शांति की ओर पुतिन का बड़ा कदम, रूस ने यूक्रेन को दी सीधी बातचीत की पेशकश
दुनिया दो साल से ज्यादा वक्त से रूस और यूक्रेन के बीच चले आ रहे खूनी संघर्ष की गवाह बन चुकी है। लेकिन अब, जब इस युद्ध ने हजारों जिंदगियों को लील लिया और वैश्विक राजनीति को हिला कर रख दिया है, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 'शांति की पहल' करते हुए एक बड़ा ऐलान किया है। पुतिन ने कहा है कि रूस 15 मई को इस्तांबुल में यूक्रेन के साथ सीधी बातचीत के लिए तैयार है – और यह बातचीत किसी दिखावे के लिए नहीं, बल्कि संघर्ष की जड़ में छिपे कारणों को सुलझाने और स्थायी समाधान खोजने के लिए होगी।
पुतिन बोले – बिना शर्त बातचीत को तैयार हैं
रविवार को दिए गए बयान में पुतिन ने दो टूक कहा कि हम फिर से बिना किसी पूर्व शर्त के सीधी वार्ता शुरू करने का प्रस्ताव रखते हैं। उन्होंने 2022 में इस्तांबुल में हुई पहली बातचीत का जिक्र करते हुए दावा किया कि उस समय वार्ता यूक्रेन ने तोड़ी थी, रूस ने नहीं। अब एक बार फिर रूस ने कूटनीतिक रास्ता अपनाने की पेशकश की है।
वार्ता का मंच होगा इस्तांबुल
पुतिन ने प्रस्ताव दिया कि 15 मई को इस्तांबुल में वार्ता हो सकती है। उन्होंने कहा कि हम यूक्रेन को उन्हीं शर्तों पर बातचीत का न्योता दे रहे हैं, जो वह खुद चाहता था। अब फैसला कीव और उसके समर्थकों – खासकर पश्चिमी देशों – पर है। पुतिन ने यह भी आरोप लगाया कि यूक्रेनी नेतृत्व शांति से ज़्यादा अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से प्रेरित है।
यूरोप की चेतावनी – 30 दिन में फैसला लो वरना प्रतिबंध झेलो
वहीं यूरोपीय देशों और अमेरिका की ओर से भी अब दबाव बनना शुरू हो गया है। पश्चिमी देशों ने रूस से 30 दिनों के अंदर युद्धविराम लागू करने की मांग की है और चेतावनी दी है कि ऐसा न होने पर रूस को नए आर्थिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। डोनाल्ड ट्रंप, जो अब खुद को ‘शांति निर्माता’ के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, उन्होंने भी रूस-यूक्रेन में युद्ध खत्म करने की बात कही और इस संघर्ष को 'छद्म युद्ध' करार दिया – यानी अमेरिका और रूस के बीच अप्रत्यक्ष टकराव।
बाइडेन और पश्चिम का विरोध, पुतिन की नई चाल
जहां जो बाइडेन, यूरोपीय नेता और यूक्रेन इस युद्ध को पुतिन की साम्राज्यवादी सोच का परिणाम बताते रहे हैं, वहीं पुतिन इसे पश्चिमी देशों द्वारा रूस की ऐतिहासिक और रणनीतिक बेइज्जती बताते हैं। पुतिन का दावा है कि 1991 में सोवियत संघ के विघटन और उसके बाद नाटो का विस्तार – खासकर यूक्रेन में – हमारे लिए सीधा अपमान था।
क्या वाकई बातचीत से खत्म होगा युद्ध?
रूस की इस पहल को जहां कुछ विशेषज्ञ राजनयिक चाल मानते हैं, वहीं कुछ इसे शांति की उम्मीद की नई किरण कह रहे हैं। सवाल यह है कि क्या यूक्रेन और पश्चिमी देश इस प्रस्ताव को ईमानदारी से लेंगे, या इसे पुतिन की रणनीतिक चाल समझ कर फिर से नकार देंगे? अगर बातचीत होती है तो यह केवल रूस-यूक्रेन की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की राहत का कारण बन सकती है।
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