Friday, July 25, 2025
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हक्कानी की कहानी हुई ख़त्म, अपने मंत्रालय के बाहर हुए धमाके में मारा गया तालिबानी प्रवास मंत्री

Kabul Bomb Blast खलील रहमान हक्कानी को अगस्त 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद अफगानिस्तान की तालिबान सरकार में शरणार्थी और प्रवास मंत्री का कार्यभार सौंपा गया।
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खलील रहमान हक्कानी की धमाके में हुई मौत

Kabul Bomb Blast: एक बार फिर धमाके से दहल उठा है अफगानिस्तान । इस बार हमला तालिबान सरकार के शरणार्थी मंत्रालय में हुआ है।  हमला उस वक्त हुआ जब वह खोस्त से आए एक समूह की मेजबानी कर रहा था।  अब तक हुई जांच में जो सामने आया है उसके मुताबिक इसके एक आत्मघाती हमला बताया जा रहा है। हालांकि आत्मघाती हमलावर मंत्रालय के अंदर तक कैसे पहुंचा इस बारे में अभी तक कुछ सामने नहीं आ सका है।

कौन था खलील रहमान हक्कानी

खलील रहमान हक्कानी तालिबान सरकार में शरणार्थी और प्रवास मंत्री था। अगस्त 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता संभाली, तो उसे यह जिम्मेदारी दी गई। खलील तालिबान के आंतरिक मंत्री सिराजुद्दीन हक्कानी का चाचा था। उसका जन्म अफगानिस्तान के पकतिया प्रांत में हुआ था और वह पश्तूनों की जदरान जनजाति से संबंध रखता था। अफगान युद्ध के दौरान खलील हक्कानी को अंतरराष्ट्रीय फंड जुटाने का काम सौंपा गया था। वह हक्कानी नेटवर्क के प्रमुख नेता था, लेकिन कई सालों से तालिबान के साथ काम कर रहा था। इससे पहले उसने कुछ समय अलकायदा के साथ भी बिताया। बता दें, 2002 में उसे पकतिया प्रांत में अलकायदा को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई थी।

हक्कानी को अमेरिका ने घोषित किया था आतंकी

खलील रहमान हक्कानी अफगानिस्तान में सक्रिय हक्कानी नेटवर्क का प्रमुख नेता था। हक्कानी नेटवर्क की शुरुआत उसके भाई जलालुद्दीन हक्कानी ने की थी। 1990 के दशक में हक्कानी नेटवर्क तालिबान शासन का हिस्सा बन गया था और उस समय संयुक्त राष्ट्र ने इसे तालिबान के लिए धन जुटाने में शामिल माना था। खलील हक्कानी ईरान, अरब देशों और दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों से तालिबान के लिए फंड्स इकट्ठा किया करता था।

संयुक्त राज्य अमेरिका ने हक्कानी को 9 फरवरी 2011 को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया था। उस पर 5 मिलियन डॉलर का ईनाम भी रखा गया था। अलकायदा से रिश्ते और तालिबान का समर्थन करने के कारण उसके खिलाफ प्रतिबंध भी लगाए गए थे।

क्या है हक्कानी नेटवर्क?

हक्कानी नेटवर्क का अफगानिस्तान में काफी प्रभाव है। एक समय था जब यह गुट सोवियत संघ के खिलाफ अफगानिस्तान में लड़ रहा था, तब उसे अमेरिकी की खुफिया एजेंसी CIA का समर्थन प्राप्त था। लेकिन जब यह गुट बाद में अमेरिका के लिए समस्या बनने लगा, तो CIA ने इससे दूरी बना ली और इसे एक आतंकवादी संगठन के रूप में घोषित कर दिया।

हक्कानी गुट पर आरोप है कि उसने अफगानिस्तान, भारत और कई पश्चिमी देशों में बड़े हमले किए हैं। दिलचस्प बात ये है कि इस गुट को पाकिस्तान का समर्थन भी मिलता है और इसकी जड़ें पाकिस्तान में भी फैली हैं। पहले ISI (पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी) भी हक्कानी गुट के लड़ाकों को ऑपरेट करती थी और यह तय करती थी कि उन्हें हमलों के लिए कितने पैसे मिलेंगे।

बरादर और हक्कानी के बीच हुई थी कहासुनी 

अफगानिस्तान सरकार के गठन के समय खलील रहमान हक्कानी और अफगान सरकार के उप प्रधानमंत्री मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के बीच कहासुनी हुई थी। इस कहासुनी का कारण दोनों के बीच रणनीतिक मतभेद था। ऐसा सामने आया की विवाद का मुख्य कारण था कि अंतरराष्ट्रीय मदद का बंटवारा कैसे किया जाए और अमेरिका और नाटो से कैसे रिश्ते रखें जाएं। इसके साथ ही तालिबान स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ना चाहता था जबकि हक्कानी चाहते थे कि सरकार का गठन पाकिस्तान की सलाह और दिशा-निर्देश के तहत हो।

हमले के पीछे हो सकता है ISIS 

ऐसी संभावना है कि काबुल में शरणार्थी मंत्रालय में हुए धमाके के पीछे इस्लामिक स्टेट का हाथ हो सकता है। 2021 में जब तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता संभाली, तब अमेरिका की सेना से उसका युद्ध खत्म हो गया। लेकिन इसके बावजूद इस्लामिक स्टेट और खुरासान समूह अफगानिस्तान में सक्रिय रहा, और वो कभी-कभी नागरिकों और तालिबान अधिकारियों को अपना निशाना बनता रहा है।

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