बांग्लादेश में हड़ताल-तालेबंदी का दौर, सरकारी खजाना खाली… चुनाव टले, यूनुस बोले- 'देश में युद्ध जैसे हालात'
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के चीफ एडवाइजर मोहम्मद यूनुस ने देश की स्थिति को लेकर एक बेहद गंभीर बयान दिया है कि "देश के अंदर और बाहर युद्ध जैसे हालात हैं, हम फिर से गुलामी की ओर धकेले जा रहे हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब बांग्लादेश में राजनीतिक उठापटक चरम पर है, अवामी लीग पर प्रतिबंध लगा हुआ है और विपक्षी दल BNP जल्द चुनाव की मांग को लेकर सड़कों पर उतर रहा है। सवाल यह है कि क्या वाकई बांग्लादेश अराजकता की ओर बढ़ रहा है? और क्या यहां की सेना अब सत्ता के खेल में सीधे हस्तक्षेप करने वाली है?
यूनुस ने क्यों कहा कि 'सबकुछ तबाह हो गया'?
12 मई को अंतरिम सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके बाद से ही देश में राजनीतिक तनाव बढ़ता जा रहा है। यूनुस ने राजनीतिक नेताओं के साथ हुई बैठक में कहा कि हम आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं, स्थिति को स्थिर करने की कोशिश की जा रही है।
उनके इस बयान से साफ है कि सरकार और विपक्ष के बीच कोई सहमति नहीं बन पा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि अवामी लीग के समर्थकों और BNP के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसक झड़पों का खतरा बढ़ गया है, जिससे देश में अराजकता फैल सकती है।
चुनाव को लेकर क्यों फंसा है पेंच?
दरअसल, चुनाव की तारीख को लेकर बांग्लादेश की राजनीति गर्म है। बता दें कि विपक्षी दल BNP (बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी) दिसंबर 2025 तक चुनाव कराने की जिद पर अड़ी हुई है, जबकि यूनुस ने स्पष्ट किया है कि चुनाव "दिसंबर 2025 से जून 2026 के बीच" होंगे। BNP नेता सलाहुद्दीन अहमद ने सरकार पर दबाव बनाते हुए कहा है कि "विवादित सलाहकारों को हटाकर नई कैबिनेट बनाई जाए।" दूसरी ओर, जमात-ए-इस्लामी जैसे दलों ने फरवरी 2026 या रमजान के बाद चुनाव का प्रस्ताव रखा है। यह स्पष्ट है कि चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों में कोई एकराय नहीं है, जिससे देश की स्थिरता को खतरा पैदा हो गया है।
क्या सेना चाहती है दिसंबर 2025 तक चुनाव?
बांग्लादेश की सेना अब सीधे तौर पर राजनीति में दखल दे रही है। हाल ही में आर्मी चीफ जनरल वकार-उज-जमां ने नेवी और एयरफोर्स प्रमुखों के साथ मिलकर यूनुस से मुलाकात की और दिसंबर 2025 तक चुनाव कराने की मांग रखी।
सेना का यह कदम साफ संकेत देता है कि वह देश में स्थिरता चाहती है। लेकिन क्या यह हस्तक्षेप लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत है? बांग्लादेश का इतिहास गवाह है कि यहां सेना ने कई बार सीधे सत्ता संभाली है। वहीं ऐसा भी हो सकता है कि सेना फिर से सक्रिय हो रही हो।
क्या बांग्लादेश फंस रहा है चीन के जाल में?
यूनुस ने अपने बयान में कहा कि "हम फिर से गुलामी की ओर धकेले जा रहे हैं।" यह टिप्पणी कई सवाल खड़े करती है। क्या वह चीन के बढ़ते प्रभाव की ओर इशारा कर रहे हैं? बांग्लादेश पहले से ही चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का हिस्सा है और बीजिंग ढाका को भारी कर्ज दे चुका है। कहीं ऐसा तो नहीं कि चीन की कर्ज़ की राजनीति बांग्लादेश की संप्रभुता के लिए खतरा बन रही है? या फिर यूनुस का आरक्षण भारत और पश्चिमी देशों की भूमिका को लेकर है?
क्या बांग्लादेश में लौटेगा सेना का शासन?
बांग्लादेश इस समय एक नाजुक दौर से गुजर रहा है। अगर चुनाव जल्दी नहीं हुए तो विपक्ष सड़कों पर उतर सकता है। सेना का हस्तक्षेप बढ़ सकता है। और अगर चीन जैसी ताकतें इस अराजकता का फायदा उठाने लगीं, तो दक्षिण एशिया की शांति के लिए भी खतरा पैदा हो सकता है। यूनुस का "युद्ध जैसे हालात" वाला बयान कोई अतिशयोक्ति नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि बांग्लादेश अगर समय रहते स्थिर नहीं हुआ, तो यहां गृहयुद्ध जैसी स्थिति भी पैदा हो सकती है। अब देखना यह है कि क्या राजनीतिक दल एकमत हो पाएंगे या फिर देश अराजकता की ओर बढ़ जाएगा?
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