5 रुपये का बिस्किट, 2500 में क्यों बिक रहा? गाजा में पारले-G के दाम सुनकर उड़ जाएंगे होश!
गाजा की त्रासदी में एक छोटा सा पारले-जी बिस्किट अब मानवीय संकट की बड़ी कहानी बन चुका है। भारत में जहां यह बिस्किट 5-10 रुपये में मिलता है, वहीं गाजा के बाजारों में यह 2,300 रुपये से अधिक कीमत पर बिक रहा है। यह सवाल उठाता है कि आखिर युद्ध और भूख के बीच फंसे लोगों की जरूरतें किस तरह कुछ लोगों के लिए मुनाफे का सौदा बन जाती हैं? एक वायरल वीडियो में फिलिस्तीनी पिता मोहम्मद जवाद अपनी बेटी रफीफ को यह बिस्किट खिलाते दिख रहे हैं, जिसकी कीमत अब 147 रुपये से बढ़कर 2,347 रुपये हो गई है। यह सिर्फ एक बिस्किट की कीमत नहीं, बल्कि गाजा में चल रहे संकट का आईना है।
पारले-जी बिस्किट की कीमत में इतना उछाल क्यों?
दरअसल, पारले-जी जैसे बिस्किट आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय सहायता के तौर पर गाजा पहुंचते हैं, लेकिन वहां यह सीधे जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पाते। रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह "एक्सपोर्ट पैक" होते हैं, जिन पर कोई मूल्य नहीं छपा होता।
संभवतः यह सामान राहत सामग्री के साथ गाजा पहुंचा, लेकिन कुछ दुकानदारों ने इसे काले बाजार में बेचना शुरू कर दिया। गाजा में खाद्य पदार्थों की भारी कमी और लूटपाट के चलते ऐसी चीजें अकूत कीमत पर बिकने लगती हैं। जो बिस्किट भारत में बच्चों की मुट्ठी में आसानी से आ जाता है, वह गाजा में एक विलासिता बन गया है।
इजरायल की नाकेबंदी और हमास का शक: क्यों रुकी है राहत?
गाजा में खाद्य संकट की जड़ें इजरायल की सख्त नाकेबंदी में हैं। 2 मार्च को इजरायल ने गाजा में जाने वाली राहत सामग्री पर पूरी तरह रोक लगा दी थी, जिसके बाद भुखमरी की स्थिति और गंभीर हो गई। इजरायल का आरोप है कि हमास राहत सामग्री को हाईजैक कर अपने लिए इस्तेमाल करता है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, गाजा की 20 लाख आबादी अब पूरी तरह बाहरी मदद पर निर्भर है, लेकिन जो सहायता पहुंच रही है, वह नाकाफी है। इसी अराजकता में पारले-जी जैसी छोटी चीजें भी महंगे सौदे में तब्दील हो जाती हैं।
क्या फिलिस्तीन को और बिस्किट भेजे जा सकते हैं?
वायरल वीडियो के बाद भारतीय सोशल मीडिया पर फिलिस्तीन को और सहायता भेजने की मांग उठने लगी है। एक यूजर ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर से पूछा कि क्या हम फिलिस्तीन को और पारले-जी भेज सकते हैं? यह छोटे बिस्किट वहां के लोगों को राहत देंगे।" हालांकि, सवाल यह भी है कि क्या यह सहायता वास्तव में जरूरतमंदों तक पहुंच पाएगी, या फिर काले बाजार में बिक जाएगी? भारत ने अब तक इस संघर्ष में तटस्थ रुख अपनाया है, लेकिन इस तरह की घटनाएं मानवीय सहायता के वितरण में पारदर्शिता की मांग को और बढ़ा देती हैं।
बिस्किट की कीमत या इंसानियत?
गाजा में पारले-जी की कीमत सिर्फ एक बिस्किट का मूल्य नहीं, बल्कि युद्ध की विभीषिका का प्रतीक है। जहां एक तरफ एक पिता अपनी बेटी की मुस्कान के लिए 2,300 रुपये खर्च करने को मजबूर है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों के लिए यह संकट मुनाफे का जरिया बन गया है। सवाल यह है कि क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय गाजा में राहत सामग्री के वितरण को सुनिश्चित कर पाएगा? या फिर पारले-जी जैसी छोटी खुशियां भी युद्ध के बाजार में सिर्फ उन्हीं तक सीमित रह जाएंगी, जो इसे खरीद सकते हैं? जब तक गाजा में शांति नहीं होगी, तब तक 5 रुपये का बिस्किट वहां 2500 रुपये का ही बिकता रहेगा।
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