पाकिस्तानी DGMO के फोन कॉल से लेकर सीजफायर तक: सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने बताई भारत पाक के सीजफायर की पूरी स्टोरी...
10 मई की वह शाम भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव के बीच अचानक सन्नाटा छा गया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर ऐलान किया कि उनकी मध्यस्थता से दोनों देशों ने सीजफायर स्वीकार कर लिया है। लेकिन अब एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने उस पूरी कहानी को उजागर किया है, जिसमें पाकिस्तानी DGMO की फोन कॉल से लेकर भारत के रणनीतिक फैसले तक के पीछे के राज सामने आए हैं। क्या वाकई ट्रंप ने समझौते में कोई भूमिका निभाई थी, या फिर यह भारत-पाकिस्तान के बीच हुई सीधी बातचीत का नतीजा था?
सुबह से मिल रही थी पाकिस्तान की फोन कॉल, लेकिन...
जनता दल (यूनाइटेड) के सांसद संजय झा के नेतृत्व में मलेशिया दौरे पर गए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि 10 मई की सुबह से ही पाकिस्तानी DGMO भारतीय सेना प्रमुख से बात करने की कोशिश कर रहा था। लेकिन हॉटलाइन में तकनीकी समस्या के कारण वह संपर्क स्थापित नहीं कर पा रहा था। इसके बाद पाकिस्तानी दूतावास ने भारतीय अधिकारियों से संपर्क करके यह जानकारी दी कि वे DGMO स्तर पर बातचीत करना चाहते हैं। हालांकि, भारतीय सेना ने इसके लिए समय मांगा और दोपहर करीब 3:35 बजे दोनों पक्षों के बीच बातचीत हुई। इसी वार्ता के बाद भारत ने सीजफायर को स्वीकार कर लिया।
#WATCH | Kuala Lumpur, Malaysia | Interacting with the Indian diaspora, JDU MP Sanjay Kumar Jha says, "... In Pahalagam, they segregated on our religious lines to create communal disharmony in the country. But nothing such happened in India... The Pakistan DGMO had tried talking… pic.twitter.com/MsUS2Hxp79
— ANI (@ANI) June 1, 2025
क्या अमेरिका ने क्रेडिट लेने की कोशिश की?
संजय झा ने बताया कि भारत और पाकिस्तान के बीच DGMO स्तर पर बातचीत के करीब 2 घंटे बाद डोनाल्ड ट्रंप ने सोशल मीडिया पर दावा किया कि अमेरिका की मध्यस्थता से सीजफायर हुआ है। यह ऐलान शाम 5:25 बजे किया गया, जबकि भारत ने पहले ही पाकिस्तान के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया था। इससे सवाल उठता है कि क्या ट्रंप प्रशासन ने जानबूझकर इस समझौते का श्रेय लेने की कोशिश की? भारत सरकार ने बार-बार कहा है कि सीजफायर का फैसला बिना किसी बाहरी दखल के हुआ था, लेकिन ट्रंप के दावे ने पूरे मामले को विवादास्पद बना दिया।
क्या ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने अपना लक्ष्य पूरा कर लिया था?
सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल ने स्पष्ट किया कि भारत ने सीजफायर इसलिए स्वीकार किया क्योंकि उसका मकसद सिर्फ आतंकी ठिकानों को नष्ट करना था, न कि पाकिस्तान के साथ पूर्ण युद्ध छेड़ना। 7 मई को ऑपरेशन सिंदूर के तहत PoK और पाकिस्तान के अंदर 9 आतंकी कैंपों को ध्वस्त कर दिया गया था। इसके बाद पाकिस्तान ने जवाबी कार्रवाई की, लेकिन भारतीय सेना ने उसे भी मुंहतोड़ जवाब दिया। संजय झा ने कहा, "हम युद्ध नहीं चाहते थे, बस आतंकवाद के खिलाफ एक सख्त संदेश देना था, और वह कामयाब रहा।
क्या सीजफायर के पीछे अमेरिकी दबाव था?
इस पूरे प्रकरण में विपक्ष ने सरकार पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस ने मांग की है कि संसद का विशेष सत्र बुलाकर इस मामले पर चर्चा की जाए। उनका आरोप है कि अमेरिकी हस्तक्षेप के बिना सीजफायर का ऐलान नहीं हुआ होगा। हालांकि, सरकार और सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल का दावा है कि यह फैसला पूरी तरह से भारत की रणनीतिक जीत थी, जिसमें अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी। अब सवाल यह है कि क्या यह मामला राजनीतिक विवाद बनकर रह जाएगा, या फिर सच्चाई सामने आएगी?
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