न्यूजीलैंड की संसद में अपना ही न्यूड फोटो दिखाकर सनसनी फैलाने वाली सांसद का मकसद क्या था?
न्यूजीलैंड की संसद में एक ऐसा मंजर देखने को मिला जिसने सभी को हैरान कर दिया। ACT पार्टी की सांसद लॉरा मैकक्लर ने बहस के दौरान अपनी ही न्यूड तस्वीर सदन में दिखाई, लेकिन असल मायने में यह तस्वीर असली नहीं थी। यह AI द्वारा जेनरेट की गई एक डीपफेक इमेज थी, जिसे उन्होंने महज पांच मिनट में ऑनलाइन टूल की मदद से बनवाया था। सवाल यह है कि एक सांसद ने ऐसा चौंकाने वाला कदम क्यों उठाया? क्या यह सिर्फ एक प्रोपोगैंडा था या फिर डिजिटल दुनिया में बढ़ रहे खतरों की ओर ध्यान खींचने की कोशिश?
5 मिनट में बन सकती है किसी की भी न्यूड इमेज!
लॉरा मैकक्लर ने संसद में अपनी AI जेनरेटेड न्यूड तस्वीर दिखाकर एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने एक साधारण गूगल सर्च के जरिए मिली वेबसाइट पर महज पांच मिनट में अपनी यह तस्वीर बनवाई। उनका मकसद साफ था..यह दिखाना कि आज के दौर में किसी की भी नकली अश्लील तस्वीर बनाना कितना आसान हो गया है। डीपफेक टेक्नोलॉजी के इस दुरुपयोग से न केवल सामान्य लोग बल्कि सेलेब्रिटीज और राजनेता भी अछूते नहीं हैं। मैकक्लर ने चेतावनी दी कि अगर इस पर जल्द कानून नहीं बनाया गया, तो यह समस्या और विकराल रूप ले सकती है।
🇳🇿 MP HOLDS UP AI-NUDE OF HERSELF IN PARLIAMENT TO FIGHT DEEPFAKES
New Zealand politician Laura McClure held up an AI-generated nude of herself in Parliament to push a law against fake explicit images.
She made it at home to show how easy it is to create deepfakes that can ruin… pic.twitter.com/G74KLOoh7o
— Mario Nawfal (@MarioNawfal) June 2, 2025
युवतियों को टारगेट करने वाले डीपफेक पोर्न पर न्यूजीलैंड का कानून?
न्यूजीलैंड में फिलहाल डीपफेक कंटेंट को रेगुलेट करने वाला कोई विशेष कानून नहीं है। मैकक्लर ने इसी कानूनी खामी को उजागर करने के लिए यह बोल्ड कदम उठाया। उन्होंने संसद में 'डीपफेक डिजिटल हार्म एंड एक्सप्लॉयटेशन बिल' का समर्थन करते हुए कहा कि इसे जल्द से जल्द पास किया जाना चाहिए। इस बिल के तहत बिना सहमति के किसी की डीपफेक तस्वीर या वीडियो बनाना और शेयर करना अपराध होगा। साथ ही, पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए ऐसी सामग्री को हटाने का प्रावधान भी होगा। आंकड़े बताते हैं कि 90% से ज्यादा डीपफेक कंटेंट महिलाओं के खिलाफ बनाया जाता है, जिसमें ज्यादातर मामले युवतियों और किशोरियों से जुड़े होते हैं।
तस्वीर दिखाने से पहले क्यों डरी थीं लॉरा?
इस पूरे प्रकरण में सबसे दिलचस्प बात यह है कि लॉरा मैकक्लर ने खुद स्वीकार किया कि संसद में यह तस्वीर दिखाने से पहले वह डर रही थीं। उन्हें इस बात की चिंता थी कि कहीं लोग उनके इस कदम को गलत न समझें। हालांकि, उनका मानना था कि इस गंभीर मुद्दे पर समाज का ध्यान खींचने के लिए यह जोखिम उठाना जरूरी था। सोशल मीडिया पर उनके इस कदम को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कुछ लोग उनकी हिम्मत की तारीफ कर रहे हैं, तो वहीं कुछ का कहना है कि यह सिर्फ एक पब्लिसिटी स्टंट था। मैकक्लर ने जवाब में कहा कि मैं जानती थी कि लोग मेरी आलोचना करेंगे, लेकिन अगर मेरे इस कदम से एक भी महिला को न्याय मिलता है, तो मैं इसे सार्थक मानूंगी।"
क्या डीपफेक के खिलाफ लड़ाई में यह एक नया अध्याय है?
लॉरा मैकक्लर का यह प्रयोग निश्चित रूप से डिजिटल युग में महिला सुरक्षा से जुड़ी चुनौतियों को उजागर करता है। जिस तरह से उन्होंने इस गंभीर मुद्दे को संसद में उठाने के लिए एक अप्रत्याशित तरीका अपनाया, वह निस्संदेह साहसिक है। अब सवाल यह है कि क्या अन्य देश भी इसी तर्ज पर डीपफेक टेक्नोलॉजी के दुरुपयोग को रोकने के लिए कानून बनाएंगे? भारत समेत कई देशों में अभी तक इस संबंध में कोई ठोस कानूनी प्रावधान नहीं है। मैकक्लर की इस पहल से यह उम्मीद जगी है कि अब दुनिया भर की सरकारें इस मुद्दे पर गंभीरता से विचार करेंगी। आखिरकार, टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग रोकने की जिम्मेदारी सिर्फ कानून बनाने वालों की ही नहीं, बल्कि हम सभी की है।
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