हज कोटा: कैसे तय होता है हर देश का हिस्सा, कितने श्रद्धालु पहुँचते हैं मक्का?
हर साल इस्लामी कैलेंडर के आखिरी महीने में मक्का की धरती पर लाखों मुस्लिमों का मेला लगता है। बता दें कि हज..इस्लाम का वह पवित्र कर्तव्य है जो हर सक्षम मुस्लिम के दिल में बसता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मक्का में एक साथ इतने लोग कैसे पहुँचते हैं? दरअसल सऊदी अरब हर देश को एक तय कोटा देता है, ताकि यह तीर्थयात्रा व्यवस्थित और सुरक्षित रहे। हाल ही में भारत के निजी हज कोटे में 80% कटौती की खबर ने तहलका मचा दिया, जिसे बाद में कुछ हद तक ठीक किया गया। आखिर यह कोटा कैसे तय होता है? कितने श्रद्धालु हर साल काबा की परिक्रमा करते हैं? और भारत जैसे देशों का इस व्यवस्था में क्या रोल है? चलिए, इस कहानी को सरल अंदाज में खोलते हैं, जैसे मक्का की गलियों में आस्था की हवा बह रही हो।
क्या है हज के कोटे का गणित?
सऊदी अरब के लिए हज सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि दुनिया का सबसे बड़ा लॉजिस्टिक्स ऑपरेशन है। हर साल लाखों लोगों को मक्का में ठहराना, उनके खाने-पीने, परिवहन और सुरक्षा का इंतजाम करना आसान नहीं। इसलिए सऊदी सरकार हर देश को हज कोटा देती है, यानी एक तय संख्या में तीर्थयात्रियों को भेजने की इजाजत। यह कोटा मुख्य रूप से उस देश की मुस्लिम आबादी पर आधारित होता है। 1987 में इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) ने फैसला किया था कि मुस्लिम बहुल देशों को हर 1,000 मुस्लिमों पर एक हज यात्री का कोटा मिलेगा।
मिसाल के तौर पर, इंडोनेशिया, जहाँ 27.6 करोड़ मुस्लिम रहते हैं, उसे 2023 में 2,29,000 यात्रियों का कोटा मिला। लेकिन यह सिर्फ गणित नहीं, कूटनीति का खेल भी है। देश सऊदी अरब से ज्यादा कोटे की गुहार लगाते हैं, और कई बार द्विपक्षीय बातचीत से यह संख्या बढ़ती है। भारत ने 2023 में जेद्दाह में हुए समझौते से 1,75,025 का कोटा हासिल किया, जो पहले से 40,000 ज्यादा था। कोटा यह सुनिश्चित करता है कि मक्का में न तो भीड़ खतरनाक हो, न ही सुविधाएँ कम पड़ें।
भारत में हज के लिए क्या है प्रक्रिया?
भारत में हज यात्रा का इंतजाम एक सुनियोजित प्रक्रिया है, जो आस्था और व्यवस्था का मिश्रण है। भारत को 2025 के लिए 1,75,025 का कोटा मिला है, जिसे दो हिस्सों में बाँटा जाता है। करीब 70% कोटा, यानी 1,22,000 सीटें, हज कमेटी ऑफ इंडिया (HCoI) के पास जाती हैं, जो सरकारी सब्सिडी के साथ किफायती पैकेज देती है। बाकी 30%, यानी 53,000 सीटें, निजी टूर ऑपरेटरों को मिलती हैं, जो प्रीमियम सुविधाओं के साथ महँगी यात्रा करवाते हैं। हज कमेटी का कोटा राज्यों में उनकी मुस्लिम आबादी के आधार पर बँटता है।
उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार से सबसे ज्यादा यात्री जाते हैं। अगर आवेदन कोटे से ज्यादा हों, तो लॉटरी सिस्टम से चयन होता है। हर राज्य की हज कमेटी आवेदन मँगाती है, और ड्रॉ के जरिए खुशकिस्मत यात्रियों का नाम निकलता है। हाल ही में सऊदी अरब ने भारत के निजी कोटे में कटौती की थी, जिससे 52,000 यात्रियों की उम्मीदें टूटने लगीं। लेकिन भारत सरकार की तुरंत अपील के बाद 10,000 अतिरिक्त वीजा मिले। यह दिखाता है कि हज कोटा सिर्फ संख्या नहीं, बल्कि आस्था और सियासत का संगम भी है।
20 लाख से अधिक हाजीयों के आने की है संभावना
हज..इस्लामी कैलेंडर के 12वें महीने के धु-अल-हिज्जा में 6 दिनों तक चलता है। मक्का की सड़कों से लेकर काबा के आँगन तक, लाखों लोग एक साथ आस्था की माला जपते हैं। बता दें कि कोविड से पहले 2019 में 24.89 लाख लोग हज के लिए आए थे। इसके बाद कोरोना महामारी ने इसे बड़े स्तर पर बाधित किया। जिसमें 2020 में सिर्फ 10,000 और 2021 में 60,000 यात्रियों को इजाजत मिली थी। 2022 में यह संख्या 10 लाख तक पहुँची, और 2023 में 18.45 लाख लोग आए, जिनमें 1.66 लाख विदेशी और 1.84 लाख सऊदी नागरिक शामिल थे। वहीं 2024 में 18.36 लाख यात्रियों ने हज किया। 2025 में सऊदी अरब को 20 लाख से ज्यादा यात्रियों की उम्मीद है, जो कोविड के बाद सामान्य स्तर की वापसी दिखाता है। इन यात्रियों में हर उम्र, रंग और देश के लोग होते हैं। हज की खासियत यही है कि यह आस्था को एक वैश्विक मंच देता है, जहाँ हर कोई बराबर है।
भारतीयों के लिए क्या आती है हज की लागत?
हज यात्रा आस्था का सफर है, लेकिन इसकी लागत भी कम नहीं। भारत में हज कमेटी के जरिए यात्रा का खर्च 2024 में औसतन 3.53 लाख रुपये प्रति यात्री था। 2025 के लिए यह अनुमानित 3.37 लाख रुपये है। इसमें हवाई यात्रा, मक्का-मदीना में ठहरना, और स्थानीय परिवहन शामिल होता है। लेकिन खाने का खर्च यात्री को खुद उठाना पड़ता है। निजी ऑपरेटर 6 से 7 लाख रुपये तक वसूलते हैं, जिसमें बेहतर होटल और वीआईपी बसें मिलती हैं।
कुछ राज्य जैसे उत्तर प्रदेश और केरल अपने यात्रियों को सब्सिडी देते हैं, ताकि आर्थिक बोझ कम हो। मक्का में हर यात्री को कम से कम 40 दिन रुकना होता है, क्योंकि हज तभी पूरा माना जाता है, जब काबा में 40 नमाजें अदा की जाएँ। यह लागत और समय का हिसाब बताता है कि हज सिर्फ आस्था नहीं, बल्कि समर्पण और बलिदान का भी प्रतीक है।
क्यों जरूरी है हज कोटा?
हज कोटा कोई मनमानी नहीं, बल्कि व्यवस्था की रीढ़ है। मक्का में सीमित जगह है जहां लाखों लोगों को एक साथ समा नहीं सकते। बिना कोटे के भीड़ अनियंत्रित हो सकती है, जैसा 2015 में स्टैम्पेड में हुआ, जब सैकड़ों लोग मारे गए थे। कोटा यह सुनिश्चित करता है कि हर देश का मुस्लिम समुदाय मक्का पहुँचे, और कोई भीड़ से दब न जाए। सऊदी अरब ने इस बार भी हज के लिए 100 अरब डॉलर से ज्यादा खर्च किए हैं—32,000 स्वास्थ्यकर्मी, हजारों एम्बुलेंस, और आधुनिक तकनीक इसका हिस्सा हैं। जोकि कोटा लॉजिस्टिक्स को आसान बनाता है, ताकि हर यात्री को खाना, पानी, और सुरक्षा मिले। लेकिन कोटे की सीमा कई देशों को खटकती है, जो और मौके चाहते हैं। यह आस्था की माँग और व्यवस्था की मजबूरी के बीच एक नाजुक संतुलन है।
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