शांति का संदेश या युद्ध का इरादा...कोलंबिया में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने ऑपरेशन सिंदूर पर क्या कहा?
कोलंबिया की राजधानी बोगोटा में भारतीय संसदीय प्रतिनिधिमंडल ने एक ऐसा संदेश दिया जो शांति और युद्ध के बीच की पतली रेखा को परिभाषित करता है। कांग्रेस नेता शशि थरूर और बीजेपी के तेजस्वी सूर्या जैसे विपरीत विचारधाराओं के नेताओं ने एक साथ खड़े होकर दुनिया को यह बताने की कोशिश की कि भारत आतंकवाद के खिलाफ कितना गंभीर है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पहली बार भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी सैन्य कार्रवाई को सही ठहराते हुए स्पष्ट किया कि हम शांति चाहते हैं, लेकिन आतंकवाद का जवाब बिना किसी दया के देंगे।" कोलंबिया जैसे देश, जो खुद आतंकवाद से जूझ चुका है, ने भारत के इस रुख का समर्थन किया या नहीं?
गांधी जी हमारे गर्व, लेकिन आतंकियों को नहीं बख्शेंगे
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने कोलंबिया की संसद में जो कहा, वह भारत की विदेश नीति का सार बन गया। उन्होंने कहा, "हमें महात्मा गांधी की भूमि होने पर गर्व है, जिन्होंने हमें अहिंसा सिखाई। लेकिन गांधी जी ने यह भी सिखाया कि अगर कोई आपकी स्वतंत्रता छीनने आए, तो उसका डटकर मुकाबला करो।
थरूर ने कोलंबिया के उस बयान पर नाराजगी भी जताई जिसमें आतंकियों और निर्दोष नागरिकों के बीच अंतर नहीं किया गया था। हालांकि, बाद में कोलंबिया ने अपना रुख बदला और भारत के साथ एकजुटता दिखाई। क्या यह भारत की कूटनीतिक जीत थी या फिर अंतरराष्ट्रीय दबाव का नतीजा?
पाक को चुनौती देकर क्या बोले तेजस्वी सूर्या?
बीजेपी के युवा नेता तेजस्वी सूर्या ने कोलंबिया में पाकिस्तान को लेकर कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने साफ कहा कि पाकिस्तान पिछले 40 साल से आतंकवाद को अपनी 'सरकारी नीति' बनाकर भारत को अस्थिर करने की कोशिश कर रहा है। ऑपरेशन सिंदूर हमारा जवाब था, और अगर जरूरत पड़ी तो हम फिर ऐसा ही करेंगे।" सूर्या ने कोलंबिया के नेताओं से कहा कि आतंकियों को सुरक्षित घर लौटने देने की नीति दुनिया के लिए खतरनाक है।
क्यों मायने रखता है कोलंबिया का यह समर्थन?
कोलंबिया खुद एक ऐसा देश है जहां FARC जैसे आतंकी संगठनों ने दशकों तक हिंसा फैलाई। शायद इसीलिए कोलंबिया के सांसदों ने भारत के ऑपरेशन सिंदूर को समझा और उसका समर्थन किया। बीजेपी नेता शशांक मणि ने कहा, "हम शांति का संदेश लेकर आए हैं, लेकिन हमने स्पष्ट कर दिया है कि आतंकवाद का जवाब हम बिना किसी डर के देंगे।" कोलंबिया ने न सिर्फ भारत के रुख का समर्थन किया, बल्कि आतंकवाद के खिलाफ द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति जताई। क्या यह भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत है?
क्या भारत ने आतंकवाद के खिलाफ जीता मोर्चा?
7 मई को भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के तहत पाकिस्तान और PoK में 9 आतंकी ठिकानों को नष्ट किया था। इसकी प्रतिक्रिया में पाकिस्तान ने भारतीय सीमा पर गोलीबारी की, लेकिन भारत ने उसे भी मुंहतोड़ जवाब दिया। अब कोलंबिया जैसे देश का समर्थन मिलना भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है। लेकिन सवाल यह है कि क्या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने की भारत की रणनीति काम कर रही है? या फिर पाकिस्तान अभी भी कुछ देशों की सहानुभूति का फायदा उठा लेगा?
क्या भारत की 'डटकर जवाब' वाली नीति दुनिया को पसंद आ रही है?
कोलंबिया में भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने जो संदेश दिया, वह साफ था कि "हम शांति चाहते हैं, लेकिन आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेंगे।" शशि थरूर ने गांधीजी का हवाला दिया, तेजस्वी सूर्या ने पाकिस्तान को निशाने पर लिया और शशांक मणि ने कोलंबिया के साथ मिलकर आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता दिखाई। अब देखना यह है कि क्या भारत का यह रुख दुनिया के अन्य देशों को भी पसंद आएगा या फिर पाकिस्तान अपने पुराने तरीकों से दुनिया को भ्रमित करने में कामयाब हो जाएगा? एक बात तय है कि ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की सैन्य शक्ति तो दिखाई ही है, लेकिन अब कूटनीतिक मोर्चे पर भी जीत हासिल करनी होगी।
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