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अफगानिस्तान की CPEC में एंट्री से क्यों बढ़ी भारत की चिंता? जानिए क्या है पूरा मामला...

तालिबान का CPEC में शामिल होना भारत की संप्रभुता पर खतरा, सामरिक घेराबंदी की आशंका। अफगान-पाक-चीन तिकड़ी बना रही नया दबाव।
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अफगानिस्तान का चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) में शामिल होना भारत के लिए सिरदर्द बन गया है। तालिबान का इस डील में कूदना नई दिल्ली के लिए किसी सदमे से कम नहीं। जिस कॉरिडोर को भारत हमेशा से अपनी संप्रभुता पर हमला मानता रहा, अब उसमें तालिबान का साथ आना चिंता को और गहरा रहा है। बीजिंग में हाल ही में चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के विदेश मंत्रियों की तिकड़ी ने CPEC को अफगानिस्तान तक विस्तार देने का फैसला किया, जिसने भारत की नींद उड़ा दी। यह सिर्फ आर्थिक गलियारा नहीं, बल्कि भारत को घेरने की सामरिक चाल है। खासकर तब, जब भारत ने तालिबान से रिश्ते सुधारने की कोशिश शुरू ही की थी। आइए, समझते हैं कि यह भारत के लिए क्यों मुसीबत की घंटी है।

CPEC क्या है?

दरअसल चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा है, जिसे 2013 में शी जिनपिंग ने शुरू किया। यह 3000 किमी लंबा कॉरिडोर चीन के काशगर से पाकिस्तान के ग्वादर तक जाता है। 62 अरब डॉलर के इस प्रोजेक्ट में हाईवे, रेलवे, पाइपलाइन और ऑप्टिकल केबल नेटवर्क बन रहे हैं। सितंबर 2024 तक फेज-1 के 38 प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं, और फेज-2 में 26 प्रोजेक्ट पाइपलाइन में हैं।

भारत के लिए क्यों है खतरे की घंटी?

CPEC का रास्ता पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, जिसे भारत अपना हिस्सा मानता है। भारत ने बार-बार कहा है कि बिना उसकी सहमति के PoK में कोई प्रोजेक्ट नहीं बन सकता। फिर भी, चीन और पाकिस्तान इस कॉरिडोर को तेजी से बढ़ा रहे हैं। अब अफगानिस्तान का शामिल होना भारत के लिए खतरे की घंटी है।

यह न केवल भारत की संप्रभुता को चुनौती देता है, बल्कि PoK पर पाकिस्तान के अवैध दावों को भी मजबूती देता है। भारत का डर यह है कि CPEC का विस्तार क्षेत्रीय स्थिरता को बिगाड़ सकता है। खासकर, जब तालिबान और पाकिस्तान के बीच रिश्ते बेहतर होने की संभावना बढ़ रही है।

तालिबान के साथ जाने से क्या बदलेगा?

अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच पहले से तनाव रहा है, खासकर तहरीक-ए-तालिबान (TTP) को लेकर। लेकिन CPEC में अफगानिस्तान के शामिल होने से दोनों के रिश्ते सुधर सकते हैं। यह भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि अतीत में अफगानिस्तान जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों का ठिकाना रहा है। अगर तालिबान और पाकिस्तान मिलकर भारत के खिलाफ आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दें, तो यह भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन सकता है। खासकर, जब चीन भी इस गठजोड़ को आर्थिक और सामरिक समर्थन दे रहा हो।

चीन के लिए क्यों महत्वपूर्ण है ये प्रोजेक्ट?

चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत CPEC उसका महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है। अफगानिस्तान का इसमें शामिल होना चीन को मध्य एशिया तक पहुंच देगा, साथ ही अफगानिस्तान के खनिज और तेल संसाधनों पर उसकी पकड़ मजबूत होगी।

वहीं भारत के लिए यह चिंता इसलिए बड़ी है, क्योंकि उसके ज्यादातर पड़ोसी जैसे नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव—पहले से ही BRI का हिस्सा हैं। भूटान भी कई बार चीन की ओर झुकता दिखा है। ऐसे में अफगानिस्तान का CPEC में शामिल होना भारत को और अलग-थलग करने की चीनी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है।

क्या है तालिबान की मजबूरी?

अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था युद्ध और प्रतिबंधों के कारण काफ़ी बदहाल है। 2022 में अफीम की खेती पर प्रतिबंध ने इसे और कमजोर किया। CPEC में शामिल होकर तालिबान को चीन से आर्थिक मदद और अंतरराष्ट्रीय मंच पर समर्थन की उम्मीद है। लेकिन यह भारत के लिए दोहरी मार है। एक तरफ, भारत ने तालिबान से रिश्ते सुधारने की कोशिश की थी, जैसा कि 16 मई को विदेश मंत्री जयशंकर और तालिबान के विदेश मंत्री की बातचीत से जाहिर हुआ। दूसरी तरफ, तालिबान का चीन और पाकिस्तान के साथ जाना भारत की कूटनीतिक कोशिशों पर पानी फेरता है। भारत अब अपने पड़ोसियों को साथ रखने के लिए अरबों डॉलर की मदद देता है, लेकिन चीन की रणनीति उसे हर मोर्चे पर चुनौती दे रही है।

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