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बांग्लादेश की राजनीति में भूचाल: आठ महीने में विदेश सचिव की विदाई, यूनुस सरकार पर संकट

बांग्लादेश में इन दिनों सत्ता के गलियारों में जबरदस्त हलचल मची हुई है। सिर्फ आठ महीने पहले विदेश सचिव बने मोहम्मद जाशिम उद्दीन की कुर्सी अब खतरे में है। सूत्रों की मानें तो उनका हटाया जाना लगभग तय है, और...
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बांग्लादेश में इन दिनों सत्ता के गलियारों में जबरदस्त हलचल मची हुई है। सिर्फ आठ महीने पहले विदेश सचिव बने मोहम्मद जाशिम उद्दीन की कुर्सी अब खतरे में है। सूत्रों की मानें तो उनका हटाया जाना लगभग तय है, और इसकी वजह है — देश के शीर्ष सलाहकारों से मतभेद, खासकर अंतरिम सरकार के प्रमुख मुहम्मद यूनुस और उनके विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन के साथ। यह पहली बार है जब देश की कूटनीति का संचालन उस व्यक्ति ने किया, जो आधिकारिक तौर पर विदेश सचिव नहीं है। जी हां, टोक्यो में जापान-बांग्लादेश बैठक का नेतृत्व किया पूर्व सचिव नजरुल इस्लाम ने — वो भी सिर्फ मौखिक निर्देशों के आधार पर।

क्यों बिगड़े हालात: सत्ता के अंदरूनी टकराव की असली वजह

माना जा रहा है कि विवाद की जड़ रोहिंग्या शरणार्थियों को लेकर है। यूनुस और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार खलीलुर रहमान एक ‘मानवीय गलियारे’ और 'सुरक्षित ज़ोन' की वकालत कर रहे हैं, जिसे संयुक्त राष्ट्र का भी समर्थन प्राप्त है। लेकिन जाशिम उद्दीन ने इसका खुलकर विरोध किया। उनका मानना है कि इससे बांग्लादेश की संप्रभुता को खतरा हो सकता है, और सीमाई इलाकों में अस्थिरता फैल सकती है। सिर्फ इतना ही नहीं, जाशिम उद्दीन की विचारधारा सेना के कई वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मेल खाती है, जो यूनुस की विदेश नीति को लेकर पहले से ही असहज हैं।

सरकार की सफाई और अगला कदम

जहां एक ओर यह अटकलें लगाई जा रही हैं कि सरकार उन्हें हटा रही है, वहीं विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन का कहना है कि यह "व्यक्तिगत निर्णय" है। लेकिन हकीकत यह है कि विदेश मंत्रालय में अब अंतरिम बदलाव की तैयारी हो चुकी है। खबर है कि अमेरिका में बांग्लादेश के राजदूत असद आलम सियाम नए विदेश सचिव बन सकते हैं। तब तक रुहुल आलम सिद्दीकी यह जिम्मेदारी संभालेंगे।

मुहम्मद यूनुस की मुश्किलें: क्या होगा तख्तापलट?

बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मुहम्मद यूनुस की स्थिति भी अब डगमगाने लगी है। सेना प्रमुख जनरल वकार-उज़-ज़मान और यूनुस के बीच दूरी बढ़ रही है। सेना, यूनुस की विदेश नीति को देश की संप्रभुता के लिए खतरा मान रही है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो सेना ने ढाका में अपनी उपस्थिति बढ़ा दी है, जिससे तख्तापलट की आशंका भी जताई जा रही है। इसके साथ-साथ चुनाव प्रक्रिया में देरी, अल्पसंख्यकों पर हमले और भारत जैसे पड़ोसियों से बिगड़ते संबंध यूनुस के लिए बड़ी चुनौतियाँ बन चुके हैं।

क्या कहता है राजनीतिक भविष्य?

अगर मुहम्मद यूनुस जल्द ही कानून-व्यवस्था और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को पटरी पर नहीं लाते, तो उनके नेतृत्व पर संकट गहराता ही जाएगा। विश्लेषकों का मानना है कि ऐसी स्थिति में सेना या कट्टरपंथी ताकतें हस्तक्षेप कर सकती हैं। बांग्लादेश के लिए यह वक्त बेहद नाजुक है। राजनीति, कूटनीति और सुरक्षा — तीनों मोर्चों पर संतुलन साधना अब किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं।

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