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यूनुस को जिसने कुर्सी दिलाई, वही बन बैठा सबसे बड़ा सिरदर्द! जानिए कौन है बांग्लादेश का आर्मी चीफ वकार-उज-जमां?

बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस और सेना प्रमुख वकार-उज-जमां में टकराव बढ़ा, रोहिंग्या कॉरिडोर और चुनाव तारीख पर मतभेद से संकट गहराया।
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बांग्लादेश की राजनीति में एक नया मोड़ आया है, जहां अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस और सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमां के बीच खुला टकराव सामने आया है। यह वही जनरल जमां हैं, जिन्होंने पिछले साल प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे के बाद यूनुस को सत्ता सौंपी थी। लेकिन अब दोनों के बीच मतभेद इतने गहरे हो गए हैं कि यूनुस के इस्तीफे की अटकलें तेज हो गई हैं। आखिर क्या वजह है कि जिस सेना प्रमुख ने यूनुस को सत्ता दिलाई, वही अब उनका सबसे बड़ा विरोधी बन गया है? और क्या बांग्लादेश एक बार फिर सेना के हस्तक्षेप की ओर बढ़ रहा है?

हसीना को हटाने वाले जनरल वकार-उज-जमां कौन?

जनरल वकार-उज-जमां बांग्लादेश सेना के सबसे ताकतवर चेहरों में से एक हैं। 1966 में ढाका में जन्मे जमां ने बांग्लादेश मिलिट्री एकेडमी से ट्रेनिंग ली और करीब चार दशक तक सेना में सेवा दी। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के शांति मिशनों में भी हिस्सा लिया और शेख हसीना सरकार में सशस्त्र बलों के प्रमुख अधिकारी के रूप में काम किया।

जून 2024 में जब देश में छात्र आंदोलन तेज हुआ, तो जनरल जमां ने हसीना के इस्तीफे की घोषणा करते हुए अंतरिम सरकार बनाने का ऐलान किया। उन्होंने कहा था कि "मैं देश की जिम्मेदारी ले रहा हूं, कृपया सहयोग करें। लेकिन अब वही जनरल यूनुस सरकार के खिलाफ खड़े हो गए हैं।

क्यों जनरल जमां ने यूनुस के 'मानवीय कॉरिडोर' को कहा 'खूनी गलियारा'?

दरअसल इस मसले में टकराव की सबसे बड़ी वजह रोहिंग्या मुद्दा है। यूनुस सरकार ने म्यांमार के रखाइन राज्य तक एक मानवीय कॉरिडोर बनाने का प्रस्ताव रखा, ताकि वहां फंसे रोहिंग्या समुदाय को सहायता पहुंचाई जा सके। लेकिन जनरल जमां ने इस योजना को "बांग्लादेश की सुरक्षा के लिए खतरा" बताते हुए सख्त विरोध किया। उनका तर्क है कि यह कदम बांग्लादेश को अप्रत्यक्ष रूप से म्यांमार के संघर्ष में घसीट सकता है। जमां ने यूनुस पर सेना के मामलों में दखल देने का भी आरोप लगाया है। यह टकराव इतना बढ़ गया है कि अब सेना और अंतरिम सरकार के बीच सीधी टकराहट की आशंका जताई जा रही है।

चुनाव को लेकर भी चल रहा है टकराव

एक और बड़ा मुद्दा चुनाव की तारीख को लेकर है। जनरल जमां चाहते हैं कि दिसंबर 2025 तक आम चुनाव कराकर देश में लोकतंत्र बहाल किया जाए। लेकिन यूनुस सरकार सुधारों को प्राथमिकता देते हुए चुनाव को 2026 तक टालना चाहती है। सेना का मानना है कि लंबे समय तक अंतरिम सरकार का शासन देश की स्थिरता के लिए ठीक नहीं है। दूसरी ओर, यूनुस के समर्थकों का कहना है कि बिना सुधारों के चुनाव कराना बेमानी होगा। इस मतभेद ने दोनों के बीच की खाई को और गहरा कर दिया है।

चीन से मिल रहा है समर्थन?

जनरल जमां जून 2025 में चीन की आधिकारिक यात्रा पर जाने वाले हैं, जहां वह पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के निमंत्रण पर रक्षा सौदों पर चर्चा करेंगे। यह यात्रा बेहद अहम मानी जा रही है, क्योंकि चीन पहले से ही बांग्लादेश में अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। क्या जनरल जमां चीन से मिलने वाले समर्थन का इस्तेमाल यूनुस सरकार के खिलाफ कर सकते हैं? क्या बांग्लादेश एक बार फिर सेना के शासन की ओर बढ़ रहा है? ये वो सवाल हैं जिनके जवाब आने वाले दिनों में सामने आएंगे।

क्या बांग्लादेश में फिर सेना का शासन होगा?

जनरल वकार-उज-जमां और मोहम्मद यूनुस के बीच चल रहा तनाव सिर्फ दो लोगों का विवाद नहीं, बल्कि बांग्लादेश के भविष्य का सवाल है। अगर यूनुस इस्तीफा देते हैं, तो देश में सेना का प्रभाव और बढ़ सकता है। लेकिन अगर जनरल जमां पीछे हटते हैं, तो यूनुस सरकार को सुधारों का रास्ता साफ मिल जाएगा। फिलहाल, बांग्लादेश एक बार फिर उसी मोड़ पर खड़ा है, जहां सेना और लोकतंत्र के बीच की लड़ाई तय होती है। क्या इस बार जनरल जमां का पासा सही उतरेगा? या फिर यूनुस अपनी जमीन बचा पाएंगे? यह देखना बाकी है।

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