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एक–एक कर उड़ गईं 3 गाड़ियां, 32 जवान हो गए ढेर...पाक सेना पर हुए अब तक के सबसे बड़े हमले की पूरी कहानी...

बलूचिस्तान में धमाका, 32 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। भारत विरोधी आतंक अब पाकिस्तान की मुसीबत बना। हमला बलूच विद्रोह या ISI साज़िश?
05:00 PM May 25, 2025 IST | Rohit Agrawal
बलूचिस्तान में धमाका, 32 पाकिस्तानी सैनिक मारे गए। भारत विरोधी आतंक अब पाकिस्तान की मुसीबत बना। हमला बलूच विद्रोह या ISI साज़िश?

पाकिस्तानी सेना के काफिले पर हुए उस हमले ने एक बार फिर साबित कर दिया कि जिस आतंकवाद के सहारे पाकिस्तान ने दशकों तक भारत को निशाना बनाया, वही अब उसके अपने गले का फंदा बन चुका है। दरअसल, बलूचिस्तान के खुजदार इलाके में कराची-क्वेटा हाईवे पर हुए भीषण विस्फोट में 32 पाकिस्तानी सैनिकों की मौत और दर्जनों के घायल होने की खबर है। हालांकि अभी तक यह साफ़ नहीं है कि यह हमला किसने किया? लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या यह बलूच अलगाववादियों का काम है या फिर पाकिस्तान के ही पालतू आतंकी संगठनों का?

कैसे 3 धमाकों ने उड़ा दिया पाक सेना का काफिला?

हमले की रणनीति ने पाकिस्तानी सेना की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी। एक खड़ी कार में प्लांट किए गए विस्फोटक (VBIED) ने तब धमाका किया जब पाकिस्तानी सेना का आठ वाहनों का काफिला उसके पास से गुजरा। तीन वाहन सीधे धमाके की चपेट में आए, जिनमें एक बस भी शामिल थी जिसमें सैनिकों के परिवार के सदस्य सवार थे। यह तरीका आतंकी संगठनों द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला क्लासिक मॉड्यूल ऑपरेंडी है, लेकिन सवाल यह है कि पाकिस्तानी सेना इतनी बड़ी सुरक्षा चूक कैसे होने दे सकती है?

किसने किया हमला?

अभी तक किसी भी आतंकी संगठन ने इस हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है, लेकिन बलूचिस्तान में सक्रिय बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) और बलूच रिपब्लिकन आर्मी (BRA) पर शक जताया जा रहा है। ये गुट पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लंबे समय से सशस्त्र संघर्ष कर रहे हैं। लेकिन एक और चौंकाने वाला सिद्धांत यह भी है कि क्या यह हमला पाकिस्तानी एजेंसियों के भीतर हुए झगड़े का नतीजा है? कई रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि पाकिस्तानी सेना के भीतर ही कुछ गुट बलूचिस्तान की स्वायत्तता के पक्षधर हैं, और यह हमला उनकी ही साजिश हो सकती है।

घटना को छुपा क्यों रही है पाकिस्तानी सेना ?

पाकिस्तानी प्रशासन और सेना ने हमेशा की तरह इस घटना को भी छुपाने और तोड़-मरोड़कर पेश करने की कोशिश की है। आंतरिक सूत्रों के मुताबिक, पाकिस्तानी अधिकारी इस हमले को "स्कूल बस पर हमला" बताकर अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति हासिल करने की फिराक में हैं।

लेकिन सच यह है कि यह हमला सीधे तौर पर पाकिस्तानी सेना के काफिले पर हुआ था, जिसमें ज्यादातर पीड़ित सैनिक ही थे। यह पाकिस्तान की उसी पुरानी रणनीति का हिस्सा है, जिसमें वह अपनी आंतरिक विफलताओं को छुपाने के लिए झूठे नैरेटिव गढ़ता रहा है।

क्या पाकिस्तान अब अपने ही बनाए जाल में फंस चुका है?

पाकिस्तान ने दशकों तक आतंकवाद को "स्ट्रेटेजिक एसेट" के रूप में इस्तेमाल किया, लेकिन अब वही आतंकवाद उसके अपने घर में सेंध लगा रहा है। बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा और सिंध में सैन्य ठिकानों, पुलिस थानों और अब सीधे काफिलों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। यह साफ संकेत है कि पाकिस्तान अब "आतंक के बूते पर राज" की नीति की कीमत चुका रहा है। अगर पाकिस्तान ने जल्द ही अपनी रणनीति नहीं बदली, तो आने वाले दिनों में ऐसे हमले और भी बढ़ सकते हैं।

क्या पाकिस्तान की सेना अब अपने ही देश में सुरक्षित नहीं?

यह हमला सिर्फ 32 सैनिकों की मौत की दुखद घटना नहीं है, बल्कि पाकिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की विफलता का प्रतीक है। जिस देश की सेना ने आतंकवाद को हथियार बनाया, आज वही सेना उसी आतंकवाद के सामने बेबस नजर आ रही है। अब सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान इस सच को स्वीकार करेगा या फिर झूठ के सहारे अपनी छवि बचाने की कोशिश करता रहेगा? एक बात तय है। जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देता रहेगा, तब तक उसकी अपनी सुरक्षा भी खतरे में ही रहेगी।

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