अमेरिका में थरूर के जर्नलिस्ट बेटे ने पूछे तीखे सवाल, जानिए कैसे बेटे ईशान को ज़बाब देते नज़र आए कांग्रेस सांसद?
न्यूयॉर्क के एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस नेता शशि थरूर जब भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति को समझा रहे थे, तब अचानक सामने से एक चेहरे ने उन्हें चौंका दिया। वह चेहरा कोई और नहीं, बल्कि उनके अपने बेटे ईशान थरूर का था, जो वाशिंगटन पोस्ट के रिपोर्टर के तौर पर सवाल पूछने खड़े हो गए। पिता ने मुस्कुराते हुए कहा कि इसे सवाल पूछने की इजाजत नहीं देनी चाहिए, यह मेरा बेटा है!" लेकिन बेटे ने बिना झिझक अपना पत्रकारीय धर्म निभाया और ऑपरेशन सिंदूर पर ऐसा सवाल दागा, जिसने पूरे माहौल को ही बदल दिया।
पहलगाम हमले को लेकर ईशान ने क्या पूछा?
ईशान थरूर ने अपने पिता से पूछा कि "भारत के इस राजनयिक दौरे के दौरान क्या किसी पश्चिमी देश ने आपसे पहलगाम हमले में पाकिस्तान की भूमिका के सबूत मांगे? क्योंकि पाकिस्तान लगातार इस हमले से इनकार कर रहा है।" यह सवाल सुनकर वहां मौजूद लोग हैरान रह गए, लेकिन शशि थरूर ने बड़ी ही शालीनता से जवाब दिया। उन्होंने कहा कि "किसी ने सबूत नहीं मांगे, क्योंकि पाकिस्तान के मामले में दुनिया को उसके 'मोडस ऑपरेंडी' पर भरोसा है।"
शशि थरूर ने कैसे दिया ज़बाब?
शशि थरूर ने अपने जवाब में तीन मजबूत तर्क दिए। पहला, पाकिस्तान का 37 साल पुराना रिकॉर्ड, जहां वह हमला करता है और फिर इनकार कर देता है। दूसरा, उन्होंने ओसामा बिन लादेन के उदाहरण से अमेरिकी मीडिया को याद दिलाया कि कैसे पाकिस्तान ने दुनिया के सबसे बड़े आतंकी को अपने सैन्य कैंप के पास पनाह दी थी। तीसरा, उन्होंने 26/11 के मुंबई हमले का जिक्र करते हुए कहा कि पाकिस्तान ने उस वक्त भी अपनी भूमिका से इनकार किया था, लेकिन दुनिया जानती है कि सच क्या है।"
बेटे के सवाल पर और क्या बोले थरूर?
ईशान के सवाल के जवाब में शशि थरूर ने साफ किया कि भारत ने बिना मजबूत सबूतों के कोई कार्रवाई नहीं की। उन्होंने कहा कि पहलगाम हमला कोई सामान्य आतंकी घटना नहीं थी। इसमें लोगों को उनके धर्म के आधार पर चुन-चुनकर मारा गया। यह एक अर्धसैनिक ऑपरेशन था, और इसकी प्रतिक्रिया भी सैन्य स्तर की ही होनी चाहिए थी।" थरूर ने यह भी जोड़ा कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी बात रखने के लिए इस तरह के आउटरीच कार्यक्रम शुरू किए हैं, ताकि दुनिया आतंकवाद के खिलाफ भारत के रुख को समझ सके।
पिता-पुत्र की बहस से उठा बड़ा सवाल
यह घटना सिर्फ एक पिता और पुत्र के बीच की बहस नहीं, बल्कि दो पेशों के बीच का टकराव है। एक तरफ एक पिता, जो एक राजनेता के तौर पर देश की नीतियों का बचाव कर रहा है, और दूसरी तरफ एक पुत्र, जो एक पत्रकार के तौर पर सच्चाई को उजागर करने की कोशिश कर रहा है। सवाल यह है कि क्या ईशान थरूर का सवाल पूछना उनकी पत्रकारिता की ईमानदारी थी, या फिर एक पिता के सामने बेटे का सवाल उठाना अनुचित था? वहीं, शशि थरूर का जवाब भारत की आतंकवाद विरोधी नीति को मजबूती से रखता है, लेकिन क्या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के खिलाफ सबूतों की कमी भारत के लिए चुनौती बन सकती है? यह घटना एक बड़ी बहस को जन्म देती है कि जब रिश्ते और पेशा आमने-सामने आते हैं, तो किसे प्राथमिकता दी जाए?
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