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क्या होती है DGMO हॉटलाइन? भारत-पाक के बीच कैसे होती है सीधे जनरल्स की बातचीत? जानिए पूरा किस्सा...

10 मई को भारत-पाक में युद्ध जैसे हालात बने, लेकिन DGMO हॉटलाइन पर 85 मिनट की बातचीत से टला टकराव। जानिए कैसे काम करती है ये हॉटलाइन।
09:59 AM May 15, 2025 IST | Rohit Agrawal
10 मई को भारत-पाक में युद्ध जैसे हालात बने, लेकिन DGMO हॉटलाइन पर 85 मिनट की बातचीत से टला टकराव। जानिए कैसे काम करती है ये हॉटलाइन।

10 मई की वह ऐतिहासिक सुबह जब भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की स्थिति बन चुकी थी, तब एक गुप्त फोन कॉल ने दोनों देशों को संघर्ष विराम तक पहुंचाया। यह था DGMO हॉटलाइन का वह चमत्कारिक संवाद, जिसमें भारत के लेफ्टिनेंट जनरल राजीव घई और पाकिस्तान के मेजर जनरल काशिफ अब्दुल्ला चौधरी ने सीजफायर पर सहमति जताई। लेकिन यह रहस्यमयी हॉटलाइन आखिर कैसे काम करती है? आइए जानते हैं इस हॉटलाइन की पूरी कहानी!

क्या है DGMO हॉटलाइन?

भारत के पूर्व DGMO लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया (सेवानिवृत्त) के अनुसार, यह एक विशेष सुरक्षित संचार चैनल है जो सीधे दिल्ली के साउथ ब्लॉक और पाकिस्तान के रावलपिंडी स्थित सेना मुख्यालय को जोड़ता है।

जब इस पर घंटी बजती है, तो इसका मतलब होता है कि पाकिस्तानी सेना प्रमुख कार्यालय से संपर्क कर रहा है। 1965 के युद्ध के बाद स्थापित यह प्रणाली कारगिल युद्ध से लेकर पुलवामा, उरी और हाल के पहलगाम हमले तक में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुकी है।

 

कैसे होती है बातचीत?

यह बातचीत बड़े खास मकसद और इंतजामों से परिपूर्ण होती है। इसके लिए साउथ ब्लॉक के एक अत्यंत सुरक्षित कमरे में स्थापित उपकरण पर हमेशा एक मेजर लेफ्टिनेंट कर्नल तैनात रहता है। साथ ही ये अन्य प्रक्रियाएं भी फ़ॉलो की जाती हैं:

कब होता है हॉट लाइन का उपयोग?

सेना के जनरल भाटिया ने इसको लेकर बताया कि यह हॉटलाइन तीन स्थितियों में सक्रिय होती है:

  1. जब सीमा पार से कोई सैनिक/नागरिक गलती से दूसरी तरफ चला जाए
  2. LOC पर गोलीबारी बढ़ने पर
  3. युद्ध जैसी स्थिति में तत्काल संपर्क के लिए

10 मई को हुई थी खास वार्ता

दोपहर 3:35 बजे जब यह हॉटलाइन सक्रिय हुई, तब तक दोनों देश चार दिनों से भारी युद्ध में उलझे हुए थे। मात्र 85 मिनट की बातचीत में दोनों पक्ष शाम 5 बजे से जमीन, समुद्र और वायु सीमा पर संघर्ष विराम पर सहमत हो गए। 12 मई को हुई दूसरी वार्ता में इसकी पुष्टि की गई।

क्यों जरूरी है यह हॉटलाइन?

1999 के कारगिल संघर्ष से लेकर 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक तक, इस चैनल ने कई बार युद्ध को टालने में मदद की है। जनरल भाटिया के अनुसार, "यह एकमात्र ऐसा तंत्र है जहां दोनों देशों की सेनाएं बिना कूटनीतिक औपचारिकताओं के सीधे संवाद कर सकती हैं।

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