पटिव यूज (पानी की खपत न करने वाला) है और संधि के तहत इजाजत है। विशेषज्ञों के मुताबिक, पाकिस्तान का विरोध नीति नहीं, राजनीति है, क्योंकि उसे अब तक कोई सबूत नहीं मिला कि इससे उसके हिस्से के पानी पर असर पड़ेगा।
भारत के लिए क्यों जरूरी है यह प्रोजेक्ट?
तुलबुल प्रोजेक्ट, जिसे वुलर बैराज भी कहा जाता है, झेलम नदी के मुहाने पर बनाया जाना है। इसका मकसद है:
रणनीतिक फायदा: पाकिस्तान को जल संसाधनों पर दबाव बनाने का मौका।
नौवहन को बढ़ावा: सर्दियों में जब पानी कम हो जाता है, तब भी नाविक यातायात चालू रखना।
बाढ़ नियंत्रण: वुलर झील के जलस्तर को नियंत्रित करके निचले इलाकों को बाढ़ से बचाना।
जल संरक्षण: कश्मीर घाटी में पानी की कमी को दूर करना।
वहीं 1987 में शुरू हुआ यह प्रोजेक्ट पाकिस्तान के विरोध की वजह से ठप पड़ा था। पाक का दावा है कि यह सिंधु जल संधि का उल्लंघन है, जबकि भारत कहता है कि यह सिर्फ जल प्रवाह नियंत्रण का मामला है।
क्या अब भारत तुलबुल प्रोजेक्ट को तेजी से आगे बढ़ाएगा?
पहलगाम आतंकी हमले के बाद सिंधु जल संधि को निलंबित करने के भारत के फैसले ने इस प्रोजेक्ट को नई जिंदगी दे दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि अब भारत "पानी को हथियार" की तरह इस्तेमाल कर सकता है। हालांकि, कश्मीर में राजनीतिक एकराय नहीं है कि महबूबा जैसे नेता इसे "खतरनाक" बता रहे हैं, जबकि केंद्र सरकार इसे रणनीतिक जीत के तौर पर देखती है।
कश्मीर का भविष्य या पाकिस्तान की मजबूरी?
तुलबुल प्रोजेक्ट अब सिर्फ एक इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट नहीं, बल्कि भारत-पाक जल युद्ध का प्रतीक बन चुका है। अगर भारत इसे पूरा कर लेता है, तो यह पाकिस्तान की जल सुरक्षा के लिए बड़ा झटका होगा। लेकिन कश्मीर की राजनीति में इस पर सहमति बनना अभी मुश्किल लग रहा है। एक तरफ जहां उमर अब्दुल्ला इसे "कश्मीर के विकास की चाबी" बता रहे हैं, वहीं महबूबा मुफ्ती इसे "अस्थिरता का कारण" मानती हैं। फिलहाल, यह प्रोजेक्ट भारत की जल कूटनीति की सबसे बड़ी परीक्षा बन गया है।
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